आखिर कब और कैसे थमेगी भारत और चीन के बीच अक्सर होने वाली हिंसक झड़प?

पहले की बात को यदि छोड़ भी दें तो करीब ढाई साल पूर्व 15 जून 2020 की रात को पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुए एक हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे। वहीं काफी संख्या में चीन के सैनिक भी मारे गए थे।

लीजिए, भारत और चीन की सेना के बीच एक और हिंसक झड़प हो गई। जी हां, तवांग, अरुणाचल प्रदेश में हुई झड़प की ही बात हम कर रहे हैं। अमूमन कभी लद्दाख तो कभी अरुणाचल प्रदेश और कभी अन्य सीमा क्षेत्र के बीच भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने होते रहते हैं। ऐसे में यह सवाल सबके जेहन को कुरेदती रहती है कि आखिर भारत और चीन के बीच ब्रेक के बाद होने वाली हिंसक झड़प कैसे थमेगी? इन झड़पों की वजहें क्या हैं और इन्हें रोकने के लिए क्या-क्या  उपाय करने होंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि 1962 में एक दूसरे के खिलाफ लड़ चुके भारत और चीन पुनः एक दूसरे के खिलाफ एक और युद्ध लड़ने के लिए जगह-जगह पर अपने नए सामर्थ्य का टेस्ट कर रहे हैं!

कहना न होगा कि हाल के वर्षों में डोकलाम, पेंगोंग झील, गलवान घाटी, नाथुला दर्रा के बाद तवांग में हुई तनातनी और हिंसक मारपीट के गहरे निहितार्थ हैं। चीन एक ऐसा साम्राज्यवादी देश है, जो अपने अधिकांश पड़ोसी देशों से कहीं न कहीं उलझा हुआ है। लेकिन उत्तर-पूर्व में रूस और दक्षिण-पश्चिम में भारत से उसे तगड़ा जवाब मिलता आया है। मसलन, यदि चीन ने भारत के खिलाफ अपनी आक्रामकता कम नहीं की और पाकिस्तान को आक्रामक होने में सहयोग देना बंद नहीं किया, तो भविष्य में दोनों देशों को लेने के देने पड़ सकते हैं, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला भारत अपने दुश्मनों की आंख में आंख डालकर बात करना जानता है। 

सच कहूं तो समकालीन भारत, नेहरुयुगीन साहित्यिक मिजाज वाला सम्वेदना प्रधान भारत नहीं है, बल्कि पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटलबिहारी बाजपेयी के कुशल नेतृत्व के द्वारा तराशा हुआ भारत है, जिसकी तूती अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया में बोल रही है। बावजूद इसके, चीन इसे 1962 वाला भारत समझने की गलती कर रहा है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अदूरदर्शिता की वजह से भारत को अपने नेक इरादे के बावजूद भारत-चीन युद्ध में मुहकी खानी पड़ी थी। हालांकि, उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी बाजपेयी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारतीय सेना, चीनी सैनिकों के किसी भी दुस्साहस का मुहंतोड़ जवाब दे रही है, जिससे चीन की बौखलाहट समझी जा सकती है।

पहले की बात को यदि छोड़ भी दें तो करीब ढाई साल पूर्व 15 जून 2020 की रात को पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुए एक हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे। वहीं काफी संख्या में चीन के सैनिक भी मारे गए थे। तब से वहां पर तनाव खत्म करने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच 16 दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इस दौरान पेंगोंग झील, गोगरा समेत कुछ क्षेत्रों में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटे हैं। लेकिन डेमचौक तथा डेपटांग में कुछ स्थानों पर अभी भी दोनों देशों के सैनिक डटे हुए हैं। गौरतलब है कि पिछली बैठक 17 जुलाई 2022 को हुई थी, उसके बाद 17वें दौर की बैठक नहीं हो पा रही है।

इसी बीच, गत 9 दिसम्बर 2022 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में एक बार फिर भारत-चीन के बीच हिंसक झड़प हुई है, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक घायल हुए हैं। बताया गया है कि तवांग में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) तक पहुंचना चाह रही थी। लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन के दुस्साहस के बाद से भारतीय सेना सतर्क थी और कड़ी निगरानी रख रही थी। यही वजह है कि जिस वक्त अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में चीनी सैनिकों ने गलत हिमाकत की, तो पहले से तैयार भारतीय सैनिकों ने उन्हें करारा जवाब दिया और लौटने पर मजबूर कर दिया। इस बार भी चीनी सैनिकों पर भारतीय सैनिक भारी पड़े। उसके बाद दोनों देशों के बीच कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग हुई। उल्लेखनीय है कि तवांग सेक्टर में एलएसी से सटे अपने दावे वाले कुछ क्षेत्रों में दोनों पक्ष गश्त करते हैं।

उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच पांच जगहों पर रणनीतिक तनातनी बनी रहती है, जो इस प्रकार हैं- पहला, तवांग: अरुणाचल प्रदेश में तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है। वर्ष 1914 में ब्रिटिश भारत-चीन के बीच जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में चीन तवांग पर काबिज था, लेकिन युद्ध विराम में उसे हटना पड़ा। दूसरा, डोकलाम: डोकलाम एक तरह से ट्राई जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक हैं। चीन इस पर भी दावा करता है। वर्ष 2017 में करीब ढाई महीने तक डोकलाम पर भारत-चीन के बीच तनाव रहा था। तीसरा, नाथूला: नाथूला दर्रा सिक्किम और चीन नियंत्रित दक्षिणी तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है। यहीं से कैलाश-मानसरोवर के तीर्थयात्री गुजरते हैं। यहां पर भी कभी कभार तनाव की खबरें आती हैं। चतुर्थ, गलवान घाटी: गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिंजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली हुई है। यहां भारत और चीन के सैनिकों के बीच जून 2020 में हिंसक झड़प हुई थी। पांचवां, पेंगोंग लेक: पेंगोंग झील, लद्दाख में 134 किलोमीटर लंबी झील है, जिसका 44 किलोमीटर क्षेत्र भारत और 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में पड़ता है। एलएसी भी इसी झील से गुजरती है। इस क्षेत्र को लेकर भी विवाद होता है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पीओके, सीओके, नेपाल, भूटान, म्यांमार के अलावा बंगलादेश, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान में पारस्परिक हितों के सवाल पर शह-मात के खेल चलते रहते हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि गत 9 दिसम्बर 2022 को  यांगत्से (तवांग, अरुणाचल प्रदेश) में हुई झड़प भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के दूरगामी हित में नहीं है। ब्रेक के बाद दोनों देशों के बीच आपसी तनातनी और मारपीट का यह सिलसिला यदि बढ़ता है तो इससे दोनों देशों के आर्थिक और सामरिक हित प्रभावित होंगे। देखा जाए तो हालिया झड़प पूर्व में हुई झड़पों का महज विस्तार भर नहीं है, बल्कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और रूस के पक्ष में तेजी से गोलबंद हो रही दुनिया के बीच तटस्थता दिखा रहे भारत के समक्ष मौजूद एक तगड़ी वैचारिक चुनौती की ओर भी इशारा कर रहे हैं, जिसकी अनदेखी भारतीय रणनीतिकारों को भारी पड़ सकती है। 

समसामयिक स्थिति-परिस्थिति यह जाहिर करने को काफी है कि दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक मोर्चे पर कुछ न कुछ कमियां-खामियां अवश्य बरकरार हैं, जिन्हें दूर करने की जिम्मेवारी दोनों देशों के सियासी, सिविल और सैन्य नेतृत्वकर्ताओं की है। इसलिए यदि इस मामले में त्वरित पहल अविलम्ब नहीं की गई तो संभव है कि भारत-पाक सीमा की तरह ही भारत-चीन सीमा पर भी अशांति निश्चय ही बढ़ेगी। क्योंकि कुछ वर्ष पहले तक भारत-पाक की अपेक्षा भारत-चीन को शांत सीमा क्षेत्र समझा जाता था।

तवांग झड़प से पुनः एक बात साबित हो चुकी है कि भारतीय जवानों को चीनियों ने एक बार फिर भड़काया है। जिसके बाद हमारे जवानों ने उनका डटकर मुकाबला किया। यह ठीक है कि झड़प के बाद शांति बहाली के लिए दोनों देशों के बीच कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग हुई, जिससे सीमा पर शांति कायम है। लेकिन यह कब तक कायम रहेगी, पहले के तल्ख अनुभवों के लिहाज कुछ कहा नहीं जा सकता। और यदि ऐसा हुआ तो भारत-रूस के मित्रतापूर्ण सम्बन्धों पर भी इसका कुछ न कुछ प्रतिकूल प्रभाव अवश्य पड़ेगा। यदि वह भी तटस्थ रहने का स्वांग 1962 के भारत-चीन युद्ध की तरह ही रचता है तो। क्योंकि रूस का मुख्य प्रतिद्वंद्वी देश अमेरिका तो चाहता ही है कि भारत और चीन के बीच, इंडो-पाक बॉर्डर की तरह ही तनातनी बढ़े, ताकि विवशता वश भारत का झुकाव उसकी तरफ हो। भारत सरकार को चाहिए कि वह भारतीय उपमहाद्वीप के देशों, अरब देशों और आशियान देशों के साथ ऐसी अटूट सैन्य व आर्थिक साझेदारी विकसित करे, कि चीन की जेहन में इस बात का डर समा जाए कि भारत को यदि छेड़ेंगे तो वह छोड़ेगा नहीं, क्योंकि दुनियावी जनमत उसके पक्ष में है।

आपको पता होना चाहिए कि भारत में विपक्ष भी पिछले दो सालों से सीमा पर चीन की हरकतों को लेकर संजीदा है। वह हर स्थिति में भारत सरकार के साथ रहता आया है। साथ ही, वह मौके ब मौके सरकार को बार-बार जगाने की कोशिश करता रहता है। लेकिन सरकार अपनी राजनीतिक छवि को बचाने के लिए मामले को दबाने में जुटी रहती है। लेकिन सच्चाई को आप कबतक दबा सकते हैं। गलवान झड़प की तरह तवांग झड़प की सच्चाई भी 48 घण्टे बाद लोगों के सामने आई। इस बार 9 दिसम्बर की घटना 12 दिसम्बर को लोगों के संज्ञान में आई। सवाल है कि जब संसद का सत्र चल रहा था, तो अविलम्ब उसके समक्ष यह बात क्यों नहीं लाई गई?बिल्कुल यह लानी चाहिए थी। इसलिए विपक्ष की यह बात जायज है कि मोदी सरकार को अप्रैल 2020 से चीनी आक्रमण और एलएसी के पास सभी बिन्दुओं पर निर्माण के बारे में ईमानदार होना चाहिए।

– कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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