रिपोर्टर रतन गुप्ता
घोसी उपचुनाव के परिणाम से भले ही सरकार की सेहत पर कोई असर न पड़ता हो लेकिन भाजपा ने यह चुनाव जीतने के लिए जबर्दस्त लामबंदी की थी। जनसमर्थन जुटाने के लिए सत्ताधारी भाजपा ने डबल इंजन की सरकार की धमक दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री समेत सरकार के 20 मंत्री तो पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल थे।
सरकार की धमक पर भारी पड़ा चुनाव; भाजपा को उल्टा पड़ा पाला बदलने वाले दारा सिंह को प्रत्याशी बनाने का दांव
सरकार की धमक और संगठन की ताकत पर भारी पड़ा थोपा गया चुनाव
काम नहीं आया ओपी राजभर को चुनाव में जिम्मेदारी देना—————————-
लोकसभा चुनाव से पहले जनता ने दिया अहम जनादेश—————————
दलबदल के चेहरे को प्रत्याशी बनाना पड़ गया भारी————————————
डबल इंजन की सरकार की धमक और पार्टी संगठन की गूढ़ व्यूहरचना के बावजूद घोसी से उठे हार के सुर ने सत्ताधारी भाजपा और उसके सहयोगियों को हतप्रभ कर दिया है।
साइकिल छोड़ अपने राजनीतिक जीवन में कमल खिलाने के इरादे से भाजपा में वापस आए दारा सिंह चौहान की छोड़ी हुई घोसी सीट पर उन्हें ही प्रत्याशी बनाने का दांव भाजपा को उल्टा पड़ गया। दारा के पाला बदल से महज डेढ़ साल के अंतराल पर थोपे गए उपचुनाव की कीमत भाजपा को घोसी में भारी अंतर से मिली हार से चुकानी पड़ी।
सीएम समेत 20 मंत्री स्टार प्रचारकों की सूची में थे शामिल
घोसी उपचुनाव के परिणाम से भले ही सरकार की सेहत पर कोई असर न पड़ता हो लेकिन भाजपा ने यह चुनाव जीतने के लिए जबर्दस्त लामबंदी की थी। जनसमर्थन जुटाने के लिए सत्ताधारी भाजपा ने डबल इंजन की सरकार की धमक दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। घोसी उपचुनाव में भाजपा के चुनाव प्रचार की धार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पैना किया तो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक ने भी खूब पसीना बहाया।
मुख्यमंत्री समेत सरकार के 20 मंत्री तो पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल थे। पार्टी के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए सरकार के तमाम मंत्री घोसी में डेरा डाले रहे।
वहीं भाजपा संगठन भी जीत के लिए गोटियां बिछाने में तत्परता से जुटा हुआ था। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी, प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह और कई प्रदेश पदाधिकारी घोसी में मौजूद रह कर विधानसभा क्षेत्र, मंडल, शक्ति केंद्र और बूथ स्तर पर चुनाव के लिए सांगठनिक तैयारियों को धार देते रहे।
सरकार और संगठन की साझा ताकत के प्रदर्शन और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले जातियों को जोड़ कर जीत सहेजने की मुहिम का पूर्वाभ्यास माने जा रहे घोसी उपचुनाव के जरिये अपना दमखम दिखाने की भाजपा की हसरत परवान न चढ़ सकी। जातियों के गणित को हल करने में पूर्व में कई मौकों पर खुद को सिद्धहस्त साबित कर चुकी भाजपा के लिए घोसी उपचुनाव में उसका यह प्रयोग दोधारी तलवार सिद्ध हुआ।
पार्टी की रणनीतिक चूक आई सामने
पिछड़ों के स्वाभिमान की दुहाई देते हुए दारा सिंह चौहान पिछले विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री पद के साथ ही भाजपा छोड़ सपा में शामिल हुए थे और साइकिल की सवारी कर घोसी से विधानसभा पहुंचे थे।
जातीय समीकरण साधने के लिहाज से भाजपा ने उन्हें अपने पाले में खींच तो लिया लेकिन उन्हें उनकी ही छोड़ी सीट पर पार्टी प्रत्याशी बनाने का जो प्रयोग किया, वह उपचुनाव के नतीजे में पार्टी की रणनीतिक चूक के रूप में सामने आया।
घोसी की जनता ने पाला बदलने वाले दारा को ही उन पर उपचुनाव थोपने का जिम्मेदार मानते हुए उनके विरुद्ध जनादेश दिया। उपचुनाव से पहले जनता की इस नाराजगी का अहसास खुद भाजपा को भी हो गया था। यही वजह थी कि घोसी में अपनी जनसभा में मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि दारा सिंह चौहान को माफ कर दीजिए। उन्होंने पाला नहीं बदला है, घर वापसी की है।