भारत नेपाल बार्डर पर दवाओं से बना रहे ‘हेरोइन’ और ‘स्मैक

रतन गुप्ता उप संपादक

दवाओं से बना रहे ‘हेरोइन’ और ‘स्मैक’

नशे के धंधे में जुड़े लोगों ने कानून को ठेंगा दिखाने का जुगाड़ ढूंढ लिया है। ये लोग मरीजों को दी जाने वाली आम दवाओं से ‘हेरोइन’, ‘स्मैक’ और ‘अफीम’ तैयार करके उसे पावर, झटका और कट के नाम से सीमावर्ती क्षेत्रो के बाजार, और नेपाल भेज रहे हैं ।

ऐसे धंधेबाज जब इस हेरोइन, स्मैक या फिर अफीम के साथ पकड़े भी जाते हैं तो जांच में पुष्टि न होने के चलते आसानी से बच निकलते हैं। हालांकि नारकोटिक्स डिपार्टमेंट इस जुगाड़ का तोड़ तलाश लेने का दावा कर रहा है। उसकी मानें तो अब ऐसी नशीली चीजों के परीक्षण में अल्प्राजोलम टेस्ट भी शामिल कर लिया गया है, जिसके साबित होने पर क्वांटिटी के आधार पर अपराधी को सलाखों के पीछे भेजा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी समेत प्रदेश में अफीम समेत अन्य नशे के कच्चे माल का उत्पादन काफी कम हो गया है। ऐसे में नशे के सौदागरों ने दवाओं के मिश्रण से नकली नशा बनाना शुरू कर दिया है। सूत्रों की मानें तो पावर नाम के नशे को हेरोइन बताकर बेंचा जा रहा है। इसे बनाने के लिए आसानी से मिलने वाला सस्ता पैरासिटामॉल और एलप्राजोलम का मिश्रण का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे बनाने में प्रति किलो की लागत सत्तर हजार रुपये आती है। वहीं थोक के बाजार में छह से सात लाख रुपये प्रति किलो बेंचा जाता है। फुटकर रेट 30 से 50 लाख तक है।

आगे जितना भी रेट तय हो जाए। जबकि असली हेरोइन की कीमत तीन करोड़ से अधिक प्रति किलो होती है। वहीं झटका को स्मैक बता के बेंचा जा रहा है। इसे पैरासिटामाल और एलप्राजोलम व गन पाउडर के मिश्रण से बनाया जाता है। कट को पैरासीटामाल और कैफीन के मिश्रण से बना के अफीम कहकर बेचा जाता है।

इस मिलावट के दो फायदे होते हैं। एक कम खर्च में अधिक पैसे मिलते हैं, वहीं दूसरा सजा से बचत। क्योंकि इस तरह के लोग जब नशीले पदार्थों के साथ पकड़े जाते हैं तो जांच में हेरोइन, स्मैक या अफीम होने की बात साबित नहीं हो पाती है और वो बच जाते थे। नशे का यह धंधा नारकोटिक्स विभाग के लिए चुनौती बन गया था। विभागीय अधिकारियों के मानें तो उन्होंने इस गोरखधंधे का तोड़ निकाल लिया है। क्योकि निर्धारित क्वांटिटी के अधिक मिलने पर यह नशे की गोलियां भी इन धंधेबाजों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए काफी हैं, इसलिए नशीले पदार्थ की जांच में एलप्राजोलम टेस्ट को भी शामिल किया गया है।

ऐसे जांच में बच निकलते तस्करः पुलिस पावर, झटका और कट को हेरोइन, स्मैक और अफीम समझ के कार्रवाई करती है। इसके बाद इनका सैंपल जांच के लिए भेजा जाता है। जहां रिपोर्ट में स्मैक, अफीम और हेरोइन नहीं निकलता है। दरअसल हेरोइन, स्मैक और अफीम में डाई एथाइल मार्फीन की जांच कराई जाती है, लेकिन पावर, कट और झटका में एसिटिक एनहाईड्राइट नहीं होने से डाई इथाइल मार्फीन नहीं निकलती है। इससे नशे के कारोबारी आसानी से बच जाते हैं।

नकली नशे में होगी असली सजाः नशा चाहें असली हो या नकली, अगर नशे के नाम पर बेंचा जा रहा है। इन हालात में सजा असली नशे की मिलेगी। इस संबंध में केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग ने निर्देश जारी किए हैं। दवाओं के मिश्रण से तैयार किए जा रहे नशे को रोकने के लिए पुलिस को एलप्राजोलम टेस्ट कराने के निर्देश केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो ने दिये हैं। जिससे असली और नकली में पुलिस चकमा नहीं खाएगी। नकली नशे का कारोबार किए जाने की जानकारी मिली है। हमने सख्ती शुरू कर दी है। इस कारोबार की जड़ों तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा हैं। हमें कई ऐसे सुराग मिले हैं, इनको सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। हम नशे की तस्करी को हर हाल में खत्म करेंगे। नारकोटिक विभाग लखनऊ

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