रतन गुप्ता उप संपादक
चीन की अपने पड़ोसी देशों में राजनीतिक हस्तक्षेप और कर्ज का जाल फैलाकर आर्थिक दखल की कोशिशें दुनिया से छुपी नहीं है। चीन ने नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए हालिया सालों में खासतौर से कोशिशें की हैं, माना जा रहा है कि चीन का प्रभाव अब बढ़कर मीडिया तक पहुंच गया है। जानकार मानते हैं कि मीडिया से चीन के कर्ज, नेपाली भूमि पर अतिक्रमण और काठमांडू में बीजिंग की राजनीतिक साजिशों पर कवरेज गायब हो गई है। चीन की गतिविधियों से जुड़ी निगेटिव कवरेज मुख्यधारा के मीडिया आउटलेट से गायब कर दी गई है। चीन के मामले में आलोचनात्मक कवरेज अब सिर्फ नेपाल के स्थानीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं तक बचे हैं।
द संडे गार्जियन की रिपोर्ट कहती है कि नेपाल के रणनीतिक मामलों में चीन के हस्तक्षेप, क्षेत्रीय अतिक्रमण और काठमांडू में कर्ज से भरे निवेश की कवरेज को गायब करने के साथ ही बीजिंग ने भारत और अमेरिका को निशाना बनाते हुए मीडिया अभियान चलाया है। नेपाल के सूत्रों ने संडे गार्डियन से बात करते हुए कहा कि नवंबर 2016 से दिसंबर 2018 तक नेपाल में चीनी राजदूत हू योंग के कार्यकाल के दौरान मीडिया में हेरफेर काफी बढ़ा। उनके बाद आए होउ यांकी के कार्यकाल में भी ये पर्याप्त प्रयास जारी रहे। काठमाडू में कई एक्सपर्ट कहते हैं कि होउ यांकी पारंपरिक राजनयिक के बजाय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य की तरह काम करती थीं और मीडिया मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती थीं।
नेपाल के अधिकारियों और पत्रकारों के अनुसार, चीन ने नेपाल में रिपोर्टिंग को प्रभावित करने के लिए अपने पास मौजूद तीन उपकरणों का इस्तेमाल किया। सबसे पहले चीन ने पिछले 5-6 वर्षों में अनुमानित 9000 नेपाली पत्रकारों को फ्री में ट्रेनिंग के लिए चीन भेजा। हालांकि लौटने पर कोई भी पत्रकार इस सवाल का जवाब नहीं दे सका कि बीजिंग में उन्हें क्या पत्रकारिता प्रशिक्षण, जहां कोई लोकतंत्र नहीं है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। दूसरे इन पत्रकारों के बच्चों को प्रतिष्ठित चीनी विश्वविद्यालयों में दाखिले भी दिए गए प्रवेश दिलाने में मदद की गई और उनको स्कॉलरशिप दी गई। इससे नेपाल के कई प्रभावशाली पत्रकार चीन के तरफदार बन गए।
चीन का तीसरा अहम काम नेपाल में चीनी मीडिया को लाना था। भारी धन और उन्नत उपकरणों से लैस ये मीडिया संस्थाएं शक्तिशाली आवाज बन गई हैं, जो नेपाल में वही प्रसारित करती हैं जो बीजिंग चाहता है। इन मीडिया संस्थाओं के निशाने पर भारत और खासतौर से अमेरिका है। अमेरिका को इस हद तक इन संस्थानों ने निशाना बनाया कि वॉशिंगटन को बीजिंग के उकसावे पर नेपाली मीडिया द्वारा फैलाई गई गलत सूचना से निपटने के लिए दस बिंदुओं वाली तथ्यात्मक शीट जारी करनी पड़ी। इसमें बताया गया है कि कैसे नेपाल के कई संवेदनशील मामलों पर गलत रिपोर्टिंग की गई।
नेपाल के पत्रकार और लेखक बाबूराम बिश्वकर्मा ने इस मुद्दे पर संडे गार्डियन को बताया कि चीन ने नेपाल में मीडिया सिस्टम में काफी बड़े स्तर पर घुसपैठ कर ली है। मीडिया और पत्रकार विभिन्न कारणों से इस मुद्दे पर नहीं लिख रहे हैं। भारत और अमेरिका से संबंधित किसी भी नकारात्मक खबर को मीडिया बड़े पैमाने पर उठाती है और चीन पर चुप रहती है। इससे साफ है कि बीजिंग नेपाली मीडिया को अपने नियंत्रण में लाने में कामयाब रहा है।