अयोध्या- ग्रामीण पत्रकार एक सजग प्रहरी बनकर गरीबों, मजलूमों, मजदूरों, असहायों की सेवा करता है किंतु इस प्रकार की सेवाएं देने वाले सेवकों का कोई नहीं होता, आखिर ऐसा खेल कब तक चलेगा,कि एक सच्चे समाज सेवक को लोग कब तक गिरी हुई नजरों से देखा जाएगा। ग्रामीण पत्रकारिता करना मतलब जान जोखिम में डालना है एक निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकार से नफ़रत करने वालों की कमी नहीं है जबकि सच्चाई ये है कि गांवों से जो भी नेता बनकर उभरा है उसको एक पत्रकार ने ही बनाया है यदि किसी सरकारी विभाग में मेहनत के बल पर किसी पद पर तैनाती यदि किसी को मिली है तो उसका नाम पत्रकार ही आगे बढ़ाने वाला है। जिसके बल पर लोग शादी तक में लड़की वालों को दहेज रूपी लोभ के हथियार से लूटते हैं, लेकिन कहीं एक पत्रकार ने उन्हीं लोगों के कुछ ग़लत करने पर समाचार प्रकाशित किया तो उस पत्रकार से बड़ा उनका दुश्मन कानून की कलम चलाने वाला अधिकारी नहीं है जिसकी कलम से संबंधित ब्यक्ति को सजा मिलती है।दोष तो केवल और केवल एक सच्ची पत्रकारिता करने वाले का ही माना जाता है। छुटभैये नेताओं को पत्रकार ही जमीं से उठाकर आसमान तक पहुंचाता है। किंतु बड़े पद पर पहुंचने के बाद यही नेता पत्रकार के साथ साथ आम जन के उन लोगों को भी भूल जाते हैं जिनके वोटों से ये जनप्रतिनिधि कहलाने योग्य बनते हैं।ग्राम पंचायत सदस्य के चुनाव से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक किसी को बनाने में एक पत्रकार की अहम भूमिका होती है लेकिन पदवी व रुतबा हासिल होने के संबंधित ब्यक्ति उस पत्रकार को जरूर भूल जाता है जिसकी कलम की धार के उसे सफलता मिली होती है। गांवों में गरीबों हक कोटेदार मारे तो उसका पत्रकार दुश्मन, प्रधान के विरुद्ध सच्चाई लिखे तो उसका पत्रकार दुश्मन, किसी भी जनप्रतिनिधि के विरुद्ध सच को लेकर कलम चले तो उसका पत्रकार दुश्मन,शिक्षक समय से विद्यालय न पहुंचे तो उसका पत्रकार दुश्मन,नाली,खड़ंजा, चकमार्ग, खलिहान, तालाब या अन्य प्रकार की सरकारी जमीन पर किसी का अवैध कब्जा हो तो उसको लेकर कलम चलाने उसका पत्रकार दुश्मन, किसी सरकारी विभाग का कोई अधिकारी, कर्मचारी गलत या भ्रष्टाचारी करे तो सच लिखने वाला पत्रकार ऐसे लोगों का दुश्मन,राह चलते दादागिरी करने वालों के विरुद्ध कलम चलाने वालों का पत्रकार दुश्मन,सच तो ये है कि पत्रकारों के दुश्मनों की कमी नहीं है, और जिसका आज तक कोई दुश्मन न हो सब छोड़ कर सच्चाई और ईमानदारी की कलम पकड़कर पत्रकारिता करने लगे सच कहता हूं दुश्मनों की कतारें लग जाएंगी बिन बुलाए बिन बनाए दुश्मनों की फौज खड़ी हो जाएगी। ये फौज क्या क्या कर डालेगी मालूम नहीं। वैसे घटिया तरीके की सोच का शिकार ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकार होते हैं इन्हीं को उक्त प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।सबसे जोखिम भरी पत्रकारिता ग्रामीण क्षेत्रों की है, लेकिन ये मैं देख रहा हूं कि अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों से कलम के सिपाही भी निकलते हैं, और अपनी कलम की पैनी धार से वार करने से नहीं चूकते और इन सिपाहियों को अंजाम की परवाह नहीं रहती। लेकिन कुछ चमचाबाज पत्रकार हैं जो अच्छे पत्रकारों की साख मिट्टी में मिलाए बैठे हैं। ऐसे पत्रकारों को मैं न पसंद करता हूं न इनसे कोई संबंध रखता हूं,मैं तो मां सरस्वती की कृपा से देश व समाज की सेवा करता हूं यही मुझे पसंद है। मैं उन पत्रकार वंधुओं को सदा नमन करता हूं जो सच लिखने का जज्बा रखते हैं और सच्चे कलम के सिपाही हैं, वह सच्चे देशभक्त हैं!