रिपोर्टर रतन गुप्ता नेपाल बार्डर सोनौली
नेपाल में सोना (गोल्ड) की तस्करी होना और इस विषय को लेकर बहस करना आम बात है । सामान्यतः हर साल यहां सोने की तस्करी संबंधी कुछ न कुछ समाचार आता ही रहता है । कभी कभार ही कुछ बड़ा धमाका होता और एक ‘काण्ड’ के रूप में उसको बहस में लाया जाता है । लेकिन हर ‘काण्ड’ का अन्तिम परिणाम ‘शून्य’ही रहता है । यानि कि सोने की तस्करी में संलग्न कामदार (भरिया÷मजदूर) गिरफ्तार होते हैं, लेकिन उसका असली मालिक कभी भी पहचान में नहीं आता ।
इसी पृष्ठभूमि में श्रावण २ (वि.सं.२०८०) के दिन त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल से १०० केजी सोना बाहर निकल गया । लेकिन विमानस्थल क्षेत्र से बाहर निकलते ही राजश्व अनुसन्धान विभाग ने उसको दबोच लिया । आज यह एक ‘काण्ड’ बन गया, जो आज के सत्ताधारी राजनीतिक दल और उच्चप्रशासक के लिए सरदर्द का विषय बन गया है । ‘१०० केजी सोना की तस्करी काण्ड’ को लेकर संसद् अवरुद्ध हो गया है, विमानस्थल के सम्बन्धित कर्मचारियों का तबादला हो चुका है । कुछ नेपाली तथा चाइनिज नागरिक तो गिरफ्तार हो गए हैं, लेकिन वे लोग सोने की असली मालिक नहीं हैं । असली मालिक कौन हैं, पहचान में नहीं हैं ।
तस्करी का इतिहास देखें तो इससे पहले वि.सं. २०७३ साल पौष २१ गते का ‘काण्ड’ अधिक चर्चा में था । उस समय त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल से ३३ केजी सोने की तस्करी हुई थी । इस काण्ड के कारण कुछ लोगों की जान भी चली गई, कुछ कर्मचारियों की नौकरी चली गई, कुछ कामदार को गिरफ्तार भी किया गया । गिरफ्तारी में पड़नेवालों में से कुछ आज भी जेल में हैं, लेकिन आज तक ३३ केजी सोने का असली मालिक कौन है ? हमारे राज्य संयन्त्र के पास इसका कोई जवाब नहीं है । जब अनुसंधान के दौरान अनुसंधान अधिकृत उच्च तह के राजनीतिक नेता और व्यापारिक घराने तक पहुँच जाते हैं, तब कुछ बहानाबाजी में ‘काण्ड’ को रफादफा किया जाता है । इस बार सार्वजनिक ‘१०० केजी’ काण्ड में भी यही होने की संभावना है । क्योंकि इसमे सत्ताधारी दल नेकपा माओवादी केन्द्र के नेता तथा पूर्व सभामुख कृष्णबहादुर महरा का नाम भी आ गया है ।
इसे भी सुनें क्लिक करें
हां, श्रावण २ गते त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल से १०० केजी का सोना पास हो गया । लेकिन उससे पहले यहीं से ९ केजी सोना पास हुआ था । उसमें महरा और उनके पुत्र राहुल की प्रत्यक्ष संलग्नता होने की आशंका है । इसी आशंका के साथ नेपाल पुलिस (सीआईबी) ने एक रिपोर्ट भी सार्वजनिक की है । महरा के अलावा माओवादी केन्द्र के उप–महासचिव वर्षमान पुन, उनकी पत्नी तथा पूर्वसभामुख ओनसरी घर्ती, पूर्व उपराष्ट्रपति नन्दबहादुर पुन, उनके पुत्र दिपेश पुन का नाम भी इस प्रसंग में चर्चा में है । सोने की तस्करी प्रकरण में गिरफ्तार तिब्बती मूल के नागरिक दावा छिरिङ के साथ उल्लेखित माओवादी नेताओं का घनिष्ट संबंध दिखाई देता है । इसीलिए माओवादी नेताओं का नाम अधिक चर्चा में है । लेकिन आरोपित सभी नेताओं ने दावा किया है कि इसमें उन लोगों की कोई भी संलग्नता नहीं है । निष्पक्ष अनुसंधान के लिए भी उन लोगों ने आग्रह किया है ।
हां, सोने की तस्करी में आज के दिन माओवादी पार्टी के नेता ज्यादा चर्चा में हैं । लेकिन विगत में नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले पार्टी से संबद्ध नेता भी ऐसे काण्ड में कई बार चर्चा में आ चुके हैं । लेकिन हर काण्ड और अनुसंधान अन्तिम निष्कर्ष में पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देता है, गिरफ्तार सोना या तो खो जाता है या अन्य धातु बन जाता है । अगर कुछ सोना बच भी जाता है तो
