ब्रिक्सः आतंकवाद पर जबानी जमा-खर्च

ब्रिक्स का नौंवा शिखर सम्मेलन अगर सतही दृष्टि से देखें तो काफी सफल रहा। पहली बार उसमें पांच राष्ट्रों- भारत, चीन, रुस, ब्राजील, द. अफ्रीका- ने मिलकर संसार के सभी प्रमुख आतंकवादी गिरोहों और उनको मदद देनेवालों की भर्त्सना की। इस भर्त्सना में पाकिस्तान के जैश-ए-मुहम्मद और लश्करे-तय्यबा भी शामिल हैं। गोवा में हुए पिछले शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तान से संचालित आतंकवाद का जिक्र जरुर किया था, लेकिन ब्रिक्स की घोषणा में उसका जिक्र तक नहीं था। जाहिर है कि चीन के साथ लिहाजदारी बरती गई लेकिन अब चीन के शियामिन में हुए ब्रिक्स सम्मेलन की घोषणा में उन आतंकी गिरोहों का नाम लेकर उल्लेख हुआ है। यहां ध्यान देने लायक तथ्य यह भी है कि चीन और रुस ने उन आतंकी गिरोहों को भी लपेट लिया है, जो उन्हें तंग करते हैं। जैसे तालिबान, दाएश, अल-कायदा, पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामी आंदोलन और उज्बेकिस्तान का इस्लामी आंदोलन, हक्कानी गिरोह और हिजउल-तहरीर आदि। एक दृष्टि से लगभग सभी आतंकी गिरोह इस भर्त्सना के दायरे में आ गए लेकिन दूसरी दृष्टि से पाकिस्तानी आतंकवादियों पर होनेवाला ब्रिक्स का हमला पतला पड़ गया। सभी राष्ट्रों ने, खासकर चीन ने पाकिस्तानी गिरोहों का जिक्र होने दिया लेकिन जिक्र भर कर देने का फायदा क्या है ? उसका ठोस नतीजा क्या होगा ? कुछ नहीं। क्या चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह सख्त रवैया अपनाएंगे ? नहीं ? क्या वे पाकिस्तानी फौज और सरकार पर दबाव डालेंगे ? नहीं । यदि नहीं तो फिर ब्रिक्स-घोषणा क्या कागज का गोला भर सिद्ध नहीं होगी ? क्या ब्रिक्स-राष्ट्र आतंकवाद के विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाएंगे ? क्या चीन मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाएगा ? इस बारे में मोदी-शी बैठक में भी कोई जिक्र नहीं हुआ। इसका यही अर्थ निकलता है कि आतंकवाद पर कोरा जबानी जमा-खर्च हुआ है। चीन ने पहले ही धमकी दे दी थी कि भारत पाकिस्तानी आतंकवाद पर अपना मुंह न खोले। हमारे मोदी ने गजब की नम्रता दिखाई। यदि मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तानी आतंक पर अपना मुंह खोल दिया होता तो शायद चीन नाराज हो जाता और ब्रिक्स-घोषणा में उसका जिक्र नहीं होता। वैसे चीन के साथ बाकी द्विपक्षीय मामलों पर जो भी बातचीत हुई है, वह सकारात्मक ही है। मोदी ने ब्रिक्स-सम्मेलन में जो दस मुद्दे उठाए हैं, वे भी सराहनीय हैं लेकिन चीन का रास्ता बदलवाने में अभी भारत को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।

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