चुनाव राजनितिक दलोँ को क्या क्या रंग दिखलाता है इसका ताजा उदाहरण सवर्ण वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर या यूं कहे की सवर्ण गरीबोँ को सरकारी नौकरियो में और शिक्षण के क्षेत्र में १० प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय है। इसके लिए संवैधानिक संशोधन किया गया। संसद में सिर्फ दो दिन में इसे पारित किया गया। कोंग्रेस समेत करीब करीब सभी दलों ने इसका समर्थन किया। हालांकि जैसे अनुमान लगाया जा रहा था उसी तरह यह विधेयक पारित होते ही इसे सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट का फैंसला जो भी हो लेकिन देश की आधी आबादी जिस वर्ग की है और जिसके बिना दुनिया ही नहीं वह महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल सदन में लंबित है। वर्षो से लंबित है।लेकिन उसकी किसी दल को और सत्तानशीन पक्ष भाजपा को चिंता नहीं। यदि ये बिल पारित होता है तो देश की विधानसभाओ में और संसद में महिलाओं 33 % आरक्षण मिलेंगा। हाल में सिर्फ पंचायत और मनपा नगर निगमों में ही महिलाओ को 33 % आरक्षण का लाभ मिल रहा है। इसे संसदीय सदनों में भी लागू करना है।
चूँकि ये मूल प्रावधान कोंग्रेस के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने किया था इसलिए हो सकता है की गाँधी-नेहरु परिवार से राजनितिक दुश्मनी रखनेवाला भाजपा इसे सदन में नहीं ला रहा हो। लेकिन इन जाती राजनितिक रंजिश की वजह से देश की अधि आबादी को अन्याय हो रहा है। आधी आबादी वाली महिलाओ को आधा लाभ मिला है। यदि संसद में ये पारित हो जाय तो आधी आबादी को पूरा लाभ मिले और सभी राज्यों की विधानसभा और लोकसभा सदन में 33 % के तहत चुन कर आई महिलाएं बड़े गर्व के साथ सदन में प्रवेश कर पाएंगी। ऐसा नहीं की कोंग्रेस ने इसका विरोध किया हो। कोंग्रेस ने सामने से केंद्र की मोदी सरकार से कहा की महिला आरक्षण बिल सरकार लाये, कोंग्रेस पूरा समर्थन देंगी। जिस तरह गरीब सवर्णों को 10 % आरक्षण देने के लिए कोंग्रेस समेत सभी दलों ने समर्थन दिया उसी तरह महिला आरक्षण बिल को भी समर्थन मिलेंगा ही इसमें कोई शक की गुंजाइश ही नहीं। सवाल सिर्फ ये है की सरकार इस विधेयक को सदन में कब पेश करेंगी।
भाजपा बेटी बचावो बेटी पढावो का नारा देती है लेकिन देश की बेटियाँ 33 % आरक्षण के तहत राज्यों और केंद्र में सत्ता में भागिदार बने इसके लिए भी भाजपा आगे आये। हाल में चुनाव के वक्त भाजपा समेत सभी दल महिलाओं को पुरुष प्रत्याशी की तुलना में सबसे कम प्रमाण में टिकिट देते हे। लेकिन यदि 33 प्रतिशत आरक्षण का कानून विधानसभा और लोकसभा के लिए भी लागू हो तो सभी दलों को 33 प्रतिशत महिलाओं को टिकिट देनी ही पड़ेंगी और सभी राज्यों की विधानसभा में 33 प्रतिशत महिलाएं होंगी तो महिलाओं को ज्यादा न्याय मिलेंगा। मंत्रिमंडल में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढेगा। और सही मायने में महिला सशक्तिकरण हो सकेंगा। भाजपा को मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक के प्रति संवेदना होती है, जगती है तो उसी तरह सभी महिलाओं को न्याय देने के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण बिल के प्रति भी वैसी ही संवेदना क्यों नहीं जगती..? क्या भाजपा महिला विरोधी है…? क्या भाजपा नहीं चाहती की सदनों में और सरकार में महिलाओ की भागीदारी बढे…? १० प्रतिशत की तरह 33 प्रतिशत के लिए कब जागेंगा प्रेम..? महिला संगठन भी सरकार पर दबाव लाये और सदन में बड़े सन्मान के साथ प्रवेश करे। वेव किसी की मोहताज नहीं है ये उनका हक्क और अधिकार है। जब तक ये पूरा नहीं होता तब तक सभी विधानसभा और लोकसभा आधी अधूरी है।