श्री यशवंत सिन्हा और अरुण जेटली के बीच चली तकरार से क्या भाजपा को कोई फायदा हो रहा है ? सिन्हा अटलजी की भाजपा सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं और जेटली आजकल मोदी सरकार में वित्तमंत्री हैं। सिन्हा ने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखकर नोटबंदी और जीएसटी के लिए पूरी तरह जेटली को जिम्मेदार ठहराया है। इस पर जेटली को गुस्सा आ जाना स्वाभाविक है, क्योंकि नोटबंदी से बेचारे जेटली का क्या लेना देना ? जेटली ने तो कभी ये दावा भी नहीं किया कि वे इस महान क्रांतिकारी कदम के जनक हैं। वे वित्तमंत्री जरुर हैं लेकिन उन्हें शायद इसकी भनक भी नहीं थी कि मोदीजी नोटबंदी लानेवाले हैं। जब वे ले ही आए तो बेचारे जेटली क्या करते ? क्या वे मंत्रिमंडल में उनका विरोध करते ? वे विरोध कैसे करते ? वे तो संसद की अपनी सदस्यता के लिए भी मोदीजी के मोहताज़ हैं। क्या मुफ्त में मिली नौकरी (अपना वित्तमंत्री पद) छोड़ने की हिम्मत उनमें है ? नहीं है। इसीलिए सिन्हा ने जब उनका नाम घसीटा तो उन्होंने भी कह दिया कि सिन्हा 80 बरस से ऊपर हैं लेकिन नौकरी की तलाश में हैं। जब नरेंद्र मोदी-जैसा अति कृतज्ञ स्वयंसेवक या प्रधानसेवक आडवाणी और जोशी जैसे ‘बंद दिमागों’ को नौकरी देने के लिए तैयार नहीं है तो सिन्हा उससे किसी नौकरी की आशा कैसे कर सकते हैं ? सिन्हा ने स्वयं कश्मीर जाकर जो नई पहल की थी, उसे जानने के लिए हमारे ‘सर्वज्ञजी’ ने उन्हें दस मिनिट तक का समय नहीं दिया लेकिन उनके बेटे जयंत सिन्हा से उनके खिलाफ लेख लिखवा दिया। जयंत को राज्य वित्तमंत्री पद से हटाकर विमानन राज्यमंत्री बनाया गया है। जयंत अपने पिता ही नहीं, पिता के मित्रों का भी खूब सम्मान करता है लेकिन वह क्या करे ? वह भी जेटली की केटली से चाय पीने को मजबूर है। लेकिन वह जेटली से बेहतर निकला। उसने यशवंतजी के तथ्यों के जवाब में तथ्य और तर्क के जवाब में तर्क रखे लेकिन जेटली ने क्या किया ? जेटली ने अपनी केटली की गर्मागर्म चाय सिन्हा के सिर पर उंडेल दी। इसका लाभ कौन उठा रहा है ? इसका लाभ कांग्रेस को मिल रहा है। जेटली ने वित्तमंत्री मनमोहनसिंह और प्रणब मुखर्जी की तारीफ की और इन दोनों ने मोदी के महान फैसलों के बारे में जो कहा था, अब उसी का विस्तार सिन्हा ने अपने लेख में किया है।