नई दिल्ली
ट्रंप प्रशासन ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए बराक ओबामा प्रशासन के उस ऐम्नेस्टी प्रोग्राम को रद्द कर दिया है जिसके तहत अवैध तौर पर अमेरिका आये प्रवासियों को रोजगार के लिये वर्क परमिट दिया गया था। ट्रंप सरकार के इस कदम से दुनियाभर के अमेरिका में रह रहे करीब से 800,000 कामगारों पर असर पड़ना तय है। जिनमें सबसे करीब 7000 से ज्यादा अमेरिकी भारतीय शामिल हैं। ट्रम्प के फैसले से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को करीब 13 लाख करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका है।
अमेरिका के अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस ने कहा कि मैं आज यहां यह घोषणा करता हूं कि डिफर्ड ऐक्शन फॉर चिल्ड्रन अराइवल (DACA) नामक कार्यक्रम जो ओबामा प्रशासन में प्रभाव में आया था, उसे रद्द किया जाता है। गौरतलब है कि डीएसीए के तहत बिना उचित दस्तावेज के बचपन में देश में आए प्रवासियों को वापस भेजने से बचाने का प्रावधान किया गया था। डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स (डीएसीए) नाम का यह प्रोग्राम ओबामा प्रशासन ने 2012 में लागू किया था। फैसले के बाद एपल प्रमुख टिम कुक और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने ट्रम्प के फैसले की निंदा की है। जबकि, जकरबर्ग ने कहा कि यह हमारे देश के लिए दुखद दिन है। यह फैसला युवाओं को अमेरिकी सपने दिखाने के बाद उनके साथ क्रूरता है।
डीएसीए रद्द करने का ट्रंप प्रशासन ने जो फैसला लिया है इसका तुरंत कोई असर नहीं दिखेगा। गृह विभाग को धीरे-धीरे सबकी राहत खत्म करने को कहा गया है। अब राहत के इच्छुक अवैध प्रवासी डीएसीए के तहत आवेदन नहीं कर पाएंगे। पहले से राहत पा चुके लोगों की सुविधा जारी रहेगी। परमिट खत्म होने तक वह काम कर सकेंगे। राष्ट्रपति ट्रम्प ने फैसला कांग्रेस पर छोड़ दिया है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कांग्रेस को ऐसे सुधार लाने चाहिए, जो अमेरिकियों के हित में हों। कांग्रेस को अब 6 माह में कानून बनाना होगा। इस साल कांग्रेस ओबामाकेयर की जगह नया कानून नहीं ला पाई थी। ऐसे में अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर भी किसी कानून पर संशय है।
दरअसल, इस सवाल पर Jagran.com से खास बातचीत करते हुए राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर सुब्रतो मुखर्जी ने बताया कि चूंकि ट्रंप की नीति शुरु से ही ओबामा के खिलाफ रही है। इसलिए, डीएसीए के मुद्दे को अलग नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि ट्रंप मानते है कि अमेरिका में रह रहे अमेरिकी नागरिक उनकी पहली प्राथमिकता है। ऐसे में जब शरणार्थी संकट की बात आयी तो उनकी नीति बिल्कुल साफ थी कि उस पर रोक लगे। वे लगातार राष्ट्रीयता की भावना पर जोर दे रहे है अमेरिकी नागरिक को अहमियत।
सुब्रतो मुखर्जी का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप देश के लिए लोकप्रिय पॉलिसी बनाना चाहते हैं। अमेरिका में कम शिक्षित लोगों के लिए बेरोजगारी एक बहुत बड़ा संकट है। यहां पर माइनिंग और ट्रेडिशनल सेक्टर से जुड़े लोगों के सामने रोजगार की बड़ी समस्या है। वहां के छोटे शहरों में रोजगार एक परेशानी है। ऐसे में ट्रंप मैक्सिको वॉल खींचने की बात कर रहे हों या फिर शरणार्थियों को देश में ना आने देने की लेकिन उनका मुख्य मकसद अमेरिकन फर्स्ट की नीति है।
दरअसल, जिस तरह से ट्रंप लगातार ओबामा प्रशासन के फैसले को पलटते हुए देश हित में फैसले ले रहे हैं उससे वहां पर रहे भारतीयों को भी झटका लग रहा है। डीएसीए पर ट्रंप प्रशासन के फैसले के चलते सात हजार भारतीय लोगों के सामने संकट पैदा होना तय है। ऐसे में सुब्रतो मुखर्जी का कहना है कि अमेरिका में अगर पॉलिसी बदलेगी तो हमारे देश के सामने समस्या आएगी। ऐसे में विदेश जा रहे भारतीयों को ये सोचने की जरुरत है कि वह क्यों ना अपने देश के अंदर रहकर काम करे।
आज पूरी दुनिया में पूरी उत्पादन की प्रक्रिया इतनी बदल चुकी है कि उसमें ज्यादा लोगों की आवश्यकता नहीं रह गई है। ड्रोन और अन्य मानव रहित मशीनों का लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में जिस तरह की पॉलिसी ट्रंप ने अपनाई है उसको लेकर सुब्रतो मुखर्जी का यह मानना है कि इससे ट्रंप की पॉपुलरिटी और बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि आज जो भी अमेरिका कर रहा है उसे भारत को बेहद संजीदा होकर देखने की जरूरत है। हालांकि, सुब्रतो मुखर्जी का कहना है कि भारत के साथ अमेरिका का रक्षा संबंध पहले की तुलना में काफी मजबूत हुआ है। इसलिए, इसे इस तरह से नहीं देखा जाना चाहिए कि ट्रंप भारतीयों को ध्यान में रखकर उनके खिलाफ कोई पॉलिसी बना रहा है। ऐसे में वहां पर रह रहे भारतीयों के लिए यह परेशान कम नहीं होनेवाली है। अमेरिकी भी संप्रभु देश है और उसके हिसाब से उसे बदलना पड़ेगा।