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कैसे कांग्रेस को राजस्थान में भारी पड़ गई गुर्जरों की नाराजगी?

रतन गुप्ता उप संपादक
राजस्थान विधानसभा चुनाव में पिछले तीन दशकों से चला आ रहा सत्ता परिवर्तन वाला ट्रेंड बरकरार रह गया है। रुझानों से साफ जाहिर है कि वहां कांग्रेस सत्ता से काफी दूर हो चुकी है।

अगर पूरे राज्य में कांग्रेस और भाजपा के सफल उम्मीदवारों का ग्राफ देखें तो सबसे पहली यही बात सामने आ रही है कि कांग्रेस को लेकर विश्लेषक जिस डर का अनुमान लगा रहे थे, वही हुआ है। सचिन पायलट को नजरअंदाज करना कांग्रेस को बहुत भारी पड़ गया है।

गुर्जर मतदाताओं का बीजेपी की ओर वापसी का संकेत
जिन भाजपा समर्थक गुर्जरों ने पिछली बार सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की उम्मीद में पार्टी से मुंह फेर लिया था, इस बार उन्होंने फिर से भारतीय जनता पार्टी में वापसी कर ली है या कांग्रेस से उनका मुंह भंग हो चुका है।

वोट शेयर में भाजपा की बढ़त
राजस्थान के चुनाव परिणामों/रुझानों से साफ नजर आ रहा है कि बीजेपी ने कांग्रेस पर 1% से भी ज्यादा वोट शेयर की बढ़त बना ली है। यह 2018 के विधानसभा चुनाव परिणामों के ठीक विपरीत है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में बीजेपी को करीब 41% वोट मिल रहे हैं। जबकि, कांग्रेस लगभग 40% वोट शेयर के लिए संघर्ष कर रही है।

2018 में बहुत कम अंतर से बीजेपी रही थी पीछे
2018 में कांग्रेस को 39.8% वोट मिले थे और वह 200 विधायकों वाले सदन में बहुमत के आंकड़े से एक सीट दूर यानि 99 पर पहुंची थी। जबकि, बीजेपी को उससे मामूली कम वोट यानि 39.3% मिले थे और वह 73 सीटें जीतकर विपक्ष में पहुंच गई थी।

पूर्वी राजस्थान में गर्जरों ने कर दिया कांग्रेस का खेल!
राजस्थान में कांग्रेस के प्रति गुर्जरों की नाराजगी पर एक रिपोर्ट वनइंडिया ने 22 नवंबर को ही प्रकाशित की थी। यही वह गुर्जर वोट बैंक है, जिसने पिछली बार सचिन पायलट को सीएम बनने की उम्मीद में पूर्वी राजस्थान (गुर्जरों के प्रभाव वाले इलाके) में कांग्रेस (निर्दलीय,बीएसपी समेत) को 39 में से 35 सीटें दी थीं।

तथ्य यह भी है कि पिछली बार बीजेपी के सारे 9 गुर्जर उम्मीदवारों की हार हुई थी। बीजेपी को इस इलाके में तब महज 4 सीटें ही मिली थीं।

गुर्जर प्रत्याशी वाली सीटों पर ज्यादा वोटिंग, अन्य पर कम
इस बार गुर्जर इलाकों का वोटिंग पैटर्न बदला नजर आया था। जिन सीटों पर गुर्जर प्रत्याशी थे, वहां ज्यादा वोटिंग हुई। अन्य सीटों पर मतदान का प्रतिशत घट गया। इसका यही संकेत निकाला जा सकता है कि गुर्जर वोटरों ने अपनी जाति के प्रत्याशियों की तरफ ही रुझान दिखाया है।

यही वजह है कि बांदीकुई, दौसा, लालसौट, सिकराय, महुआ जैसी सीटों पर मतदान प्रतिशत इस बार कम दर्ज किया गया। जबकि, गुर्जर उम्मीदवारों वाली सीटों पर ज्यादा वोटिंग हुई। तथ्य यह भी है कि बीजेपी के गुर्जर प्रत्याशी वाली सीट पर सबसे ज्यादा वोटिंग हुई।

शायद भारतीय जनता पार्टी को शायद इस बार चुनाव से काफी पहले ही गुर्जर समुदाय की भावनाओं की भनक लग गई थी। यही वजह है कि वह दक्षिणी दिल्ली के सांसद और गुर्जर नेता रमेश बिधूड़ी को गुर्जर बहुल टोंक जिले का चुनाव प्रभारी बनाकर भेजा था।

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