रतन गुप्ता उप संपादक
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। पीएम ‘प्रचंड’ ने विश्वास मत का सामना करने का फैसला किया था। पीएम 12 जुलाई को प्रतिनिधि सभा में बहुमत परीक्षण का सामना करेंगे।
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ 12 जुलाई को प्रतिनिधि सभा में बहुमत परीक्षण का सामना करेंगे। बृहस्पतिवार को इसकी घोषणा की गई। इस सप्ताह की शुरुआत में प्रचंड के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से दो प्रमुख राजनीतिक दलों ने समर्थन वापस ले लिया था। प्रधानमंत्री ने संसद सचिव को एक पत्र लिखकर बहुमत परीक्षण के लिए मतदान की व्यवस्था करने का अनुरोध किया है।
क्या कहता है संविधान
काठमांडू पोस्ट की खबर में कहा गया है, “दाहाल ने संविधान के अनुच्छेद 100 (2) के तहत बहुमत परीक्षण कराने का अनुरोध किया है, जिसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री जिस दल का नेतृत्व कर रहे हैं, अगर वह विभाजित हो जाता है या कोई राजनीतिक दल गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लेता है तो प्रधानमंत्री को 30 दिन में प्रतिनिधि सभा में बहुमत साबित करने के लिए प्रस्ताव पेश करना होगा।”
इन दलों के बीच हुआ समझौता
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट (सीपीएन-यूएमएल) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओलि ने गठबंधन सरकार बनाने के लिए सोमवार को समझौता किया था। उल्लेखनीय है कि 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस के 89 जबकि सीपीएन-यूएमएल के 78 सदस्य हैं। प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओइस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी) के 32 सांसद हैं।
16 साल में 13 सरकार
दस सीट वाली सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट (सीपीएन-यूएस) ने कहा है कि वह प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार के पक्ष में मतदान करेगी। इस समर्थन के बावजूद, प्रचंड को प्रतिनिधि सभा के केवल 63 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 138 वोट की जरूरत होगी। लगभग डेढ़ साल के कार्यकाल में प्रचंड (69) पांचवीं बार बहुमत परीक्षण में शामिल होंगे। नेपाल में बीते 16 साल में 13 सरकार रही हैं, जिससे देश की राजनीतिक प्रणाली की नाजुक स्थिति का पता चलता है।