गिरफ्तार मजदूरों में से किसी एक को दोषी करार कर काण्ड को रफा–दफा किया जाता है । इस बार भी ऐसा ही कुछ होने की आशंका है । इसका संकेत नेपाली कांग्रेस के नेता डॉ. शेखर कोइराला कर चुके हैं ।
डॉ. कोइराला ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा है कि सिर्फ सोने की तस्करी काण्ड ही नहीं, भुटानी शरणार्थी काण्ड से लेकर ललिता निवास काण्ड तक किसी न किसी पार्टी के शीर्ष नेताओं की संलग्नता पाई जाती है । उन्होंने यह भी कहा है कि उल्लेखित सभी काण्ड में ऐसे ‘बीआईपी’ की सहभागिता है, जो वह पहचान में आनेवाले नहीं हैं, राज्य संयन्त्र उनको सार्वजनिक नहीं कर सकता । डॉ. कोइराला ने सार्वजनिक मंच से आशंका व्यक्त किया है कि १०० केजी सोने की तस्करी काण्ड में शामिल दोषी को बचाने के लिए स्वयम् प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ लगे हुए हैं ।
स्मरणीय बात है– कांग्रेस नेता डॉ. कोइराला राजनीतिक ‘स्टण्टबाजी’ करनेवाले नेताओं में से नहीं है । इसीलिए उनकी अभिव्यक्ति और आरोप गम्भीर है, लेकिन आरोप पुष्टि होने की सम्भावना दिखाई नहीं देती । क्योंकि सोने की तस्करी संबंधी आज तक के हर काण्ड में मुख्य दोषी पहचान में नहीं आए हैं, और हर काण्ड में ‘भीआईपी’ कनेक्सन दिखाई देता है । जब उन लोगों का नाम आने लगता है, तब घटना को रफादफा किया जाता है ।
भीआईपी तस्कर !
सोने की तस्करी संबंधी विषय को लेकर आज तक जितने काण्ड सार्वजनिक हुए हैं, उसमें अनुसंधान नहीं हुआ है, ऐसा नहीं है । लेकिन हर अनुसंधान मुख्य दोषी (सोने की असली मालिक) तक पहुँचने से पहली ही फेल हो जाता है । एक अजीब–सी बात है– त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल होते हुए अगर कोई नेपाली नागरिक एक एक्स्ट्रा मोबाइल लाते हैं तो उसको विमानस्थल के कर्मचारी तथा सुरक्षाकर्मी नहीं छोड़ते, उसको जब्त किया जाता है । लेकिन उन्हीं कर्मचारियों के नजर में सौ केजी परिमाण में लाया गया सोना नही पड़ता । क्यों ? क्योंकि इसमें वही बीआईपी की सहभागिता रहती है, जो उनको ऑर्डर देते हैं । हां, उच्च तह की राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के बिना अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल से तस्करी संभव नहीं है ।
लेकिन जब ‘सेटिङ’ में गड़बड़ी होने से, आपसी अविश्वास के कारण से और दुश्मनी के वजह से तस्करी किया गया सोना गिरफ्तार हो जाता है तो प्रशासन से लेकर राजनीतिक तह तक सरदर्द का विषय बन जाता है । तस्करी में संलग्न व्यापारी वर्ग सरकारी कर्मचारी तथा प्रशासन को दोषी मानते हैं तो प्रशासन तथा उच्च पद में रहनेवाले व्यक्ति इस में व्यापारी और अन्तर्राष्ट्रीय गिरोह का हाथ देखते हैं । लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल में तस्करी करनेवाले ऐसे व्यापारी और गिरोह कहाँ से परिचालित हैं ? कुछ भी नहीं बताया जाता ।
