रिपोर्टर रतन गुप्ता महराजगंज
*नेपाल से छोड़ा गया पानी से पिपराघाट गांव के कई टोले गंडक नदी के पानी से घिर
रात गंडक नदी में 2.93 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद आई यह स्थिति
तमकुहीराज तहसील क्षेत्र में गंडक और बांसी नदी के दोआबा में बसे पिपराघाट गांव के मोतीराय टोला में बुधवार की रात बाढ़ का पानी भरने लगा। बृहस्पतिवार को इस टोले का एक हिस्सा बाढ़ के पानी में डूब गया। इससे प्रभावित लोगों को नरवाजोत बांध पर शरण लेनी पड़ी है। 30 से अधिक परिवार बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। पिपराघाट गांव के अन्य टोले भी बाढ़ के पानी से घिर गए हैं। गंडक नदी में पानी का डिस्चार्ज बढ़ जाऩे से तटवर्ती गांवों के लोगों को चिंता सताने लगी है।
पिपराघाट ग्राम सभा गंडक व बांसी नदी के दोआबे में बसी है। गंडक नदी में पानी का डिस्चार्ज बढ़ने से इस गांव के कई टोले बाढ़ के पानी से घिर गए हैं। बांसी नदी के रास्ते गंडक नदी का पानी आने से इन गांवों में ऐसे हालात उत्पन्न हुए हैं। सैकड़ों एकड़ फसल भी बाढ़ के पानी में डूब गई है। इस गांव मोतीराय टोला में जाने वाले मुख्य मार्ग पर कमर तक पानी भर गया है। किसी तरह लोगों ने खुद की जान बचाते हुए पशुओं को लेकर नरवाजोत बंधे पर शरण ली है। प्रशासन की ओर से इनके लिए नाव या भोजन का इंतजाम नहीं कराया गया है।
मोतीराय टोले के निवासी प्रहलाद, अंगद, नत्थू, छबीला, किशोर, रामायन, ध्रुप, शर्मा साह, गनेश का कहना है कि अपने पशुओं के साथ नरवाजोत बंधे पर शरण लेनी पड़ी है। इन लोगों का कहना है कि गंडक नदी के मुहाने पर बसे होने के कारण बरसात का महीना परेशानियों से भरा होता है।
इसके अलावा पिपराघाट का हनुमान टोला, भंगी टोला, शिव टोला, नरवा टोला, मिलिया टोला, मुसहरी टोला, जोगनी, गोलाघाट, उपाध्याय टोला, चौकी टोला, देवनारायण टोला सहित अन्य कई टोले बाढ़ के पानी से घिर गए हैं। धान, गन्ना व मक्के की फसल डूब गई है।
पिपराघाट के ग्राम प्रधान रामाजी निषाद का कहना है कि बांसी नदी के रास्ते आने वाले पानी के कारण हर साल पिपराघाट के लोगों को बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ती है, लेकिन इसे लेकर जिम्मेदार गंभीर नहीं है। हर साल इसकी शिकायत दर्ज कराई जाती है।
दो बार पहले भी टूट चुका था छितौनी तटबंध, फिर भी नहीं लिया सबक
कुशीनगर गंडक नदी का जलस्तर कम हो जाने से छितौनी तटबंध के टूटे हुए हिस्से से बहने वाली पानी की धारा को नियंत्रित कर लिया गया है। बाढ़ के खतरे से आशंकित लोग कुछ राहत महसूस कर रहे हैं। बाढ़ खंड के अभियंता बुधवार की रात बंधा टूटने के बाद से ही उसकी मरम्मत कराने में जुट गए थे। संयोग ठीक था कि जिस गंडक नदी में पानी का डिस्चार्ज 24 घंटे पहले 2.93 लाख क्यूसेक पहुंच गया था, वह बांध टूटने के समय घटकर 2.50 लाख क्यूसेक के करीब आ गया था, जिससे बड़ी तबाही होने से बच गई।
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बुधवार की शाम छितौनी तटबंध के किलोमीटर 0.200 पर शुरू हुआ पानी का मामूली रिसाव धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। शाम होते-होते तेजी से नदी का पानी दूसरी ओर निकलने लगा और देर रात पहले सात मीटर और उसके बाद आधी रात तक दस मीटर तक बांध टूट गया। बांध टूटने के बाद से अफरा-तफरी मच गई।
तटबंध की सुरक्षा के लिए बाढ़ खंड कुशीनगर के अभियंता बचाव कार्य में जुट गए। आसपास मौजूद पेड़ों, डालियों तथा झाड़ियाें को काटकर कटान वाली जगह पर डालने लगे। रात भर प्रयास चलाता रहा। अचानक गंडक नदी का जलस्तर कम हो जाने से पानी का दबाव कम हो गया। बृहस्पतिवार को गंडक नदी के बगल में बोरियां भरकर तथा अन्य तरीके से पानी के बहाव को सीमित कर दिया। इससे पानी के साथ बह रही बांध की मिट्टी भी रुक गई। कटे हुए स्थान में नायलान कैरेट में मिट्टी भरीं बोरियां डालकर भरा जा रहा है। मौके पर मजदूर लगातार कार्य कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि अब संकट टल जाएगा।
