भाषा : भोजपुरी का भविष्य,भारत नेपाल में 20 करोड लोग भोजपुरी बोलते हैं

रतन गुप्ता उप संपादक
मौजूदा समय में भारत और नेपाल में ही बीस करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। वैश्विक स्तर पर भी इसे बोलने-समझने वालों की तादाद करोड़ों में है।

नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगों की आबादी करोड में है जो वहां की भाषा की तकरीबन नौ फीसद है।———-

नेपाल के थारू लोग भी भोजपुरी बोलते हैं। नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगों की आबादी लाखों में है जो वहां की भाषा की तकरीबन नौ फीसद है। सच कहें तो आज की तारीख में भोजपुरी भाषा का जितना विस्तार हुआ है उतना अन्य किसी लोकभाषा का नहीं हुआ है। मौजूदा समय में भारत में ही बीस करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। वैश्विक स्तर पर भी इसे बोलने-समझने वालों की तादाद करोड़ों में है। कें द्र सरकार द्वारा भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव भोजपुरी भाषा बोलने वाले लोगों का सम्मान तो है ही, साथ ही अन्य लोकभाषाओं को भी आठवीं अनुसूची में शामिल करने की दिशा में एक उम्मीदभरी पहल भी है। भोजपुरी के अलावा दूसरी भाषाओं को भी आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठती रही है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है और संविधान के 92 वें संशोधन अधिनियम, 2003 के बाद आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाओं को राजभाषा के रूप में मान्यता हासिल है।

आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएं हैं-असमिया, बांग्ला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू। अगर भोजपुरी समेत अन्य सभी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो आठवीं अनुसूची में कुल भाषाओं की संख्या 38 हो जाएगी। जहां तक भोजपुरी का सवाल है तो यह सुंदर, सरस और मधुर भाषा है। इसकी मिठास लोगों को सहज ही अपने आकर्षण में बांध लेती है। यह एक विशाल भूखंड की भाषा है लिहाजा उसकी महत्ता और विस्तार के कारण ही इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर संवैधानिक भाषा का दर्जा की मांग उठती रही है। 1969 से ही अलग-अलग समय पर सत्ता में आई सरकारों ने भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का आश्वासन दिया था। लेकिन दशकों गुजर जाने के बाद भी भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।

अगर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो निसंदेह उसके सुखद परिणाम होंगे। एक तो भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा हासिल हो जाएगा और दूसरे, भोजपुरी भाषा से जुड़ी ढेरों संस्थाएं अस्तित्व में आएंगी जिससे क्षेत्रीय भाषा का विकास होगा और साथ ही कला, साहित्य और विज्ञान को समझने-संवारने में मदद मिलेगी। संवैधानिक दर्जा मिलने से भोजपुरी भाषा की पढ़ाई के लिए बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालय, कालेज और स्कूल खुलेंगे जिससे कि रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी। लेकिन कुछ विद्वानों की मानें तो भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने से हिंदी का नुकसान होगा। उनका तर्क है कि अगर भोजपुरी आठवीं अनुसूची में शामिल हो गई तो आने वाले दिनों में मैथिली की तरह भोजपुरी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी आदि को अपनी मातृभाषा बताने वाले हिंदी भाषी नहीं गिने जाएंगे और फिर हिंदी को मातृभाषा बताने वाले गिनती के रह जाएंगे। यानी हिंदी की ताकत घटेगी और फिर अंग्रेजी को भारत की राजभाषा बनाने के पक्षधर उठ खड़े होंगे। यहां समझना होगा कि हिंदी क्षेत्र के विभिन्न बोलियों के बीच अगर कोई भाषा एकता का सूत्र है तो वह हिंदी है।

भोजपुरी भाषा के इतिहास को देखें तो इसे हिंदी की उपभाषा या बोली भी कहा जाता है। भोजपुरी अपने शब्दावली के लिए संस्कृत और हिंदी पर निर्भर है। वहीं कुछ शब्द इसने उर्दू से भी लिएं है। आचार्य हवलदार त्रिपाठी ने अपने शोध में पाया है कि भोजपुरी संस्कृत से निकली है। उन्होंने अपने कोश ग्रंथ ‘व्युत्पत्तिमूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं’ के जरिए भोजपुरी तथा संस्कृत भाषा के मध्य समानता स्थापित की है। ऐसी मान्यता है कि भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर गांव के नाम पर हुआ। मध्यकाल में इस स्थान को मध्यप्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने बसाया था। उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर भोजपुर रखा। इसी के कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम भोजपुरी पड़ा। यह भाषा बिहार राज्य के बक्सर, सारण, छपरा, सीवान, गोपालगंज, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, वैशाली, भोजपुर और रोहतास जिलों के अलावा आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। इस क्षेत्र को भोजपुरी क्षेत्र भी कहा जाता है।

