घर घर में धर्म, संस्कृति और परंपरा पर आधारित साहित्य पहुँचाने वाली Gita Press को गांधी शांति पुरस्कार देने के फैसले पर भड़की Congress

हम आपको बता दें कि गीता प्रेस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें श्रीमद्भगवद्गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं।

अपने प्रकाशनों के माध्यम से सदैव सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाली गीता प्रेस को इस साल के गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा। गीता प्रेस को यह पुरस्कार ‘‘अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान’’ के लिए दिया जायेगा। मोदी सरकार के इस फैसले का जहां देश-विदेश में स्वागत किया जा रहा है वहीं कांग्रेस को मिर्ची लग गयी है और उसने कहा है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिया जाना एक बड़ा उपहास है। एक समय प्रभु श्रीराम को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने गीता प्रेस को पुरस्कृत किये जाने के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह सावरकर तथा गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है। उनके इस बयान से संत समाज नाराज हो गया है। अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कांग्रेस नेता से अपने बयान को वापस लेने की मांग की है। साथ ही अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत राजू दास ने कांग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे कांग्रेस का असल चेहरा उजागर हो गया है।

ता प्रेस के बारे में संस्कृति मंत्रालय का बयान

हम आपको बता दें कि गीता प्रेस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें श्रीमद्भगवद्गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं। जहां तक सरकार के फैसले की बात है तो आपको बता दें कि संस्कृति मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुनने का फैसला किया। बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शांति एवं सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने में गीता प्रेस के योगदान को याद किया। बयान के अनुसार, मोदी ने कहा कि गीता प्रेस को उसकी स्थापना के सौ साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्थान द्वारा सामुदायिक सेवा में किये गये कार्यों की पहचान है। बयान में कहा गया है, ‘‘गांधी शांति पुरस्कार 2021 मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो गांधीवादी जीवन को सही अर्थों में व्यक्त करता है।’’ गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत सरकार ने 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को सम्मान देते हुए की थी। मंत्रालय ने कहा है कि पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है चाहे उसकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो। मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा वस्तु शामिल है। हम आपको यह भी बता दें कि हाल के समय में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (2020), बांग्लादेश को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

प्रधानमंत्री ने दी बधाई

इस बीच, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गीता प्रेस को पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी और क्षेत्र में उसके योगदान की सराहना की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘मैं गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 से सम्मानित किये जाने पर बधाई देता हूं। उन्होंने लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में पिछले 100 वर्षों में सराहनीय कार्य किया है।’’

सियासी पारा गर्माया

हालांकि, कांग्रेस ने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की और इसे ‘‘उपहास’’ बताया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘‘अक्षय मुकुल ने 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी है। इसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया गया है।’’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर तथा गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।’’ जयराम रमेश के इस ट्वीट से सियासी पारा गर्मा गया है। भाजपा नेताओं ने कहा है कि इससे कांग्रेस की विकृत मानसिकता का पता चलता है।

योगी ने फैसले को सराहा

दूसरी ओर, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिये जाने पर गोरखपुर शहर से विधायक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुशी जताते हुए कहा है कि धर्म, संस्कृति और परंपरा को समेटे गीता प्रेस, गोरखपुर को यह सम्मान दिया जाना सभी के लिए गर्व की बात है। अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर सीएम योगी ने लिखा, ‘भारत के सनातन धर्म के धार्मिक साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ प्राप्त होने पर हृदय से बधाई। स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर मिला यह पुरस्कार गीता प्रेस के धार्मिक साहित्य को एक नई उड़ान देगा। इसके लिए प्रधानमंत्री जी का हार्दिक आभार।’ 

मुख्यमंत्री ने कहा है कि साहित्य की सेवा कभी न मिटने वाली सेवा होती है। गीता प्रेस साहित्य के माध्यम से देश और समाज की अभूतपूर्व एवं उल्लेखनीय सेवा कर रहा है। हम सबको गौरव की अनुभूति करनी चाहिए कि 100 वर्ष पूर्व गोरखपुर में जो बीज रोपित किया गया था, आज वह गीता प्रेस के रूप में एक विशाल वट वृक्ष बनकर देश-दुनिया में सनातन धर्म के ग्रन्थों को घर-घर पहुंचा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि संस्कृत व हिन्दी सहित देश की विभिन्न भाषाओं में भारत के आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान को जन-जन तक ले जाने में गीता प्रेस ने अपने 100 वर्षों के यशस्वी कालखण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह प्रतिष्ठित पुरस्कार ईश्वर प्रेम, सत्य, सदाचार, सद्भाव के प्रचार हेतु समर्पित गीता प्रेस के अभियान को नई गति देगा।

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