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मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में किया था किसानों के हितों का समर्थन : हरसिमरत

दिल्ली
शिरोमणि अकाली दल की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि केंद्र्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) पर अनाज की खरीद का आश्वासन देने से इंकार कर रही है, साथ ही वह भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के अनैतिकरण की तरफ बढ़ रही है। हरसिमरत कौर ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने भाषण में कहा कि इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2011 में मुख्यमंत्रियों की कार्यसमिति के अध्यक्ष के रूप में सिफारिश की थी कि किसानों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए। देशभर के किसान भी यही मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं समझ पा रही हूं कि क्या बदल गया है? सरकार यह मांग पूरी क्यों नहीं कर रही तथा साथ ही खेती कानूनों को रद्द क्यों नहीं कर रही। किसानों, नौजवानों तथा सामाजिक कार्यकत्र्ताओं के खिलाफ मामले क्यों दर्ज किए जा रहे हैं?
पूर्व मंत्री हरसिमरत कौर ने 26 जनवरी को हुई लाल किला ङ्क्षहसा की बाबत कहा कि आजादी आंदोलन के दौरान 70 फीसदी बलिदान देने वाले समुदाय के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया। यह अजीब बात है कि खुफिया विभाग की असफलता की कोई जांच नहीं हुई जिसके कारण हिंसक घटना हुई। यह स्पष्ट है कि केंद्र्र को 25 जनवरी को पहले ही पता था कि लोगों का एक वर्ग लाल किले तक परेड करने की तैयारी कर रहा था लेकिन मार्ग को बंद करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। इसी तरह ‘केसरी निशान’ को अपमानित किया जा रहा है। हरसिमरत ने कहा कि मैं आपको याद दिलाना चाहती हूं कि यह वही केसरी निशान है जिसे प्रधानमंत्री ने अपने सिर पर सजाया था।
पूर्व मंत्री ने किसानों के प्रति अहंकारी रवैया अपनाने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की। साथ ही कहा कि किसानों को बिचौलिया, नक्सली तथा खालिस्तानी कहा गया। यह भी कहा गया कि वे दिल्ली की सीमाओं पर ए.के.-47 असॉल्ट राइफलों के साथ बैठे हैं। ए.के.-47 राइफलों के साथ कौन खेती करता है? उन्होंने कहा कि केंद्र्र सरकार शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे किसानों के प्रति कठोर रवैया अपना रही है। यहां तक कि एक भी केंद्रीय मंत्री इतनी कड़कड़ाती ठंड में उनका हाल पूछने के लिए नहीं गया। हरसिमरत ने कहा कि मैंने कृषि मंत्री को पत्र लिखकर किसानों की भावनाओं से अवगत करवाया था तथा यह भी सूचित किया था कि किसान उनके आश्वासनों से संतुष्ट नहीं हैं। सरकार ने संसद के माध्यम से विधेयकों को धक्केशाही से पारित करने का निर्णय लिया तो शिरोमणि अकाली दल ने अन्नदाता के साथ एकजुट खड़े रहने का फैसला किया तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल के साथ-साथ एन.डी.ए. गठबंधन भी छोड़ दिया।

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