मदद के बहाने गरीबों को और अन्य लोगों को ठग रहे सरकारी अस्पताल


रतन गुप्ता उप संपादक

गोरखपुर
सरकारी अस्पतालों में भर्ती हड्डी के मरीजों के लिए उपकरण (इंप्लांट) की खरीद सरकार की तरफ से नहीं होती है। इसके बाद भी हर दिन टूटी हड्डी का ऑपरेशन होता और उपकरण भी लगाए जाते हैं। इस सच्चाई से अस्पताल के वार्ड बॉय से लेकर प्रदेश के बड़े अफसर तक वाकिफ हैं। लेकिन, यह जानने की जहमत कोई नहीं उठाता कि हर दिन आखिर ऐसे उपकरण आते कहां से हैं? दरअसल पूरा मामला गरीबों की मदद के बहाने जेब भरने का है। अस्पताल आए मरीज से कहा जाता है कि इस ऑपरेशन के लिए निजी अस्पताल में 50 हजार रुपये देने होंगे। अगर 15 हजार रुपये खर्च करोगे तो यहीं हो जाएगा। नहीं तो एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर होना पड़ेगा।

अकेले जिला अस्पताल में हर दिन सात से आठ मरीज ऐसे आते हैं, जिन्हें ऑपरेशन के बाद उपकरण लगाने होते हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज और एम्स में यह संख्या 20 से ऊपर रहती है। आर्श्चजनक यह है कि इस ऑपरेशन के लिए डॉक्टर और ऑपरेशन थिएटर तो हैं, लेकिन जरूरी उपकरण नहीं है। मरीज या तो निजी अस्पताल जाएं या फिर सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार को स्वीकार करें। हड्डी वार्ड में भर्ती एक मरीज ने बताया कि सरकारी अस्पताल में लोगों की मदद के लिए यह कहा जाता है कि वे उपकरण खरीद लें। इसके बाद जांच व ऑपरेशन का जो मामूली खर्च है, बस वही तो देना होता है। यही डॉक्टर बाहर निजी अस्पताल में ऑपरेशन कर इतने का ही 50 से 55 हजार लेते हैं। जो मरीज उपकरण के लिए रुपये जमा कर देता है, उसकी तत्काल मदद करते हुए ऑपरेशन करा दिया जाता है। जो नहीं देता या कहीं शिकायत करता है तो उसे उल्टे-सीधे जांच लिखकर रोक दिया जाता है। बाद में जब मरीज की स्थिति बिगड़ने लगती है तो हालत गंभीर होने के बहाने उसे दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। ऐसे मरीजों को दूसरे अस्पताल में भी मदद नहीं मिलती और उसे वापस किसी न किसी निजी अस्पताल में ही जाना पड़ता है।
शिकायतों की नहीं होती जांच
उपकरणों की खरीद प्रकरण में सारे अफसर एक सुर में बोलते हैं। ऐसे मामले में चाहे कुछ भी हो जाए पहले तो जांच नहीं होती, अगर किसी कारणवश जांच करनी भी पड़े तो शिकायतें झूठी बताकर प्रकरण को रफा-दफा कर दिया जाता है। क्योंकि अगर एक मामले में कार्रवाई हुई तो दूसरी शिकायतें भी आनी शुरू हो जाएंगी। ऐसे में पूरे सिस्टम की पोल खुल जाएगी। बीते जनवरी में संतकबीरनगर जिले का एक मरीज बीआरडी मेडिकल कॉलेज के हड्डी रोग विभाग में 10 दिन से पड़ा था। उपकरण के लिए रुपये नहीं देने के कारण ऑपरेशन की तारीख नहीं मिलती थी। परिजनों ने विरोध किया तो उनके साथ मारपीट की गई। बाद में जब उसने उपकरण खरीद के लिए रुपये दिए, तभी उसका ऑपरेशन किया गया। मामले की शिकायत तत्कालीन प्राचार्य से हुई लेकिन उन्होंने जांच नहीं कराई। बीते अप्रैल में ऐसा ही प्रकरण एम्स में भी आया। महराजगंज जिले के एक मरीज ने एम्स के वरिष्ठ डॉक्टर पर 15 हजार का उपकरण 45 हजार रुपये में खरीदवाने का आरोप लगाया। मरीज ने पुलिस में भी शिकायत की, लेकिन उस मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
उपकरणों की सरकारी स्तर पर खरीद नहीं होती है। खरीद में मनमानी के मामलों की शिकायत मुझे नहीं मिली है। जिला अस्पताल का प्रकरण वहां के एसआईसी के संज्ञान में होगा। ऐसे मामलों में अगर कोई लिखित शिकायत मिलती है तो उसकी जांच कराई जाएगी।

डॉ. नरेंद्र गुप्ता,
एडी हेल्थ

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