नेपीता
रोहिंग्या मुस्लिम समस्या पर चीन ने तीन चरणों का प्रस्ताव रखकर उसको क्रियान्वित करने का म्यांमार और बांग्लादेश से अनुरोध किया है। यह प्रस्ताव रखाइन प्रांत को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जहां से छह लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान पिछले दो महीने में भागकर बांग्लादेश गए हैं। यह प्रस्ताव सोमवार को 51 एशियाई और यूरोपीय देशों के राजनयिकों की बैठक के दौरान रखा गया।
म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर कई वर्षो से समस्या बनी हुई है। म्यांमार 11 लाख की आबादी में से ज्यादातर को अपना नागरिक नहीं मानता और उन्हें देश की संस्कृति से छेड़छाड़ का दोषी ठहराता है। 25 अगस्त को रोहिंग्या आतंकियों के हमले में दर्जन भर से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की मौत के बाद सेना की कार्रवाई में म्यांमार के इन अल्पसंख्यकों में भगदड़ मच गई। रोहिंग्या मुसलमान जमीनी मार्ग और जल मार्ग से भागकर बांग्लादेश पहुंचे।
संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के तमाम देशों ने अल्पसंख्यकों के पलायन पर चिंता जताई। उसी का नतीजा है कि शरणार्थियों की वापसी पर विचार के लिए म्यांमार की राजधानी में 51 देशों के प्रतिनिधियों की बैठक हो रही है। इस बैठक में चीन समेत कई देशों के विदेश मंत्री भी हिस्सा ले रहे हैं।
बांग्लादेश का दौरा करने के बाद रविवार को म्यांमार पहुंचे चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने कहा कि समस्या के समाधान के लिए दोनों संबद्ध देशों का मिल-जुलकर काम करना जरूरी है। उनके सुझाए मसौदा के तहत पहले चरण में शांति स्थापित करनी होगी जिससे लोगों के मन में विश्वास पैदा हो और कानून व्यवस्था स्थापित हो। पिछले हफ्ते म्यांमार आए अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने भी ऐसी ही बातें कही थीं।
लेकिन उन्होंने अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की घटनाओं की विश्वसनीय जांच की भी आवश्यकता जताई थी। वांग ई के अनुसार जब स्थापित हो जाए तब दोनों देशों को मिलकर शरणार्थियों की वापसी की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। तीसरे चरण में गरीबी की समस्या को दूर करने के प्रयास करने होंगे, जो विस्थापन की समस्या की सबसे बड़ी वजह होती है।