हरसिमरत का इस्तीफा देना और शिअद का एनडीए से नाता तोड़ना विश्वासघात: सीएम अमरिंदर


चंडीगढ़
कृषि विधेयकों पर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के एक और यू-टर्न को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सुखबीर बादल को आड़े हाथों लेते हुए कहा, शिअद अध्यक्ष ने अपनी संकुचित राजनैतिक चालों और झूठ से किसानों के हितों को बार-बार चोट पहुंचाई है। उनकी यह राजनैतिक चालें केंद्र सरकार के किसान विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, राज्य के संशोधन विधेयकों को, जिनका उनकी पार्टी ने विधानसभा में समर्थन किया था, रद्द करके सुखबीर ने न केवल अपने नैतिकता रहित होने का प्रदर्शन कर दिया है बल्कि भाजपा नेताओं के हालिया बयानों की भी पुष्टि की है। इससे साफ जाहिर होता है कि शिअद और भाजपा के दरमियान सांठ-गांठ है और हरसिमरत बादल का केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा देना और अकालियों की तरफ से एनडीए से नाता तोड़ना और कुछ नहीं बल्कि एक विश्वासघात था, जिसका मकसद किसानों को धोखा देना और केंद्रीय कानूनों के खिलाफ उनकी जंग को कमजोर करना था। मुख्यमंत्री ने बीते कुछ महीनों के दौरान अकालियों का जिक्र करते हुए कहा, पहले उन्होंने पूरे तन-मन से केंद्र सरकार के बनाए कृषि बिलों का समर्थन किया और बाद में इन्हें किसान विरोधी कहते हुए एनडीए का साथ छोड़ दिया। उसके बाद किसानों के समर्थन के बहाने राजनैतिक ड्रामेबाजी करते हुए पूरे राज्य में रोष रैलियां कीं। इतना ही नहीं, शिअद ने पहले तो राज्य सरकार के संशोधन विधेयकों के हक में खुलकर वोट दिया और अब इन्हें नकार रहे हैं। कैप्टन ने आगे कहा, शिअद द्वारा पंजाब और इसके किसानों से जुड़े इतने गंभीर मसले संबंधी बार-बार यू-टर्न लेना यह साबित करता है कि वह अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिए शैतान के साथ भी हाथ मिलाने से परहेज नहीं करेंगे।
कैप्टन ने आगे कहा, इस सबके बावजूद क्या सुखबीर यह आशा करते हैं कि किसान उनके दावों पर विश्वास करेंगे। उन्होंने सुखबीर को चुनौती देते हुए कहा कि शिअद अध्यक्ष एक वजह बताएं कि क्यों पंजाब के लोग खासकर किसान उनकी पार्टी पर भरोसा करें। मुख्यमंत्री ने कहा, यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि बादल परिवार अपने संकुचित हितों की रक्षा के लिए इस हद तक गिर गया है। मुख्यमंत्री ने सुखबीर का यह तर्क रद्द कर दिया कि अकालियों को राज्य सरकार के संशोधन विधेयकों को ठीक तरह से पढ़ने का मौका नहीं मिला। उन्होंने कहा, यह संभव ही नहीं हो सकता जबकि अकालियों के पास बड़े स्तर पर कानूनी मामलों के जानकार मौजूद हैं।

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