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लखनऊ:दिल्ली जाते हुये किसानों पर केन्द्र सरकार की बर्बरता जारी- प्रमोद तिवारी

लखनऊ। कांगे्रस वर्किंग कमेटी के सदस्य तथा आउट रीच कमेटी, उत्तर प्रदेश के प्रभारी प्रमोद तिवारी ने कहा है कि अपनी बात को लोकतांत्रिक ढंग से रखने के लिये पिछले एक सप्ताह से दिल्ली जाते हुये किसानों पर भारतीय जनतापार्टी की हरियाणा और केन्द्र सरकार की बर्बरता जारी है। सरकार नार्थ ईस्ट के अलगाववादियों से तथा कश्मीर के आतंकवादी समर्थक नेताओं से वार्ता तो कर सकती है, और उनके लिये कश्मीर तक जा भी सकती है परन्तु ‘‘धरती के भगवान’’ अन्नदाता से बात करने में हिचक रही है- क्योंकि अडानी और अम्बानी जैसे पंूूजीपति उससे नाराज हो जायेंगे, जो ‘‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’’ की तरह किसानों की उपज को ओने- पौने दाम में लेने की सुपारी ले चुके हैं । इसीलिये किसानों पर ‘‘जुल्म का सीरियल’’ जारी है। श्री तिवारी ने कहा है कि यदि कृषि कानून किसानो के हित में है तो सरकार बताये कि इस कानून के लागू होने के बाद भी धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी रु. 1868 घोषित होने के बावजूद भी 1000-1100 रुपये (एक हजार- ग्यारह सौ) में अपनी उपज को बेंचने पर किसान क्यों मजबूर है ? यही कहानी मकका सहित अन्य उपज के लिये भी है । न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी के बाद भी सरकार किसानों को उनका ‘‘हक’’ नहीं दिला पा रही है तो फिर बिना न्यूनतम समर्थन मूल्य यडैच्द्ध के किसानों को क्या मिलेगा ? यदि सरकार ईमानदार है और उसकी नीयति साफ है तो फिर डीजल- पेट्रोल का दाम विष्व की बाजार के अनुसार क्यों नहीं सस्ता किया जा रहा है ? जिससे कृषि में लागत कम आये। नये ‘‘कृषि कानून’’ में यह गारण्टी क्यों नहीं दी गयी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यडैच्द्ध जारी रहेगा, श्री तिवारी ने कहा है कि नये कृषि कानून के बाद किसान अपनी उपज बेंचने निकला है, उत्तर प्रदेश के किसान इसके गवाह है- तो फिर सरकार बताये कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यडैच्द्ध से अधिक क्यों नहीं मिल रहा है ? श्री तिवारी ने आग्रह किया है कि केन्द्र सरकार अपनी अक्षम हठधर्मिता छोंड़े, और ससम्मान अन्नदाताओं से वार्ता करे। उचित तो यह होता कि किसानों और उनके प्रतिनिधि मण्डल से सरकार वार्ता करती और जो गलती उसने पहले की है उसको सुधारती तथा किसानों के सुझाव के अनुसार कृषि कानून में संशोधन करती, कांगे्रस सहित सभी विपक्ष उसके इस कदम का समर्थन करते । केन्द्र सरकार किसानों के सुझाव के अनुसार ‘‘कृषि कानून’’ बनाये। किसी की समझ में एक बात नहीं आ रही है कि यदि नया कृषि कानून किसानों के हित में है तो फिर किसानों के सुझाव क्यों नहीं माने जा रहे हैं ? बल्कि किसानों पर वाॅटर कैनन और लाठिया बरसाई जा रही है। किसानों पर जिस तरह का जुल्म हो रहा है वह ‘‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’’ की याद दिला रहा है। श्री तिवारी ने कहा है कि हैदराबाद में विचारों के ‘‘जुड़वा भाइयों’’ की साजिश जारी है, चारमीनार की नगरी हैदराबाद में नगर निगम के चुनाव में भारतीय जनतापार्टी का मकशद 150 सीटों वाले नगर निगम को जीतना ही नहीं बल्कि ओवैसी जी के साथ नूराकुष्ती (मिली जुली) लड़कर, जिस तरह एक- दूसरे पर साम्प्रदायिक हमले किये गये हैं उसका एकमात्र उद््देश्य धर्म के नाम पर देश में धु्रवीकरण करना है। कल चुनाव प्रचार समाप्त हो गया, किन्तु इस चुनाव में जिस तरह केन्द्रीय गृृह मन्त्री अमित शाह, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री तथा स्थानीय सांसद ओवैसी जी ने भाषा का इस्तेमाल किया और बातें बोली है, उसे निर्वाचन आयोग खामोसी से देख रहा है और देश की जनता भी इसे देख व सुन रही है। मोदी समर्थक चैनल्स इसे भरपूर कवरेज दे रहे है। नगर निगम के चुनाव में भरपूर मतों के धु्रवीकरण का प्रयास कर रहे हैं, जिस सरकार को धु्रवीकरण रोकना चाहिए वहीं धु्रवीकरण करा रही है, वरना देश के इतिहास में नगर निगम के चुनाव में केन्द्रीय गृृहमन्त्री और अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्री तथा स्थानीय सांसद इस तरह की साम्प्रदायिक भाषा का प्रयोग नहीं करते, और न ही कोई इलेक्ट्राॅनिक चैनल, जो बड़े नगर निगम वाले स्थान चाहे मुम्बई हो, चेन्नई हो, दिल्ली हो या कोलकाता हो, उसे इतना कवरेज नहीं देते, तो फिर इसे क्यों दे रहे है ? श्री तिवारी ने कहा है कि आखिर कुछ तो गहरी चाल होगी कि जब पूरे उत्तर प्रदेश में उच्च सदन (विधान परिषद) का चुनाव हो रहा है तो ऐसे समय में आदरणीय मुख्यमन्त्री जी हैदराबाद को ‘‘भाग्यनगर’’ बनाने के लिये हैदराबाद जा रहे हैं। वहांॅ जिस तरह के भाषण हुये हैं उससे देश का आपसी भाईचारा और कौमी एकता को खण्ड- खण्ड करने की कोशिश हुई है। ऐसा लगता है कि ओवैसी जी वही बोलते है जिसकी पटकथा नागपुर में लिखी जाती है और डायरेक्षन दिल्ली के ‘‘साउथ ब्लाक’’ से किया जाता है। बिजली विभाग बकाये के नाम पर और अतिरिक्त लोड के नाम पर किसानों पर और आम उपभोक्ताओं पर बिजली विभाग द्वारा जो कहर जारी है उसे तत्काल रोका जाय। सच्चाई यह है कि पूर्वान्चल विद्युत वितरण निगम को ‘‘निजी हाथों’’ मंें सौंपने की धमकी देकर तथा कर्मचारियों पर तलवार लटकाकर विभाग से जुल्म ढाया जा रहा है । आम उपभोक्ताओं पर थ्ण्प्ण्त् लिखाई जा रही है, ‘‘शमन शुल्क’’ के नाम पर वसूली की जा रही है, इसे तत्काल रोकना चाहिए।

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