भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्ति पर उठ रहे हैं सवाल, दागी नेताओं का चयन दे सकता है विपक्षियों को मुद्दा

रतन गुप्ता महाराजगंज

सवाल यह भी उठ रहे हैं कि प्रदेश नेतृत्व ने कुछ ऐसे लोगों को भी जिम्मेदारी दे दी है, जो आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के हमले का सबब बन सकते हैं।

लंबी प्रतीक्षा के बाद भाजपा के जिला व महानगर अध्यक्षों की सूची अपने साथ कुछ विवाद और सवाल भी लेकर आई है। ज्यादातर अध्यक्षों को बदलने के बावजूद यह सवाल उठने लगे हैं कि अध्यक्षों की नियुक्ति के पहले पर्यवेक्षकों को भेजने और लखनऊ से दिल्ली तक सलाह-मशवरे के बाद इस सूची में वे नाम कैसे शामिल हो गए जो लंबे समय से सवालों के घेरे में थे। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि प्रदेश नेतृत्व ने कुछ ऐसे लोगों को भी जिम्मेदारी दे दी है, जो आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के हमले का सबब बन सकते हैं।सबसे अधिक सवाल तो यह भी उठ रहे हैं कि हमेशा से जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को ही आगे बढ़ाने का दावा करने वाली भाजपा में क्या अब किसी सांसद, विधायक, मंत्री या व्यक्ति विशेष के प्रति निष्ठा रखने वाले लोगों को भी उपकृत किया जा सकता है?

यह सवाल उठना लाजिमी भी है, क्योंकि गणेश परिक्रमा से दूर रहकर क्षेत्र और जनता के लिए काम करने की नसीहत देने वाली भाजपा जैसी पार्टी की सूची में कुछ नाम ऐसे हों, जिनकी निष्ठा संगठन से ज्यादा व्यक्ति विशेष के प्रति सार्वजनिक होती रही हो। एक सवाल यह उठ रहा है कि जो लोग अपने परिजनों को निकाय चुनाव तक नहीं जिता पाए, क्या ऐसे लोगों के कंधे पर लोकसभा चुनाव जिताने की जिम्मेदारी डालना व्यावहारिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से उचित है? खास तौर से सूची में शामिल दल बदल करके भाजपा में आने वालों को अध्यक्षी दिए जाने को लेकर कई जिलों में खींचतान की खबरें भी चर्चा है।

एक सवाल यह भी
भाजपा की सूची में शामिल कुछ दागदार नामों को लेकर एक अहम सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या आपराधिक मामलों में मुकदमों से घिरे लोग भी जिलाध्यक्ष होने के नाते लोकसभा के चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री समेत पार्टी के बड़े नेताओं के साथ मंच पर बैठेंगे? दरअसल परंपरा के मुताबिक सभाओं में पार्टी के बड़े नेताओं के मंच पर संबंधित जिला अध्यक्ष की भी कुर्सी लगाई जाती है। इसलिए पार्टी में इसको लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

दागी नाम को लेकर भी हो रही चर्चा
सूची में शामिल कई ऐसे नाम को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है, जो किसी न किसी विवाद में घिरे रहे हैं। खास तौर पर बाराबंकी और बरेली में हुई नियुक्ति को लेकर खूब चर्चा हो रही है। बरेली में भाजपा की पुरानी कार्यकर्ता रहीं डॉ. दीप्ती भारद्वाज ने बरेली महानगर अध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए एक्स के जरिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष, पीएमओ, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी फोरम पर भी आपत्ति दर्ज कराई है। वहीं, एनडीपीएस के मुकदमे में कोर्ट द्वारा 50 हजार के जुर्माना से दंडित हो चुके अरविंद मौर्य की बाराबंकी में नियुक्ति पर भी सवाल उठे हैं। अरविंद सपा एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बसपा से भाजपा में आए थे।

युवा के बजाय बुजुर्गों पर दांव
2019 लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी संगठन ने तय किया था कि जिला स्तर पर संगठन में 45 से 55 वर्ष की आयु वाले लोगों को ही कमान दी जानी चाहिए। जिससे चुनाव प्रबंधन में वे पूरी ऊर्जा से काम कर सकें। लेकिन, ताजा सूची में पार्टी में इस मानक का ख्याल नहीं रखा गया। कहा जा रहा है कि रायबरेली, अमेठी, प्रयागराज, गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी समेत कई जिलों में इस मानक के विपरीत 60 साल की उम्र वाले लोगों को जिम्मेदारी दी गई

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