डेरा सच्चा सौदा के सरगना गुरमीत सिंह की गिरफ्तारी पर हुई हिंसा और तोड़-फोड़ को लेकर सारा देश दुखी और शर्मिंदा है लेकिन भाजपा बिल्कुल मस्त है। उसे कोई परवाह नहीं है। पंजाब और हरयाणा के उच्च न्यायालय ने हरयाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा प्रहार किया है। उसने कहा है कि वोट बैंक की खातिर सरकारों ने आत्म-समर्पण कर दिया है। नेता लोग जब मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हैं तो वे किसी पार्टी के नहीं, प्रदेश और देश के प्रतिनिधि बन जाते हैं। उन्हें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। अदालत की इस खुली भर्त्सना का भाजपा पर कोई असर नहीं है। लगभग 40 लोग मौत के घाट उतर गए और करोड़ों रु. की संपत्ति का विनाश हो गया लेकिन सत्तारुढ़ लोगों के सिर पर जूं भी नहीं रेंग रही है। इसकी वजह क्या हो सकती है ?
इसका पहला कारण तो यह हो सकता है कि रामपाल कांड और जाट-आंदोलन के समय भी हरयाणा में यही हुआ था और मुख्यमंत्री को कोई खरोंच नहीं आई थी। दूसरा कारण तो बड़ा रहस्यमय है। 2017 में जो हाल खट्टर का है, वही 2002 में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात में था। दोनों अनुभवहीन मुख्यमंत्रियों ने सावधानी नहीं बरती और लोगों का खून बहा। अब आप ही बताइए कि मोदी किस मुंह से खट्टर को हटाए। खट्टर तो छोटे मोदी बन गए हैं। जैसे गुजरात में राजधर्म का उल्लंघन हुआ था, वैसे ही अब हरयाणा में हो रहा है। तीसरा, गुजरात के रक्तपात से भाजपा और मोदी को फायदा हुआ तो अब खट्टर को क्यों नहीं होगा ? गुरमीत के प्रति खट्टर ने सहानुभूति दिखाई तो उसके लाखों अनुयायी क्या अब खट्टर का कर्ज नहीं चुकाएंगे ? लेकिन यह तर्क कमजोर है। गुजरात में वह मामला हिंदू-मुसलमान का बन गया था, यहां हरयाणा और पंजाब में वह एक भ्रष्ट और पाशविक ढोंगी के विरुद्ध आम आदमी का बन जाएगा। चौथा, अकेले खट्टर ही नहीं, पंजाब और हरयाणा के सभी राजनीतिक दलों ने ‘डेरा सच्चा सौदा’ में जाकर मत्था टेका है। खट्टर की जगह चौटाला या भूपेंद्र हुड्डा होते तो क्या वे भी यही नहीं करते, जो खट्टर ने किया है ? पांचवां, खट्टर को तो अगला चुनाव हारना ही है। अब किसी नये भाजपा नेता का भविष्य चौपट क्यों किया जाए ? कुल मिलाकर इस ‘डेरा सच्चा सौदा’ कांड ने हिंदुत्व और भाजपा की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया है। इसने यह संकेत दिया है कि भाजपा के पास दृढ़ इच्छा-शक्तिवाला कोई नेतृत्व नहीं है। यह कांड लोकतंत्र के लिए भी कलंक सिद्ध हुआ है। वोट बैंक के लालच में लोकतांत्रिक नेतागण शासक के राजधर्म को भूल जाते हैं।