बहस के दौरान राजनीतिक पार्टी और नेताओं का नाम तस्करी काण्ड में जोड़ कर देखा जाता है, अनुसंधान अधिकारी घटना को रफादफा करने में केन्द्रीत हो जाते हैं । और कुछ दिनों के बाद बहस खत्म हो जाती है । तब ऐसा लगता है कि निचले तह से लेकर उपर तक राज्यसंयन्त्र इस मामले को कुछ भी नहीं जानते हैं । इसतरह की अनदेखा से ही पता चलता है कि तस्करी का असली मालिक और रहस्य के बारे में सभी को जानते हैं, लेकिन सार्वजनिक नहीं करना चाहते । यह आज की बात नहीं हैं । इतिहास को देखें तो बहालवाला प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री से लेकर पुलिस प्रशासन और जनप्रशासन के उच्च तह के कर्मचारी तक इस मुद्दों को लेकर चर्चा में आ चुके हैं । जब कमीशन और लेन–देन संबंधी विषय में ‘मिस अन्डरस्ट्याडिंग’ हो जाता है, अथवा किसी के साथ प्रतिशोध लेना होता है, तब जाकर सोना गिरफ्तार में पड़ जाता है । सम्भवतः ‘१०० केजी सोना’ के पीछे भी यही राज हो सकता है ।
तस्करी का संजाल
सोना के तस्करी में मुख्य व्यक्ति अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारी वर्ग ही होते हैं, जो ‘हुण्डिवाला’ के नाम से जाने जाते हैं । प्रहरी अनुसन्धान से पता चला है कि खाड़ी देशों में काम करनेवाले मजदूर वर्ग जब अपना पारिश्रमिक नेपाल भेजते हैं तो वैधानिक च्यानल से भेजने के बजाय गिरोह (हुण्डिवाला) को वह रकम देते हैं । नेपाल में रहनेवाले गिरोह के ही सदस्य उनके पारिवारिक सदस्य को उक्त रकम पहुँचाते हैं । ऐसा करने से मजदूर और हुण्डिवाला दोनों फायदा में होते हैं । मजदूर को कुछ ज्यादा पैसा मिलता है और तस्करी करनेवाले गिरोह को विदेशी करेन्सी मिल जाता है । उक्त करेन्सी से सोना खरीद कर तस्करी की जाती है ।
मान लें– दुबई में काम करनेवाले एक नेपाली कुछ रकम नेपाल में रहनेवाले परिवारजन को भेजना चाहता है, उक्त रकम वही रहनेवाले एजेन्ट (हुण्डिवाला) को दिया जाता है । नेपाल में रहनेवाले दूसरे सदस्य मजदूर के पारिवारिक सदस्य तक उक्त रकम पहुँचाता है । दुबई में जो रकम (करेन्सी) मिलता है, उससे सोना खरीद किया जाता है और उसको अवैध रूप में नेपाल लाया जाता है । बताया जाता है कि इसतरह सोना नेपाल लाने से प्रति केजी ४ लाख से अधिक मुनाफा होता है । और इस को व्यापारिक घराना की सेटिङ से बाजार बिक्री–वितरण की जाती है । वही सोना खुली सीमा होते हुए भारत भी पहुँचाया जाता है ।
विमानस्थल में रहे कर्मचारी और एजेन्ट की मिलिभगत में विमानस्थल से सोना बाहर निकाला जाता है । इसतरह सोना नेपाल लेनेवाले व्यक्ति को भी आकर्षक पारिश्रमिक दिया जाता है । हां, ५० ग्राम सोना लेकर आनेवाले को ५ हजार रुपये तक पारिश्रमिक दिया जाता है । थोड़े परिमाण में सोना (जेवर) लानेवाले को टैक्स लेने की व्यवस्था नहीं है । बताया जाता है कि इसी व्यवस्था का दुरुपयोग कर विमानस्थल से दैनिक सोना की तस्करी होती है । लेकिन जब अधिक परिमाण में सोना लाना होता है, इसमें उच्च तह में ही सेटिङ की जाती है । अगर अपने निकट कोई व्यक्ति (नेता) मन्त्री बन जाते हैं तो तस्करी में संलग्न व्यापारी ऐसा मौका नहीं छोड़ते और केजी के परिमाण में तस्करी करते हैं । इस में सिर्फ नेता ही नहीं, भंसार और पुलिस प्रशासन के कर्मचारी भी शामिल होते हैं और प्राप्त कमीशन बटवारा करते हैं । जब कमीशन में बात नहीं बनती तो तस्करी किए गए सोना गिरफ्तारी का वातावरण बन जाता है ।
विशेषतः खाडी मुल्क के देशों से नेपाल में अवैध सोना लाया जाता है । साथ में पड़ोसी देश चीन होते हुए भी नेपाल में अवैध सोना की तस्करी होती है । बताया जाता है कि मोटरसाइकल में यात्रा करनेवाले व्यक्ति मोटरसाइकल की सीट के नीचे रखकर चीन से नेपाल की ओर सोना की तस्करी करते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय तस्कर नेपाल को ‘ट्रान्जिट प्वाइन्ट’ बनाकर भारत की ओर सोने की तस्करी करते हैं ।
नेता और कर्मचारियों की सहभागिता !
