हिरण पर क्यों लादें घास ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक —
आंध्र प्रदेश की सरकार ने पिछले साल अपने सारे स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी कर देने का फैसला किया और विधानसभा ने 19 जनवरी 2019 को उस पर मुहर लगा दी। भाजपा ने इसका विरोध किया और उसके दो नेताओं- सुदेश और श्रीनिवास ने उच्च न्यायालय में याचिका लगा दी। उच्च न्यायालय ने इस अंग्रेजी को थोपने के फैसले को गैर-कानूनी घोषित कर दिया लेकिन अब आंध्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय की शरण में चली गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर बहस की अनुमति दे दी है लेकिन राज्य सरकार के इस अनुरोध को निरस्त कर दिया है कि वह उच्च न्यायालय के फैसले को रोक दे। अर्थात अभी तो आंध्र में तेलुगु और हिंदी माध्यम से बच्चों का पढ़ाना जारी रखा जाएगा।
अपने पक्ष में आंध्र सरकार का तर्क यह था कि आंध्र के बच्चे यदि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ेंगे तो उन्हें देश और विदेश में नौकरियां आसानी से मिलेंगी। उसने यह प्रगतिशील कदम अपने बच्चों के पक्ष में उठाया है। यह तर्क बिल्कुल सही है, क्योंकि भारत में आज भी अंग्रेजी की गुलामी ज्यों की त्यों है। सरकारी नौकरियों में अंग्रेजी माध्यम को प्राथमिकता मिलती है और महत्वपूर्ण सरकारी काम-काज पूरी तरह से अंग्रेजी में होता है। जिस दिन सरकारी कामकाज से अंग्रेजी विदा होगी, उसी दिन से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल दीवालिए हो जाएंगे। अंग्रेजी के इसी अनावश्यक वर्चस्व के कारण देश में गैर-सरकारी निजी स्कूलों की बाढ़ आ गई है। अंग्रेजी माध्यम के ये स्कूल ठगी और ढोंग के अड्डे बन गए हैं। इसी ठगी को काटने का आसान रास्ता कुछ नेताओं को यह दिखने लगा है कि सभी बच्चों पर अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई थोप दी जाए लेकिन वे क्यों नहीं समझते कि शिक्षा की दृष्टि से यह कदम विनाशकारी है। यह आसान दिखनेवाला रास्ता, रास्ता नहीं, खाई है। इस खाई में हमारे करोड़ों बच्चों को गिरने से बचाना है। देश की सभी सरकारें आज तक इस मामले में निकम्मी साबित हुई हैं। दुनिया के किसी भी संपन्न और शक्तिशाली देश में बच्चों की शिक्षा विदेशी भाषा के माध्यम से नहीं होती। हमारे यहां बच्चों को जो अनिवार्य अंग्रेजी पढ़ाई जाती है, उसमें विफल होनेवालों की संख्या सारे विषयों में सबसे ज्यादा होती है। विदेशी भाषाओं को पढ़ने की उत्तम सुविधाएं जरुर होनी चाहिए लेकिन वे 10 वीं कक्षा के बाद हों और स्वैच्छिक हों। प्रादेशिक सरकारों और केंद्र सरकारों को ऐसा कानून तुरंत बनाना चाहिए कि विदेशी भाषा के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाए। अकबर इलाहाबादी के शब्दों में कहूं तो मैं कहूंगा, ‘हिरण पर घांस लादना बंद करें।’

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