नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति और देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत-रत्न से नवाजे गए प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने राजनीति की एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए राजनीति के शिखर तक आसीन हुए। कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें 10 अगस्त को दिल्ली में आर्मी रिसर्च ऐंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनके दिमाग में बने खून के थक्के को हटाने के लिए उनकी ब्रेन सर्जरी की गई थी, जिसके बाद से ही वह वेंटिलेटर पर थे। 1 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में जन्मे प्रणब मुखर्जी ने 1969 में कांग्रेस के जरिए सियासत की दुनिया में कदम रखा। उसी साल वह राज्यसभा के लिए चुने गए। उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भरोसेमंद सहयोगियों में गिना जाता था। उसके अलावा वह 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्य सभा के लिए चुने गए।
इसके अलावा वह 2004 और 2009 में पश्चिम बंगाल की जंगीपुर सीट से 2 बार लोकसभा के लिए भी चुने गए। वह 23 सालों तक कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य भी रहे। प्रणब मुखर्जी की गिनती गांधी परिवार के करीबियों और भरोसेमंद नेताओं में होती थी। सोनिया गांधी को राजनीति में लाने के लिए मनाने वालों में प्रणब मुखर्जी को भी माना जाता है। 2004 में जब सोनिया ने पीएम बनने से इनकार किया और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया तो इस फैसले ने राजनीतिक पंडितों को हैरान किया था। तब प्रणब मुखर्जी पीएम पद के सशक्त दावेदार थे। मनमोहन सरकार में 2004 से 2006 तक वह रक्षा मंत्री, 2006 से 2009 तक वह विदेश मंत्री और 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे। 2012 में वह देश के 13वें राष्ट्रपति बने और जुलाई 2017 तक इस पद पर रहे।
कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे प्रणब मुखर्जी को पिछले साल ही मोदी सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया था। जुलाई 2012 से जुलाई 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे मुखर्जी 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय नागपुर में उसके एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता हिस्सा लिया था। इससे कांग्रेस असहज भी हुई थी। सियासी पारी शुरू करने के 14 साल बाद 1973 में वह पहली बार केंद्र सरकार में मंत्री बने। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में उन्हें इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट मंत्रालय में डेप्युटी मिनिस्टर बनाया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1982 से 1984 तक वह केंद्रीय वित्त मंत्री रहे। उन्हीं के वित्त मंत्री रहते हुए डॉक्टर मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का गवर्नर बनाया गया।
हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मुखर्जी खुद को कांग्रेस में अलग-थलग महसूस करने लगे और 1986 में राजीव गांधी से मतभेदों के बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम की एक नई पार्टी बनाई। 3 साल बाद उनकी फिर से कांग्रेस में वापसी हुई और उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदारों में शुमार थे मगर कुछ साल पहले कांग्रेस से अलग राह पकड़ना शायद उनके खिलाफ गया। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया। उसके बाद 1993 से 1995 तक वह वाणिज्य मंत्री रहे। 1995 से 1996 तक वह नरसिंह राव सरकार में भारत के विदेश मंत्री रहे।