पाँच साल पहले की बात है । तत्कालीन अर्थमन्त्री तथा माओवादी केन्द्र के नेता कृष्णबहादुर महरा के ऊपर सोना तस्करी करने का आरोप लगा था । उस समय गृहमन्त्री थे– नेपाली कांग्रेस के नेता विमलेन्द्र निधि । सत्ता से बाहर रहे नेतागण बोलने लगे कि गृहमन्त्री और अर्थमन्त्री की सहभागिता में सोने की तस्करी हो रही है । आरोप लगने के बाद अर्थमन्त्री महरा ने कहा कि सोने की तस्करी में जिनका नाम आ रहा है, वह तो एक ‘छोटी मछली’ है । उप–प्रधानमन्त्री भी रहे अर्थमन्त्री महरा ने वि.सं. २०७३ माघ १ गते पोखरा में आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए कहा– ‘कुछ दिन पहले (पुस २१ गते, ३३ केजी सोना की तस्करी काण्ड) सोने की तस्करी होने की बात आई है । उसमें मेरा नाम भी तस्कर के साथ जोड़ कर आया है । आज मैं ज्यादा डिटेल में नहीं कह सकता, लेकिन इतना कहता हूँ कि इसमें ‘बड़ी–बड़ी मछली भी शामिल हैं । समय क्रम में उनको सार्वजनिक किया जाएगा । हम लोग तो छोटी मछली हैं ।’ वही महरा और उनके पुत्र पाँच साल बाद फिर एक बार सोना की तस्करी काण्ड में चर्चा में आ गए हैं ।
फिर पाँच साल पहले की बात ! उस समय तत्कालीन कांग्रेस सांसद् अब्दुल रज्जाक ने सोने की तस्करी प्रसंग में कहा था कि नेपाल में इसको प्रतिबंध करना आवश्यक नहीं है । कहा गया कि तत्कालीन गृहमन्त्री निधि और अर्थमन्त्री महरा को बचाने के लिए भी उन्होंने ऐसा कहा है । ३३ केजी सोना की तस्करी संबंधी विषय को लेकर जब संसदीय समिति में बहस हुई तो कांग्रेस सांसद् अब्दुल रज्जाक ने प्रश्न किया– ‘सोने की तस्करी होने से देश को क्या नुकसान है ?’ उनका आशय था कि तस्करी को प्रतिबंध लगाने की जरुरत नहीं है । आज १०० केजी सोने की तस्करी संबंधी जो बहस है, उसमें भी यही आशंका है कि राजनीतिक तह से ही इसको संरक्षण किया जा रहा है ।
तस्करी में आकर्षण !
