देखना होगा कि 2023 में होने वाले इन नौ मुकाबलों में से सर्वाधिक कौन जीतता है। क्योंकि जो 2023 जीतेगा वही 2024 की रेस में भी सबसे आगे माना जायेगा। फिलहाल नेतृत्व की इच्छा रखने वालों के अभियान की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने वादों को पूरा करने में लगे हुए हैं।
साल 2024 के लोकसभा चुनावों में अभी एक साल से ज्यादा का समय है लेकिन कोई भी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में कमी नहीं रखना चाहता इसीलिए सभी अपने-अपने तरीके से मेहनत कर रहे हैं। मेहनत इस बात की हो रही है कि 2024 का फाइनल लड़ने से पहले 2023 का सेमी-फाइनल जीता जाये। दरअसल इस साल कुछ ही दिनों बाद त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने हैं उसके बाद सितंबर के आसपास तेलंगाना विधानसभा के और फिर नवंबर-दिसंबर में राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और मिजोरम के विधानसभा चुनाव होने हैं। 2023 में नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी का पलड़ा भारी रहेगा, 2024 में उसी की दावेदारी भी सर्वाधिक रहेगी। इसलिए भाजपा और कांग्रेस तो इन चुनावों की तैयारी में जुटी ही हुई हैं साथ ही आम आदमी पार्टी, जनता दल युनाइटेड, बीआरएस और तृणमूल कांग्रेस जैसे दल भी इन चुनावों की तैयारी में जुट गये हैं क्योंकि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव भी खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में मान रहे हैं।
जहां तक चुनावी राज्यों के राजनीतिक समीकरणों की बात है तो आइये पहले डालते हैं एक नजर यहां वर्तमान में राजनीतिक दलों की स्थिति पर। सबसे पहले बात करते हैं त्रिपुरा की।
त्रिपुरा
यहां वर्तमान में भाजपा की सरकार है। भाजपा ने यहां पांच साल पहले वामपंथ का आखिरी किला ढहाते हुए जीत हासिल कर इतिहास रच दिया था। बिप्लब देव यहां पहले भाजपाई मुख्यमंत्री थे लेकिन पिछले साल उनके खिलाफ बढ़ती नाराजगी को देखते हुए उन्हें पद से हटा दिया गया और उनकी जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गयी। त्रिपुरा को भाजपा के राज में ही पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी स्थान हासिल हुआ और प्रतिमा भौमिक के रूप में त्रिपुरा को राज्य से पहला केंद्रीय मंत्री मिला। त्रिपुरा में मुख्य मुकाबला भाजपा, वामदलों और कांग्रेस के बीच होना है लेकिन तृणमूल कांग्रेस भी यहां अच्छा प्रभाव रखती है। वर्तमान में विधानसभा में दलीय स्थिति पर गौर करें तो 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 36, उसके सहयोगी दल आईपीएफटी के 8 और वामदलों के 16 विधायक शामिल हैं। भाजपा यहां माणिक साहा को ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में आगे करके चुनाव लड़ेगी वहीं अन्य दलों के ओर से अभी नेतृत्व को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। भाजपा यदि त्रिपुरा की सत्ता में लौटी तो पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में भी उसकी स्थिति मजबूत होगी।
मेघालय
वहीं अगर मेघालय की बात करें तो यहां सत्तारुढ़ गठबंधन में भाजपा भले शामिल है लेकिन समान नागरिक संहिता तथा कुछ अन्य मुद्दों को लेकर जिस तरह गठबंधन में मतभेद दिख रहे हैं उसका फायदा कांग्रेस उठाने की कोशिश करेगी। साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने भी यहां पूरा जोर लगा रखा है। ममता बनर्जी ने पिछले महीने मेघालय का दौरा भी किया था। यही नहीं तृणमूल कांग्रेस अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने के मामले में भी सभी दलों से आगे निकल गयी है और उसने करीब-करीब सभी सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान भी कर दिया है। पिछले विधानसभा चुनावों में 60 सदस्यीय विधानसभा में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था क्योंकि कोई भी दल या गठबंधन 31 सीट हासिल करने में विफल रहा था। चुनाव परिणाम के बाद नेशनल पीपल्स पार्टी के प्रमुख कोनराड संगमा ने भाजपा तथा अन्य दलों के समर्थन से सरकार बनाने का ऐलान किया जिसके बाद इस पूर्वोत्तरी राज्य में एनपीपी, भाजपा और यूडीपी गठबंधन की सरकार बनी। मेघालय में वर्तमान में दो विधायकों वाली पार्टी भाजपा का जोर इस बार ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर है वहीं एनपीपी भी एक बार फिर से सत्ता में लौटने के लिए आश्वस्त नजर आ रही है। हालिया असम-मेघालय सीमा विवाद के दौरान भी मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के रुख को स्थानीय जनता का पूरा समर्थन मिला था। कांग्रेस का भी सहयोगी दलों के समर्थन से सत्ता में वापसी करने का अभियान जोर पकड़ रहा है।
