केंद्रीय मंत्रिमंडल में चार राज्यमंत्रियों की पदोन्नति और नौ नए मंत्रियों की नियुक्ति स्वागत योग्य है। यह काम साल भर पहले हो जाता तो बेहतर रहता लेकिन अब हुआ तो और भी अच्छा रहा। इसलिए अच्छा रहा कि पिछले साल की गई फर्जीकल स्ट्राइक और नोटबंदी इन मंत्रियों के मस्तक पर भी चिपक जाती लेकिन अब इन सुयोग्य पूर्व राज्यमंत्रियों और नए मंत्रियों से देश आशा करेगा कि वे सरकार के काम-काज को अब अधिक सार्थक, सगुण और साकार बनाएंगे। पिछले तीन साल में सरकार ने कई अच्छी पहलें की हैं और राजनीतिक भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में कोई खास गुणात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है। मुझे उम्मीद है कि जिन चार सुयोग्य राज्यमंत्रियों को पूर्ण मंत्री बनाया गया है, वे अपने-अपने विभाग में कुछ न कुछ चमत्कारी काम करके दिखाएंगे। जो नए नौ मंत्री बनाए गए हैं, उनमें चार तो पुराने नामी-गिरामी और सफल नौकरशाह रहे हैं। वे निश्चित रुप से मोदी-मंत्रिमंडल की गुणवत्ता को बढ़ाएंगे। अन्य राज्यमंत्रियों में कुछ तो नए हैं लेकिन ज्यादातर ऐसे हैं, जो राजनीति में काफी पहले से हैं। वे अच्छा काम तो करेंगे ही, अपने-अपने राज्यों में भाजपा के जनाधार को मजबूत भी करेंगे। केरल के अल्फोंस और कर्नाटक के अनंत हेगड़े इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। इन सभी मंत्रियों में से ज्यादातर को मैं व्यक्तिगत रुप से जानता हूं। वे ईमानदार, निष्ठावान और सेवाभावी हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा या उसके बाहर अन्य सुयोग्य लोग उपलब्ध नहीं है लेकिन मोदी और शाह के लिए यह जरुरी है कि वे अपनी हीनता-ग्रंथि से मुक्त हों। वे जरा सीखे इंदिरा गांधी से, जिन्होंने 1967 में ऐसे-ऐसे कांग्रेसी और बाहरी लोगों को अपना मंत्री बनाया, जो उनसे भी अधिक अनुभवी और योग्य थे। वे कोई भी निर्णय लेते वक्त अपने विरोधियों और वरिष्ठों से सलाह लेना भी नहीं भूलती थीं। ये अगले दो साल भाजपा के लिए बहुत निर्णायक होंगे। हालांकि विरोधियों की आज इतनी दुर्दशा है कि वे 2019 में इस सरकार के लिए कोई खतरा खड़ा नहीं कर सकते लेकिन कौन जानता है कि अगले दो साल में कहीं कोई बड़ा जन-आंदोलन उठ खड़ा न हो।