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सोना की जो मूल्य है, उसकी तुलना में नेपाल और भारत में उसका मूल्य अधिक है । अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में खरीद कर अवैध तरीके से नेपाल होते हुए भारत की ओर निर्यात करने से जो मुनाफा आर्जित होता है, वही है– इसका आकर्षण । नेपाल में वैधानिक तवर से जो सोना आयात होता है, डिमाण्ड की तुलना में वह कम है । इसलिए भी तस्करी होती है । नेपाल में वैधानिक तवर से जो सोना लाया जाता है, उसमें प्रतितोला ५ हजार राजश्व (टैक्स) देना पड़ता है । यही ५ हजार बचाने के लिए भी व्यापारी वर्ग अवैध सोना के तस्कर प्रति आकर्षित हो जाते हैं ।
इसीतरह सोना के आयात में नेपाल के बैंकिङ क्षेत्र भी बदमासी करते हैं । राष्ट्र बैंक से अनुमति लेकर ‘क’ वर्ग के बैंक सोना आयात कर सकते हैं । लेकिन बैंकिङ चैनल से नेपाल आनेवाला वैधानिक सोना का गुणस्तर ९९.०५ प्रतिशत होता है । लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सोना का गुणस्तर ९९.९९ होता है । अगर अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से अवैध आयात किया जाता है तो ९९.९९ प्रतिशत गुणस्तर की सोना लाया जा सकता है और उसमें ०५ प्रतिशत अन्य धातु (चांदी) मिलाकर सोना को नेपाली बाजार में भेजा जा सकता है । अर्थात् प्रतिकेजी सोना में आधा केजी चांदी मिलाकर सोने के मूल्य में बिक्री किया जा सकता है । यही हालत भारत में भी है । जिसके चलते सोना के तस्करी में आकर्षण है । अर्थात् ज्यादा परिश्रम किए बिना ही पैसा कमाने का माध्यम है– सोना का तस्करी ! जिसमें बड़े–बडेÞ नेता और व्यापारी लगे हुए हैं ।
तस्करी के साथ जुड़े कुछ तथ्य और अपवाहें
– वि.सं. २०४२ साल में सुर्खेत से निर्वाचित तत्कालीन राष्ट्रीय पंचायत सदस्य चन्द्रबहादुर बूढा को त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल से २२.५ केजी सोने के साथ गिरफ्तार किया गया । उस समय बूढा ने कहा था– ‘चुनावी खर्च के लिए हङकङ से यह सोना लाया गया है ।’ कहा जाता है कि तत्कालीन राजा भी अपने निकट व्यक्तियों को सोने की तस्करी के लिए प्रोत्साहन करते थे । जानकार लोगों का कहना है कि तत्कालीन राजा महेन्द्र ने मनाङ निवासी नेपाली नागरिकों व्यापारिक कर्म के लिए प्रोत्साहन किया था, जिस का मूल उद्देश्य सोने की तस्करी करना ही है ।
– तत्कालीन प्रधानमन्त्री सूर्यबहादुर थापा अपने निकट कर्मचारियों के सहयोग से थर्डकन्ट्री से नेपाल में सोना आयात करते थे और उसको भारत निर्यात करते थे । वि.सं. २०३६ साल की बात है । पञ्चायती व्यवस्था को कायम रखना था । इसके लिए अधिक धनराशि की आवश्यकता महसूस हो गई । इसके लिए तत्कालीन प्रधानमन्त्री सूर्य बहादुर थापा ने ठान लिया कि सोने की तस्करी और जंगल (वन) की लकड़ी बेच कर धनराशि इकठ्ठा की जा सकती है और उन्होंने ऐसा ही किया । प्रधानमन्त्री बनने के बाद राष्ट्रीय पञ्चायत सदस्य को लकड़ी काटने के लिए लाइसेन्स दिया । उसी के चलते आज के तराई–मधेश में स्थित जंगल (जिसको ‘चारकोसे झाड़ी’ कहा जाता था) को खाली किया गया । साथ में अवैध सोने की कारोबार को भी खुला किया गया । इसका मुख्य उद्देश्य पञ्चायती व्यवस्था को बचाना ही था ।
