बीजिंग
नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पांच दिनी भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सुधरते रिश्तों को लेकर चीन बुरी तरह से बौखला गया है। चीन ने भारत-नेपाल के बीच आर्थिक मदद का भी उपहास उड़ाया और कहा कि भारत खुद आर्थिक रूप से कमजोर है और दूसरे की मदद करने को चला है। यदि चीन चाहता तो नेपाल को और अधिक मदद देकर भारत को दरकिनार कर सकता था लेकिन उसका इरादा भारत द्वारा नेपाल को दी जा रही आर्थिक मदद पर कोई लड़ाई छेड़ने का नहीं है।चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भारत द्वारा नेपाल की आर्थिक मदद पर कहा कि भारत को भू-राजनीतिक सोच भूलकर नेपाल के लिए चीन के साथ काम करते हुए त्रिकोणीय सहयोग को मजबूत करना चाहिए।
अखबार ने लिखा है कि नेपाल के पीएम देउबा की भारत यात्रा के दौरान दोनों देश 25 लाख डॉलर के एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगे। चीन ने कहा कि यदि भारत ने नेपाल में बढ़ रहे चीन के प्रभाव का सामना करने के लिए यह मदद कर रहा है तो करे, क्योंकि इससे नेपाल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप से उबर सकेगा। अखबार ने व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग करते हुए लिखा कि वैसे तो नेपाल और चीन के बीच सकारात्मक संबंध स्थापित हो चुके हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि नेपाल नई दिल्ली के साथ भी रणनीतिक महत्व बरकरार रखना चाहता है। ऐसे में भारत और चीन के बीच सैंडविच बने नेपाल के लिए यह मदद आर्थिक विकास के अनुकूल ही होगी। उसने लिखा कि भारत की रकम से नेपाल का विकास होने से वहां के नागरिकों की उपभोक्ता शक्ति बढ़ेगी जिसका संभावित फायदा नेपाल में चीन कंपनियों के बाजार को ही मिलेगा।
‘ग्लोबल टाइम्स’ ने अपनी ताकत का एहसास कराते हुए कहा है कि नेपाल की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए चीन ने उसकी आर्थिक मदद के साथ-साथ वहां निवेश भी बढ़ाया है। लेकिन बीजिंग के पास नेपाल को लेकर भारत का विरोध करने के लिए युद्ध लड़ने की कोई योजना नहीं है। अन्यथा चीन के साथ खड़े रहने के लिए हम नेपाल को कहीं अधिक आर्थिक मदद दे डालते। अखबार ने दंभ भरते हुए लिखा कि हाल ही में नेपाल शिखर सम्मेलन के दौरान चीन इस हिमालयी देश में 8.2 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर चुका है।
ग्लोबल टाइम्स’ ने भारत की खिल्ली उड़ाते हुए लिखा है कि – ‘नई दिल्ली नेपाल को आर्थिक मदद की कोशिशों में जुटा है। लेकिन वह बताए कि जिस देश की आर्थिक हालत कमजोर है, क्या वह किसी अन्य देश को कुछ दे सकता है? इन मौजूदा हालातों का अर्थ यह है कि नई दिल्ली क्षेत्रीय प्रभाव में चीन के मुकाबले नेपाल को किसी भी सूरत में फायदा नहीं दिला सकता है। चीनी सरकार के मुखपत्र ने धमकी दी कि यदि भारत द्वारा चीन और नेपाल के बीच आर्थिक सहयोग पर गलत भू-राजनीतिक व्याख्या दी गई तो उसे नेपाल का समर्थन जीतने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। उसने लिखा कि भारत की आर्थिक ताकत, चीन के जीडीपी का महज पांचवां हिस्सा है। ऐसे में नेपाल के समर्थन के लिए भारत को चीन से जीतने की कोशिश तक नहीं करनी चाहिए।