लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा राज में सुशासन और रामराज तो बहुत दूर की बात है हर तरफ अंधेर नगरी चैपट राज का बोलबाला है। इस राज्य सरकार से न तो कोरोना का संक्रमण थम रहा है और नहीं कानून व्यवस्था पर नियंत्रण दिख रहा है। किसानों के बारे में उसकी कोई सोच ही नहीं है। प्रशासन में मनमानी का राज है। न कहीं ‘लाॅ‘ दिखाई दे रहा है और नहीं कहीं ‘आर्डर‘ का एहसास हो रहा है। प्रदेश दिन पर दिन विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है। सच तो यह है कि कोरोना संक्रमण के आगे भाजपा सरकार नतमस्तक है। मुख्यमंत्री जी के रोज नए आदेश-निर्देश जारी होते है परन्तु टीम-इलेवन अपने ही ढंग से काम करने की आदी है। फलतः सरकार की किरकिरी होती रहती है। कोविड-19 अस्पतालों में अव्यवस्था है, डाक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ को उपकरण भी ठीकठाक नहीं मिल पाते है। प्राईवेट अस्पतालों में लूट बदस्तूर जारी है। मौतों का सही हिसाब नहीं है। कानून व्यवस्था का आलम यह है कि मुख्यमंत्री जी जिस समय अफसरों से कानून व्यवस्था पर बैठक कर रहे थे उसी समय मिर्जापुर में कांस्ट्रक्शन कम्पनी के दो मैनेजरों को गोली मार दी गई। हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार के मामलों में प्रदेश की बदनामी देशभर में हो रही है। मेरठ में महिला का अपहरण और गैंगरेप की घटना दिल दहलाती है। कानपुर में वृद्ध व्यक्ति की सिर कूच कर हत्या कर दी गई। वाराणसी और बागपत में युवकों की हत्या हो गई। फर्रूखाबाद में एक बालक की हत्या हुई। अलीगढ़ में दलित बच्ची से गैंगरेप से जनता आक्रोशित है। यह घटना बहुत दुःखद एवं निन्दनीय है। भाजपा सरकार में किसानों को न खाद, न बिजली और नहीं फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है। फसल की लागत के डयोढ़े दाम और दुगनी आय का झांसा और चलने वाला नहीं। किसान को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और बड़े उद्योगपतियों का बंधक बनाने के लिए लाए गए कृषि विधेयकों को किसानों पर जबरन थोपने की कार्यवाही हो रही है। किसान आंदोलित है उसकी सुनवाई न होने से उसका आक्रोश बढ़ रहा है। भोलेभाले किसानों को अपने दुश्मन की पहचान कर उसका काम तमाम करने का अब मन बना लेना चाहिए। भाजपा का ग्राफ गिरता ही जा रहा है। सहयोगी दल भी रुष्ट है क्योंकि भाजपा नेतृत्व अपनी तानाशाही दिखाने से नहीं चूकता है। उसे कारपोरेट घरानों का हर हाल में हित साधना है। किसानों को भाजपा की शोषणकारी नीतियों से बचाने के लिए एक जिम्मेदार दल की तरह अकाली दल का एनडीए से अलग होने का निर्णय स्वागत योग्य है। इस निर्णय का अनुसरण और भी दल करेंगे। भाजपा के विरोध में न केवल जनता, विपक्ष व उनके सहयोगी दल हैं बल्कि उसके अपने कार्यकर्ता भी हैं क्योंकि उन्हें ही जनता के आक्रोश का सीधा सामना करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश में तो अभी से भाजपा के विधायक और सांसद विरोध में मुखर होने लगे है। हर मोर्चे पर विफल भाजपा सरकार में रहते उनका अपना भविष्य अंधेरे में होने का उन्हें डर सताने लगा है।