नगालैंड
वहीं अगर नगालैंड की बात करें तो नगा राजनीतिक मुद्दों का अब तक समाधान नहीं हो पाने के चलते वर्तमान सरकार के खिलाफ माहौल भी दिख रहा है लेकिन भाजपा के बड़े नेताओं ने जिस तरह खुद मोर्चा संभाल लिया है उससे हालात में बदलाव भी हो सकता है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह यहां का दौरा करके गये हैं और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा भी यहां आ चुके हैं। कांग्रेस का कहना है कि नगा राजनीतिक समाधान को जानबूझकर लागू नहीं करने से राज्य में सत्तारुढ़ भाजपा-एनडीपीपी गठबंधन बेनकाब हो गया है। तो वहीं सत्तारुढ़ गठबंधन का कहना है कि उसने जनता से किये वादे पूरे किये हैं और पांच साल के कार्यकाल में राज्य में शांति बनी रही। नगालैंड विधानसभा की वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो 60 सदस्यीय विधानसभा में नगा पीपल्स फ्रंट के 26, एनडीपीपी के 18, भाजपा के 12, नेशनल पीपल्स पार्टी के 2 और जनता दल युनाइटेड का एक विधायक है। कांग्रेस का फिलहाल एक भी विधायक नहीं है लेकिन पार्टी इस बार बड़ी अपेक्षाएं लगाये हुए है।
कर्नाटक
कर्नाटक की बात करें तो वर्तमान में भाजपा शासित यह राज्य दक्षिण में पैठ बनाने के लिए भाजपा के लिए बहुत मजबूत कड़ी है। कर्नाटक में पांव जमा कर ही भाजपा तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में भी कमाल दिखा सकी थी। इस महत्वपूर्ण राज्य को भाजपा अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती लेकिन राज्य सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के जो आरोप हाल में लगाये गये उससे पार्टी की छवि पर बुरा असर पड़ा है। भाजपा का प्रयास है कि विभिन्न आरोपों के बावजूद मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई की जो साफ छवि बनी हुई है उसके अलावा हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों और मोदी सरकार की उपलब्धियों के सहारे कर्नाटक में एक बार फिर कमल खिलाया जाये लेकिन जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं वह कठिन मुकाबले की स्थिति दर्शा रहे हैं। कर्नाटक में वैसे तो मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है लेकिन जनता दल सेक्युलर इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनायेगा और यदि वह भाजपा या कांग्रेस में से किसी के साथ गया तो उस दल की स्थिति मजबूत हो जायेगी। कर्नाटक विधानसभा के पिछले चुनावों में 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 104, कांग्रेस के 80, जनता दल सेक्युलर के 37, बसपा का एक विधायक और दो निर्दलीय जीत कर आये थे। चुनाव परिणाम बाद कांग्रेस ने जनता दल सेक्युलर को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा दी थी लेकिन बाद में कांग्रेस विधायकों के बड़ी संख्या में पाला बदल कर भाजपा में चले जाने से एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिर गयी थी और मुख्यमंत्री के रूप में बीएस येदियुरप्पा की वापसी हो गयी थी। लेकिन पिछले साल भाजपा आलाकमान ने कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन कर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बना दिया था। वर्तमान में कांग्रेस नेता सिद्धरमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार भी मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं लेकिन इन दोनों की आपसी लड़ाई को देखते हुए भाजपा इस गुटबाजी का फायदा उठाने का प्रयास कर सकती है।
कर्नाटक
कर्नाटक की बात करें तो वर्तमान में भाजपा शासित यह राज्य दक्षिण में पैठ बनाने के लिए भाजपा के लिए बहुत मजबूत कड़ी है। कर्नाटक में पांव जमा कर ही भाजपा तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में भी कमाल दिखा सकी थी। इस महत्वपूर्ण राज्य को भाजपा अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती लेकिन राज्य सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के जो आरोप हाल में लगाये गये उससे पार्टी की छवि पर बुरा असर पड़ा है। भाजपा का प्रयास है कि विभिन्न आरोपों के बावजूद मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई की जो साफ छवि बनी हुई है उसके अलावा हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों और मोदी सरकार की उपलब्धियों