वहीं उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी, चंदौली, गोरखपुर, महाराजगंज के अलावा अन्य कई जिलों में यह बोली जाती है। 1812 ईस्वी में अंग्रेजी विद्वान और इतिहासकार डॉ. बकुनन भोजपुर क्षेत्र में आए थे और उन्होंने मालवा के भोजवंशी उज्जैन राजपूतों के चेरों जाति को पराजित करने के संबंध में उल्लेख भी किया है। भाषा के के अर्थ में भोजपुरी शब्द का पहला लिखित प्रयोग रेमंड की पुस्तक ‘शेरमुताखरीन’ के अनुवाद (दूसरे संस्करण) की भूमिका में मिलता है। इसका प्रकाशन 1789 है। राहुल सांकृत्यायन ने भोजपुरी को ‘मल्ली’ और ‘काशिका’ दो नाम दिए हैं। भोजपुरी जानने-समझने वालों का विस्तार केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी महाद्वीपों तक है। इसका प्रमुख कारण ब्रिटिशराज के दौरान उत्तर भारत से अंग्रेजों द्वारा ले जाए गए मजदूर हैं। अब उनके वंशज वहीं बस गए हैं। इनमें सूरीनाम, मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिनाद, टोबैगो और फिजी देश प्रमुख हैं।

मॉरीशस ने जून, 2011 में ही भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता दे दी थी। पड़ोसी नेपाल के रौतहट, बारा, पर्सा, बिरग, चितवन, नवलपरासी, रुपनदेही और कपिलवस्तु में भी भोजपुरी बोली जाती है। नेपाल के थारु लोग भी भोजपुरी बोलते हैं। नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगों की आबादी लाखों में है जो वहां की भाषा की तकरीबन नौ फीसद है। सच कहें तो आज की तारीख में भोजपुरी भाषा का जितना विस्तार हुआ है उतना अन्य किसी लोकभाषा का नहीं हुआ है। मौजूदा समय में भारत में ही बीस करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। वैश्विक स्तर पर भी इसे बोलने-समझने वालों की तादाद करोड़ों में है। भोजपुरी भाषा का इतिहास सातवीं सदी से प्रारंभ होता है। भोजपुरी साहित्यकारों की मानें तो सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय के संस्कृत कवि बाणभट्ट के विवरणों में ईसानचंद्र और बेनीभारत का उल्लेख है जो भोजपुरी कवि थे। नवीं शताब्दी में पूरन भगत ने भोजपुरी साहित्य को आगे बढ़ाने का काम किया। नाथसंप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने सैकड़ों वर्ष पहले गोरख बानी लिखा था। बाबा किनाराम और भीखमराम की रचना में भी भोजपुरी की झलक मिलती है।

बाद के भोजपुरी कवियों में तेग अली तेग, हीरा डोम, बुलाकी दास, दूधनाथ उपाध्याय, रघुवीर नारायण, महेंद्र मिश्र का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। हालांकि भोजपुरी भाषा में निबद्ध साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अनेक कवियों और लेखकों ने इसे समृद्ध भाषा बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भोजपुरी भाषा के लोक समर्थ कलाकार भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी को नई ऊंचाई दी। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। उनकी कृति बिदेसिया, भाई-बिरोध, बेटी-बेचवा, कलयुग प्रेम उल्लेखनीय है। भोजपुरी भाषा के उत्थान में पांडेय कपिल, रामजी राय और भोलानाथ गहमरी का योगदान सराहनीय है। इसके साहित्य का इतिहास लिखने वालों में ग्रियर्सन, उदय नारायण तिवारी, कृष्णदेव तिवारी, हवलदार तिवारी और तैयब हुसैन गौरतलब हैं। आज भी ढेरों भोजपुरी लेखक, कवि, साहित्यकार और गायक भोजपुरी भाषा को समृद्ध करने का काम कर रहे हैं। संत कबीर दास का जन्मदिवस (1297 ईस्वी) भोजपुरी दिवस के स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है।

भोजपुरी भाषा में अनेक पत्र-पत्रिकाएं और ग्रंथ अनुदित हो रहे हैं। बाजार में इनकी जबरदस्त मांग भी है। भोजपुरी लोक साहित्य के अलावा भोजपुरी गीतों और फिल्मों ने भी कलकत्ता से लेकर मुंबई तक धमाल मचा रखा है। अब तो हिंदी फिल्मों में भोजपुरी गीतों का तड़का भी लगने लगा है। कई हिंदी फिल्में भोजपुरी गीतों की वजह से सुपर-डुपर हिट हो चुकी हैं। साहित्य, कला और फिल्मों के अलावा विश्व भोजपुरी सम्मेलन भी आंदोलनात्मक, रचनात्मक और बौद्धिक स्तर पर पहल कर भोजपुरी को समृद्ध बनाने, भोजपुरी साहित्य को सहेजने और उसके प्रचार-प्रसार में जुटा हुआ है। भोजपुरी भाषा के विकास और विस्तार के लिए भोजपुरी साहित्यकारों की ओर से भी उल्लेखनीय पहल हो रही है। मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और अमेरिका में भी भोजपुरी भाषा के विकास के लिए कई संस्थान खोले गए हैं। यह भोजपुरी भाषा के उपादेयता और प्रासंगिकता को ही रेखांकित करता है। भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना भोजपुरी जनमानस की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के अनुकुल ही होगा

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