रतन गुप्ता उप संपादक
महराजगंज। जनपद के 249732 गोवंशीय व महिषवंशीय पशुओं की जान आफत में है। ब्लाॅकवार व न्याय पंचायत स्तर पर इनके लिए सरकारी अस्पताल तो जरूर है, लेकिन चिकित्सकों की कमी के चलते व्यवस्था बेपटरी है। जनपद में 31 पशु चिकित्सकों की जरूरत है। इसके सापेक्ष सिर्फ 17 पशु चिकित्सक ही तैनात हैं। स्थिति यह है कि एक-एक डाॅक्टर के पास दो-दो अस्पतालों का चार्ज है। डाॅक्टरों की कमी के कारण पशु पालक समस्या होने पर निजी डाक्टरों को बुलाकर अपने पशुओं का इलाज कराते हैं।
महराजगंज जिला वन आच्छादित होने के कारण पशु पालन के लिए काफी मुफीद है। यहां गोवंश व महिषवंश के लगभग ढाई लाख पशु पशुपालकों के घर की रौनक बढ़ा रहे हैं। पशुपालक इनसे प्रचुर मात्रा में दूध व अच्छी नस्ल के बच्चे कृत्रिम गर्भाधान की मदद से प्राप्त करते हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों में डाॅक्टर न होने के कारण पशुओं का उपचार फार्मासिस्ट अथवा पशुधन प्रसार अधिकारी की मदद से कराना पड़ता है।
सरकारी अस्पतालों में बाएफ तथा अन्य योजनाओं से कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा पशुपालकों को मिली हुई, लेकिन चिकित्सक न होने के कारण कृत्रिम गर्भाधान से लेकर पशुपालकों को पशु का उपचार कराने में दिक्कत होती है। समस्या से बचने के लिए पशुपालक क्षेत्र के प्राइवेट डाक्टरों को इलाज के लिए बुलाकर ले जाते हैं, जो मोटी फीस के साथ महंगी दवाएं लिखते हैं। फरेंदा निवासी अरविंद कुमार मिश्र, राधेश्याम यादव तो घुघली के शशि मौर्या, अर्जुन चौधरी पशुपालक कहते हैं कि सरकारी अस्पताल खुले जरूर रहते हैं, लेकिन डॉक्टर न होने से पशुओं को त्वरित उपचार नहीं मिल पाता।
जनपद में पशु चिकित्सकों की कमी एक साल से बनी हुई है। एक-एक डाॅक्टर को दो-दो अस्पतालों का चार्ज देकर किसी तरह काम चलाया जा रहा है। उच्चाधिकारियों को चिकित्सकों की कमी के बारे में कई बार पत्र भेजा जा चुका है।
-डॉ. उदयनाथ सिंह, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी