’27 लाख GST रजिस्ट्रेशन अधूरा, नहीं भर सकते रिटर्न’

नई दिल्ली जीएसटी में माइग्रेट होने वाले कुल 71.61 लाख कारोबारियों में से 27 लाख को अब भी रजिस्ट्रेशन की औपचारिकताएं पूरी करनी हैं और 20 अगस्त तक ऐसा नहीं किया गया तो वे अंतरिम रिटर्न फॉर्म GSTR-3B भरने से तो चूकेंगे ही, आगे कोई रिटर्न भी नहीं भर सकते। जीएसटी रिटर्न और कंप्लायंस के कई अहम पहलुओं पर जीएसटीएन के चेयरमैन नवीन कुमार ने प्रमोद राय से की बातचीत। पेश हैं इसके प्रमुख अंश:

अंतरिम रिटर्न फॉर्म GSTR-3B में इनपुट क्रेडिट का कॉलम नहीं होने से टैक्सपेयर्स में चिंता है। अब उन्हें क्लोजिंग स्टॉक की बिक्री पर क्रेडिट के बावजूद पूरा टैक्स चुकाना होगा। ऐसा क्यों है?

मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बड़ी समस्या है। GSTR-3B एक सेल्फ डिक्लेरेशन फॉर्म है, जिसमें आपको बताना है कि आपने कितना बेचा और आपकी कितनी टैक्स लाइबिलिटी बनती है। आपको जितना लगता है, उतना भरिए। अगर आपने सही भरा है और 1 सितंबर से भरे जाने वाले जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-2 और उसके बाद जीएसटीआर-3 में इसकी मैचिंग होती है, तो कोई बात ही नहीं। अगर कुछ शॉर्ट होता है, तो आप अतिरिक्त देय रकम चुकाएंगे। वास्तविक एंट्री तो जीएसटीआर-1 के साथ शुरू होगी। ऐसे में ट्रेड इंडस्ट्री को बिल्कुल घबराने की जरूरत नहीं है। मान लीजिए अगर किसी ने ज्यादा टैक्स चुका भी दिया तो वह उसके ई-लेजर में ही रहेगा और हद से हद यह पैसा 10-15 दिन तक ही फंसा रहेगा।

असल में यह स्थिति कारोबारियों को अतिरिक्त सहूलियत देने पर देखने को मिल रही है। जीएसटी कानून में किसी भी महीने की रिटर्न फाइलिंग अगले महीने की 1 से 20 तारीख तक होनी है और टैक्स भी इसके साथ जमा होना है। हालांकि नई प्रणाली होने के चलते सरकार ने कारोबारियों को रियायत देते हुए जुलाई और अगस्त की रिटर्न की डेट बढ़ा दी। कानून में यह भी है कि जब-जब ऐसा होगा, तब पहले ही एक अंतरिम फॉर्म भरना होगा, जिसे आप GSTR-3B के रूप में देख रहे हैं। चूंकि टैक्स भरने की डेट नहीं बढ़ी है और वह इस फॉर्म के साथ ही 20 अगस्त तक जमा कराना है, ऐसे में आपको लग सकता है कि पैसा रिटर्न भरने तक फंसा रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं है। आप जो भी पैसा देते हैं, वह इलेक्ट्रॉनिक लेजर में रहता है और जब आप वास्तविक रिटर्न भरेंगे, तब आपकी लाइबिलिटी सरकारी खाते में ट्रांसफर होगी।

यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि जब GSTR-3बी भर दिया तो फाइनल जीएसटीआर-3 क्यों भरना पड़ेगा?

इसलिए भरना पड़ेगा क्योंकि उसी फॉर्म से टैक्स की मैचिंग होगी। आपकी इनटाइटलमेंट इससे तय नहीं होगी कि आप क्या बता रहे हैं, बल्कि इससे होगी कि सिस्टम में सब कुछ मैच हो रहा है कि नहीं। ऐसे में अंतिम फॉर्म जीएसटीआर-3 जरूरी हो जाता है।

अभी थोड़ी धीमी है। 24 जुलाई को इनवॉइस डिटेल्स की अपलोडिंग शुरू होने के बाद से हमारे पास केवल 5 लाख इनवॉइसेज ही आई हैं। दो दिन पहले ही रिटर्न फाइलिंग भी शुरू हुई है और अब तक 18,000 लोगों ने फॉर्म जीएसटीआर-3बी भर दिए हैं। एक वजह यह भी हो सकती है कि चूंकि रिटर्न के साथ ही टैक्स भी जमा कराना होता है तो लोग अंतिम तारीख तक आगे नहीं आते। अगले कुछ दिनों में सही तस्वीर सामने होगी।

वैट, एक्साइज, सर्विस टैक्स जैसे पिछले टैक्स रिजीम के कुल 86 लाख कारोबारियों में से 71.61 ने माइग्रेट कर लिया है, लेकिन सिर्फ 44 लाख ने ही प्रोसेस पूरा किया है, जो रिटर्न भरने के योग्य हो गए हैं। रजिस्ट्रेशन के दो पार्ट ए और बी होते हैं। पार्ट ए में आपको बेसिक जानकारी देनी होती है, जबकी बी में कंपनी, लोकेशन, ओनर, पार्टनरशिप सहित कई जानकारियां देनी होती हैं। यह चिंता की बात है कि करीब 27 लाख लोगों ने पार्ट-बी नहीं भरा है और उन्हें परमानेंट नंबर नहीं मिला है। यानी ये लोग फिलहाल रिटर्न नहीं भर सकते। जीएसटीआर-3बी की डेडलाइन 20 अगस्त है और अगले 10-11 दिन में जो लोग प्रोसेस पूरा नहीं कर पाएंगे, वे यह फॉर्म भी नहीं भर सकते और उन्हें पेनाल्टी और दूसरे दंडात्मक प्रावधानों का सामना करना पड़ सकता है। आगे भी रिटर्न वही भरेंगे, जो पार्ट-बी पूरा कर लेंगे।

इस मोर्चे पर चौंकाने वाले नतीजे दिख रहे हैं। हमने राज्यों में एक सर्वे में वैट पेयर्स की ग्रोथ के आधार पर माना था कि करीब 4.5 लाख नए असेसी ही जुड़ेंगे, लेकिन 8 अगस्त तक हमारे पास 16.16 लाख आवेदन आए हैं, जिनमें से 13 लाख को अप्रूवल मिल गया है।

इस पर शुरू से ही काम हो रहा है। आज की डेट में अगर आप महीने में दो-चार सौ इनवॉइस ही जारी करते हैं तब तो आप हमारे पोर्टल पर जाकर सीधे एंट्री कर सकते हैं, लेकिन अगर महीने में 20,000 तक बिल काटते हैं, तो हमारे पोर्टल से एक ऑफलाइन टूल डाउनलोड कर सकते हैं, जो एक्सेलशीट को सपोर्ट करता है। यह टूल मझोली और बड़ी फर्में भी डाउनलोड कर रही हैं।

यह मानकर चलिए की करीब 90 पर्सेंट असेसी टैक्स प्रोफेशनल्स पर निर्भर होते हैं और पुरानी रिजीम में भी ऑनलाइन ही फाइलिंग हो रही थी। यह भी ध्यान रखना होगा कि 75 लाख रुपये से कम टर्नओवर वाले कंपोजिशन स्कीम में हैं और उन्हें तिमाही रिटर्न के रूप में सिर्फ टर्नओवर डेटा देना है। उसके ऊपर टर्नओवर वालों में भी जो लोग बी2सी कारोबार करते हैं, उन्हें भी सिर्फ रेट वाइज डिटेल्स देनी हैं। ऐसे में प्रक्रिया उतनी जटिल नहीं है और न ही इससे बहुत ज्यादा कंप्लायंस लागत आने जा रही है।

फिलहाल ऐसी कोई दिक्कत पेश नहीं आ रही है। हमने संभावित लोड के हिसाब से ही सिस्टम की प्रोग्रामिंग की है। अगर किसी टैक्स पेयर को निजी तौर पर दिक्कत हो तो उसके लिए हमारा कॉल सेंटर है, जो समाधान करता है। आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि सभी राज्यों ने बैक-एंड पोर्टल भी डिवेलप कराया है, जो इतने ही सक्षम हैं। 20 राज्यों और 7 केंद्र शासित राज्यों के पोर्टल जीएसटीएन के माध्यम से ही डिवेलप किए गए हैं। ऐसे में आपकी फाइलिंग को प्रोसेस करने और दूसरे अनुपालन में आधिकारिक स्तर पर होने वाले कामों का तकनीकी प्लेटफॉर्म भी काफी सक्षम है।

जीएसटी सर्विस प्रोवाइडर (जीएसपी) के तौर पर हमने 34 कंपनियों को मंजूरी दी थी, जिनमें से 18 ने अपना सिस्टम तैयार कर हमसे कनेक्ट कर लिया है और बड़ी संख्या में कंपनियां उनकी मदद से कंप्लायंस कर रही हैं। एप्लिकेशन के मोर्चे पर भी बेसिक काम हो चुका है।

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