– २०४४ साल की बात है । तत्कालीन अधिराजकुमार धिरेन्द्र शाह के अंगरक्षक कर्णेल भरत गुरुङ और अवकाश प्राप्त प्रहरी महानिरीक्षक डिबी लामा भी सोने की तस्करी काण्ड में पकड़े गए । कर्णेल गुरुङ ने कहा कि सोने तस्करी में बड़े–बड़े लोगों की सहभागिता है । उन्होंने खुला रूप में स्वीकार किया कि मजदूर मार्फत १०० केजी सोना नेपाल लाया गया है । गुरुङ ने बयान के दौरान स्पष्ट संकेत किया था कि इसमें राजा और राजपरिवार के सदस्य लेकर प्रधानमन्त्री और मन्त्रीगण भी शामिल होते हैं ।
– ०५४ साल में लोकेन्द्रबहादुर चन्द प्रधानमन्त्री थे । सूर्यबहादुर थापा चाहते थे कि चन्द को प्रधानमन्त्री पद से हटाया जाए । थापा खुद प्रधानमन्त्री बनना चाहते थे । इसके लिए कांग्रेस नेता गिरिजा प्रसाद कोइराला के साथ उन्होंने विचार–विमर्श किया । कोइराला की ओर से सहयोग की वचनवद्धता प्राप्त हो गई । थापा ने सरकार गिराने का प्रयास शुरु किया । इसके लिए कुछ सांसद् खरीद करना पड़ा । आवश्यक रकम के लिए गिरिजा प्रसाद कोइराला और थापा दोनों क्रियाशील हो गए । सोने की व्यापारी से कुछ रकम मिलने की संभावना दिखाई दी । इसके लिए कांग्रेस नेता खुम बहादुर खड्का और व्यापारी धोजेन्द्र गौचन के बीच कई चरण में वार्ता हुई । अन्ततः खडका ने ५ करोड प्राप्त किया । उक्त रकम सूर्यबहादुर थापा तक पहुँच गया । उसी रकम से राप्रपा के ही सांसद् खोभारी राय, ज्योतेन्द्रमोहन चौधरी और मिर्जा दिलसाद बेग को थापा के पक्ष में खड़ा किया गया और चन्द को प्रधानमन्त्री पद से हटाया गया । सूर्य बहादुर थापा प्रधानमन्त्री बन गए, राप्रपा के ही नेता रविन्द्रनाथ शर्मा अर्थमन्त्री बन गए । गृह मन्त्री में राप्रपा के ही बुद्धिमान तामाङ थे । अब संस्थागत रूप में सोने की तस्करी करने का वातावरण बन गया था । अर्थात् प्रधानमन्त्री ही नहीं, गृह और अर्थ मन्त्री भी सोने की तस्करी करनेवाले समूह के सामने नतमस्तक हो गए । अवैधानिक तस्करी ने अघोषित वैधानिकता प्राप्त किया । इसके लिए नेपाली कांग्रेस ने भी सहयोग किया, जो आज के दिन भी संसद् में सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति है ।
कहा जाता है कि उस समय तस्कर समूह और सरकार के बीच मासिक रकम लेन–देन का अघोषित सम्झौता हुआ था । सम्झौता के अनुसार सत्ता में रहनेवाली पार्टी को तस्कर समूह की ओर से मासिक १५ करोड़ देना होगा । इसके बदले सरकार की ओर से विमानस्थल में कोई भी दिक्कत नहीं की जाएगी । ‘भ्रष्टाचार का साम्राज्य’ नामक पुस्तक में आर्थिक पत्रकार बाबुराम ढकाल ने उल्लेखित प्रसंग को लिखा है । जहाँ लिखा है– ‘सम्झौता अनुसार प्रथम महीना का शुल्क ‘१५ करोड़’ तस्कर समूह ने दे दिया था ।’ लेकिन राजश्व संकलन ५ प्रतिशत में सीमित हो गया । सुटकेस में खुल्म–खुल्ला सोना लेकर आनेवाले व्यापारी की किसी ने भी जांच–पड़ताल नहीं की । प्रधानमन्त्री के निर्देशन में गृह और अर्थमन्त्री से परिचालित कर्मचारी सोना का व्यापार करनेवाले व्यक्ति को एयरपोर्ट से बाहर निकालने के लिए मदद करते थे । इसतरह प्राप्त सहयोग के बदले मासिक २५–३० लाख कर्मचारियों को दिया जाता था । तस्करी करनेवाले व्यापारी विमानस्थल से आवत–जावत करते हैं तो कर्मचारी को उनका हुलिया बताया जाता था, जो