के सहारे कर्नाटक में एक बार फिर कमल खिलाया जाये लेकिन जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं वह कठिन मुकाबले की स्थिति दर्शा रहे हैं। कर्नाटक में वैसे तो मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है लेकिन जनता दल सेक्युलर इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनायेगा और यदि वह भाजपा या कांग्रेस में से किसी के साथ गया तो उस दल की स्थिति मजबूत हो जायेगी। कर्नाटक विधानसभा के पिछले चुनावों में 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 104, कांग्रेस के 80, जनता दल सेक्युलर के 37, बसपा का एक विधायक और दो निर्दलीय जीत कर आये थे। चुनाव परिणाम बाद कांग्रेस ने जनता दल सेक्युलर को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा दी थी लेकिन बाद में कांग्रेस विधायकों के बड़ी संख्या में पाला बदल कर भाजपा में चले जाने से एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिर गयी थी और मुख्यमंत्री के रूप में बीएस येदियुरप्पा की वापसी हो गयी थी। लेकिन पिछले साल भाजपा आलाकमान ने कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन कर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बना दिया था। वर्तमान में कांग्रेस नेता सिद्धरमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार भी मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं लेकिन इन दोनों की आपसी लड़ाई को देखते हुए भाजपा इस गुटबाजी का फायदा उठाने का प्रयास कर सकती है।
तेलंगाना
तेलगांना विधानसभा चुनावों की बात करें तो भारत राष्ट्र समिति के नेतृत्व वाली सरकार पूरा जोर लगा रही है कि वह सत्ता में लौटे लेकिन उसे चुनावों में भाजपा से कड़ी टक्कर मिलेगी। हाल के वर्षों में यहां भाजपा जिस तेजी से मजबूत हुई है उसको देखते हुए भारत राष्ट्र समिति पूरी तरह अलर्ट है। तेलंगाना में मुख्य मुकाबला वैसे तो भारत राष्ट्र समिति और भाजपा के बीच ही होगा लेकिन कांग्रेस भी यहां मुकाबले में है, इसके अलावा एआईएमआईएम, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर तेलंगाना पार्टी तथा कुछ अन्य क्षेत्रीय दल भी मैदान में होंगे। तेलंगाना के पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम की बात करें तो 119 सदस्यीय विधानसभा में भारत राष्ट्र समिति पूर्व में टीआरएस को 88, कांग्रेस को 19, भाजपा को एक, टीडीपी को 2, एआईएमआईएम को 7, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक को एक और एक सीट निर्दलीय को मिली थी। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यदि फिर से चुनाव जीतने में सफल रहते हैं तो वह दिल्ली के लिए अपने कदम आगे बढ़ाएंगे वहीं भाजपा यदि इस राज्य की सत्ता हासिल करने में सफल रहती है तो एक और दक्षिण का महत्वपूर्ण राज्य उसके हाथ लग जायेगा। भाजपा जिस तरह दूसरे दलों के बड़े नेताओं को अपने पाले में करने में लगी हुई है वह दर्शा रहा है कि भाजपा यहां सत्ता हासिल करने के लिए संकल्पबद्ध है।
मध्य प्रदेश
वहीं मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां पिछले चुनावों में भाजपा बहुत कम मतों के अंतर से चुनाव हार गयी थी लेकिन साल 2020 में राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी घूमीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के दो दर्जन विधायकों ने बगावत कर भाजपा का दामन थाम लिया। जिससे कमलनाथ की सरकार गिर गयी और सत्ता में पुनः शिवराज स्थापित हुए। वर्तमान में शिवराज सिंह चौहान की सरकार विभिन्न कार्यों के माध्यम से जनता को प्रसन्न करने में लगी हुई है। सरकार का प्रयास है कि एक बार फिर भाजपा को सत्ता मिले लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने भी जीजान लगा रखा है। कमलनाथ ने हाल में सर्वे कर यह भी पता लगाया है कि कांग्रेस कितनी कमजोर है। इस राज्य में वैसे तो मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी यहां जड़ें जमाना शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव परिणामों की बात करें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 114, भाजपा को 109, बसपा को 2, समाजवादी पार्टी को 1 और चार सीटों पर निर्दलीयों को जीत मिली थी।
छत्तीसगढ़
कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भाजपा और संघ परिवार के प्रिय मुद्दों पर भी जिस तरीके से काम कर रहे हैं उससे भाजपा के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है। भूपेश बघेल को हालांकि अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी से चुनौती भी मिली लेकिन आलाकमान का वरदहस्त होने के चलते उनकी कुर्सी पूरे कार्यकाल में बची रही। भाजपा यहां कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी तो है लेकिन पार्टी का नेतृत्व चुनावों में कौन करेगा इस बात को लेकर स्थिति अभी तक साफ नहीं है इसीलिए भाजपा पिछड़ भी रही है। हाल के सभी उपचुनाव भी भाजपा हारी है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होगा। भाजपा यहां लगातार 15 साल शासन कर चुकी है और वर्तमान में भूपेश बघेल सरकार को बदल देने वाला माहौल भी जनता के बीच में नहीं दिख रहा है जिससे भाजपा का चिंतित होना स्वाभाविक है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में भाजपा इस राज्य के लिए क्या नयी रणनीति सामने लेकर आती है। छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनाव परिणामों की बात करें तो 91 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 68, भाजपा के 15, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 5 और बसपा के दो विधायक जीत कर आये थे।
राजस्थान
वहीं राजस्थान की बात करें तो कांग्रेस शासित इस राज्य का राजनीतिक इतिहास हर चुनाव में सत्ता बदल का रहा है। खासतौर पर जिस तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच नेतृत्व को लेकर जंग जारी है, भाजपा को उसका भी लाभ चुनावों में मिलने की उम्मीद है। लेकिन नेतृत्व को लेकर जंग सिर्फ कांग्रेस में ही है, ऐसा भी नहीं है। भाजपा में भी वसुंधरा राजे के विरोध और समर्थन में पार्टी नेताओं में आपस में ही तलवारें खिंची हुई हैं। पिछले साल राजस्थान में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने साम्पदायिक रूप से तनाव बढ़ाया इसके लिए भाजपा ने गहलोत सरकार को हिंदू विरोधी भी करार दिया था। राजस्थान विधानसभा के पिछले चुनाव परिणामों की बात करें तो 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 100, भाजपा के 73, बसपा के 6, 13 निर्दलीय, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के 3, माकपा के 2, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2 और राष्ट्रीय लोक दल का एक विधायक जीत कर आये थे। आगामी चुनाव में राजस्थान में वैसे तो मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है लेकिन जिस तरह से आम आदमी पार्टी भी सभी 200 सीटें लड़ने की घोषणा कर चुकी है उससे यहां भी त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिल सकता है।
मिजोरम
मिजोरम की बात करें तो पिछले चुनावों में यहां 40 सदस्यीय विधानसभा में मिजो नेशनल फ्रंट के 26, कांग्रेस के 5, जोरम पीपल्स मूवमेंट के 8 और भाजपा का एक विधायक जीत कर आये थे। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने विकास कार्यों की गति बढ़ायी है और केंद्र की भाजपा सरकार भी जिस तरह इस राज्य पर ध्यान दे रही है उससे यही प्रतीत होता है कि कांग्रेस के लिए अभी इस राज्य की सत्ता दूर की कौड़ी है।
बहरहाल, इन नौ राज्यों के राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करने के बाद जरा कुल मिलाकर मुख्य मुकाबले की बात करें तो चार राज्यों- कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस की आमने सामने की टक्कर होनी है वहीं त्रिपुरा में भाजपा और वामदलों, तेलंगाना में बीआरएस और भाजपा के बीच मुकाबला होना है। पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधनों से मुकाबला करेगी। देखना होगा कि 2023 में होने वाले इन नौ मुकाबलों में से सर्वाधिक कौन जीतता है। क्योंकि जो 2023 जीतेगा वही 2024 की रेस में भी सबसे आगे माना जायेगा। फिलहाल नेतृत्व की इच्छा रखने वालों के अभियान की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां अपने वादों को पूरा करने में लगे हुए हैं वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस को एकजुट करने, समाधान यात्रा के माध्यम से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता की नाराजगी दूर करने और अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी के नेताओं के साथ बैठकें कर चुनावों के लिए रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं तो वहीं ममता बनर्जी भी विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं को गोलबंद करने में जुटी हुई हैं लेकिन सबकी नजरें 2023 के सेमी-फाइनल मुकाबले के परिणामों पर भी रहेंगी।
-गौतम मोरारका