पहले दिए होते ध्यान तो यह नौबत नहीं आती
जहां तटबंध टूटा है, वहां साइफन बना है। इसके पास से बांध के अंदर-अंदर सुराख बना और पानी रिसने लगा। नदी का जलस्तर ज्यादा होने के कारण दबाव बढ़ा और सुराख बढ़ता गया। यदि समय रहते इस पर ध्यान देकर रोक दिया जाता तो इतनी बड़ी क्षति नहीं होती। आकस्मिक समस्या से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं थी। बोरी भरकर स्टाॅक तक नहीं रखा था। जब बांध टूटने लगा तब हाथ-पैर चलाया जाने लगा। बांध के इस हिस्से की तरफ बहुत कम ध्यान दिया जाता है। बांध पर बड़ी-बड़ी झाड़ियां और नरकट की सफाई न होने से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था कि कहां से पानी निकल रहा है। लोगों का कहना है कि अगर पहले से एहतियात बरती जाती तो बांध नहीं टूटता।
अगर किलोमीटर छह से 14 के बीच तटबंध टूटता तो भारी क्षति होती
जहां तटबंध टूटा है, वहां नदी की मुख्य धारा नहीं है। यह क्षेत्र महराजगंज जनपद के निचलौल तहसील क्षेत्र के चंदा गांव में पड़ता है। निचलौल रेंज का जंगल थोड़ी दूर पर स्थित है। नदी का पानी शांत तरीके से यहां तक फैला हुआ है। अगर स्पर सी किलोमीटर छह से 14 वीरभार ठोकर के बीच कहीं टूट जाए तो जलप्रलय की स्थिति आ जाएगी। इतना खतरा होने के बावजूद बाढ़ खंड की ओर से तटबंध में बने तमाम रेनकट व गड्ढे नहीं भरा जा रहे हैं।
पहले भी टूट चुका है तटबंध
वर्ष 2009 में छितौनी तटबंध मदनपुर गांव के पास किलोमीटर 3.200 के आसपास दो जगह टूट गया था। नदी की धारा गैनही ड्रेन को पार कर मुख्य पश्चिमी गंडक नहर की बायीं पटरी को तोड़कर नहर में घुस गई थी। नहर में पानी फुल हो गया था। पानी नहर के दाहिनी पटरी को तोड़ने वाला था, हालांकि, बाल-बाल बचा था। अगर दाहिनी पटरी टूट जाती तो मदनपुर गांव सहित बड़ा क्षेत्र बर्बाद हो जाता। काफी मुश्किल हालात बन गए थे। तब भी जलस्तर कम होने के बाद बचाव कार्य हुआ था। इसके बाद भी बाढ़ खंड सबक नहीं ले पा रहा है।
वर्ष 1968-69 में बना था छितौनी तटबंध
महराजगंज जनपद के चंदा क्षेत्र से निकलकर खड्डा क्षेत्र के माघी भगवानपुर गांव तक 14.400 किलोमीटर लंबा यह तटबंध, नौतार तटबंध से जुड़ता है। यह तटबंध अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। इसके निर्माण पर लगभग चार करोड़ 68 लाख 82 हजार रुपये की लागत आई थी। हर वर्ष इसके रख-रखाव व मरम्मत के नाम पर बड़ी रकम खर्च की जाती है। इस बांध की मरम्मत के नाम पर धन कमाने का खूब खेल चलता है। पत्थर आपूर्ति व कमीशन के चक्कर में तत्कालीन एसडीओ एमके सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हर साल करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद यह बांध कमजोर बना हुआ है। बांध को लेकर क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित है कि जितने रुपये मरम्मत में खर्च हो गए, उतने में तो चीन की तरह दीवार बन गई होती।
एडीएम और एसडीएम पहुंचे तटबंध के कटान वाली जगह
छितौनी तटबंध के कटने की जानकारी होने पर बृहस्पतिवार को एडीएम व खड्डा के एसडीएम पहुंचे। दोनों अधिकारियों ने छितौनी तटबंध के कटे तटबंध के मरम्मत कार्य का अवलोकन किया।
बाढ़ खंड की ओर से मरम्मत कार्य चल रहा है। दूसरे दिन बृहस्पतिवार को एडीएम वैभव मिश्र कटान स्थल का निरीक्षण करने पहुंचे। उन्होंने बाढ़ खंड के अभियंताओं से तेजी से कार्य पूर्ण करने के निर्देश दिए। इनके साथ खड्डा के एसडीएम आशुतोष सहित कुशीनगर बाढ़ खंड के अधिशासी अभियंता एमके सिंह, एसडीओ मनोरंजन कुमार, जेई सुधांशु शुक्ला, लेखपाल अमन कौशिक, आनंद सिंह, विनय सिंह, रामपरीखन सिंह, रमापति दुबे आदि मौजूद रहे