दूर से ही पहचान में आते थे, और दूर से उनको नमस्कार किया जाता था । ‘प्रधानमन्त्री के ही निर्देशन में तस्करी हो रही है’, ऐसी सूचना राजदरबार तक पहुँच गई । दरवार ने सैनिक परिचालन कर हस्तक्षेप करने का योजना बनाया । सादा पोशाक में नेपाली सेना के अधिकारी विमानस्थल में पहुँच गए । सेना की ओर से सूचना प्राप्त कर भेरिफाइ होने के बाद प्रधानमन्त्री सूर्यबहादुर को तस्करी करने की आरोप में गिरफ्तार करने की योजना थी । लेकिन रक्षा मन्त्री की जिम्मेदारी में भी थापा ही थे । इसीलिए दरबार की योजना का उनको पता चला गया । इसीलिए १७ दिनों के बाद प्रधानमन्त्री स्वयम् ने पुलिस प्रमुख अच्युतकृष्ण खरेल और भन्सार प्रमुख जनार्दन शर्मा को एक निर्देशन देते हुए तस्करी रोकने के लिए कहा ।
– सरकार के उच्च पदस्थ व्यक्तियों की संरक्षण और योजना में सोना की तस्करी हो रही थी । इसीलिए २०५५ वैशाख २३ गते राष्ट्रीय जनमोर्चा के सांसद परी थापा की अध्यक्षता में ९ सदस्यीय ‘राजश्व चुहावट छानबिन समिति’ बनाया गया । समिति ने ९ महिनों के बाद एक प्रतिवेदन तैयार की, जहां १६ व्यक्ति सोने की तस्करी प्रत्यक्ष संलग्न होने की बात थी । राजश्व चुहावट में संलग्न होने का आरोप १३० व्यक्ति के ऊपर था । यद्यपि उक्त प्रतिवेदन और आरोपित व्यक्तियों के ऊपर कोई भी कारवाही नहीं हुई ।
– वि.सं. २०५४ मंसिर २९ गते की बात है । कोरियन नागरिक जो कुन ह्वा और युन सोङ १०० केजी सोने के साथ त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थल आ गए, दोनों को गिरफ्तार किया गया । बताया जाता है कि तत्कालीन राजदरबार, प्रधानमन्त्री और प्रशासनिक कर्मचारियों के बीच तालमेल ना होने के कारण वे लोग गिरफ्तारी में पड़ गए थे । वि.सं. २०५४ साल के बाद पहली बार (वि.सं. २०८० साल साउन २ गते) १०० केजी सोना गिरफ्तारी में आया है । इस अवधि जो भी सोना गिरफ्तारी में आया है, वह १०० केजी से कम ही परिमाण का था ।
– वि.सं. २०४६ साल की राजनीतिक परिवर्तन के बाद गृहमन्त्री बने नेपाली कांग्रेस के नेता खुमबहादुर खड्का और नेकपा एमाले के नेता वामदेव गौतम सोने की तस्करी काण्ड में ज्यादा चर्चा में आते थे । बताया जाता है कि उन लोगों के कार्यकाल में नेपाल में सबसे अधिक सोने की तस्करी हुई है । ऐसी आरोपों को पुष्टि करने के लिए कोई भी तथ्य नहीं है । लेकिन अवकाश प्राप्त नेपाल पुलिस के तत्कालीन कुछ उच्च अधिकारी अनौपचारिक सम्वाद में कहते हैं कि गृहमन्त्री खड्का और गौतम खुद अपने ही गाड़ी में तस्करी का सोना लेकर चलते थे ।
– पूर्व मुख्य सचिव तथा अख्तियार दुरुपयोग अनुसंधान आयोग के पूर्व प्रमुख लोकमान सिंह कार्की का नाम भी सोने के तस्करी प्रकरण में उच्च अधिकारी के रूप में लिया जाता है ।
– नेपाल–भारत और नेपाल–चीन सीमा क्षेत्र होकर व्यवसाय करनेवाले व्यापारीगण कभी–कभार आपस हल्ला÷सलाह करते हैं कि कुछ नेता तथा प्रशासक अपने निकट व्यवसायी के सहयोग से कपड़ा तथा खाद्यान्न आयात÷निर्यात के नाम से सोने की अवैध ओसार÷पसार करते हैं÷कराते हैं ।
नियन्त्रित सोना किसका है ? यह पता करने में असफल प्रशासन इसतरह की मौखिक अफवाहों के ऊपर सत्य–तथ्य जांच कर करेगी और दोषी के ऊपर कारवाही करेगी, यह सम्भवतः कल्पना ही है ।