हाल में हुए सर्वेक्षणों में 74 प्रतिशत लोगों ने माना कि सरकारी अस्पतालों में खरीद/आपूर्ति में होने वाला भ्रष्टाचार आम है जबकि 2 प्रतिशत ने कहा कि ऐसा नहीं है। 24 प्रतिशत लोग इसके बारे में निश्चित नहीं थे। सरकारी अस्पतालों में उपकरण के खराब होने और ऑक्सीजन की अनुपलब्धता के कारण बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हुई को देखते हुए लोकल सर्कल ने यह सर्वेक्षण कराया। इस सर्वेक्षण में 32,000 से ज्यादा लोगों ने वोट किया।
दूसरे सर्वेक्षण में 59 प्रतिशत नागरिकों ने यह माना कि शहर के सरकारी अस्पतालों में सामानों एवं दवाओं की चोरी और बिक्री आम है। 3 प्रतिशत लोगों ने माना कि ऐसा नहीं है जबकि 38 प्रतिशत लोग इस बारे में निश्चित नहीं थे और अपने विचार जाहिर नहीं किए।
लोकल सर्कल ने अपने बयान में कहा, “ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों को बाहर के व्यक्तियों को कम दाम में दवाइयां बेचते हुए पकड़ा गया है। यहां तक कि सीरिंज और पट्टियों जैसी चीजों को बाहरी लोगों को बेचा गया। सरकारी अस्पताल में दवाइयां पहुंचाने वाले अधिकांश आपूर्तिकर्ताओं को अपने बिल पास कराने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है।”
तीसरे सर्वेक्षण में लोगों से पूछा गया कि सरकारी अस्पतालों में जाने का प्रमुख कारण क्या है। केवल 15 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह सरकारी अस्पतालों पर निजी अस्पतालों से ज्यादा विश्वास करते हैं और 16 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह कम लागत के कारण वहां जाते हैं। हैरानी की बात है कि 65 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे सरकारी अस्पतालों में नहीं जाते और 4 प्रतिशत ने कहा कि सरकारी अस्पताल ही उनके शहर में एकमात्र विकल्प है।
बयान में आगे कहा गया, “यह पता चलने के बाद कि राज्य सरकार के अस्पतालों में खराब गुणवत्ता वाले सेवाओं का मूल कारण भ्रष्टाचार है, आखिरी सर्वेक्षण में उपभोक्ताओं से पूछा गया कि राज्य सरकार के अस्पतालों में भ्रष्टाचार को कैसे कम किया जा सकता है।”
भ्रष्टाचार कम करने के सवाल पर 40 प्रतिशत लोगों ने कहा कि राज्य की भ्रष्टाचार रोधी इकाइयों को मजबूत करके ऐसा किया जा सकता है। 18 प्रतिशत ने कहा कि इन अस्पतालों का निजीकरण करके ऐसा किया जा सकता है और 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक खरीद को अनिवार्य करके भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है।