जंग-ए-आजादी में गोरक्षनगरी के सपूतों की अमर गाथा की है लंबी फेहरिस्त


रतन गुप्ता उप संपादक

जंगे आजादी में गोरक्षनगरी के वीर सपूतों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। वीर शहीदों की अमर गाथा से अछूता नहीं रहा। उनकी अमर गाथा की लंबी फेहरिस्त है। अंग्रेजों को नाको चने चबवा देने वाले शहीद बंधू सिंह हों या बाबू अक्षयबर सिंह, ने अंग्रेजों की यातनाएं सही। राम प्रसाद बिस्मिल ने हंसते-हंसते गोरखपुर जेल में फांसी के फंदे को चूम लिया।

अंग्रेजी हुकूमत की दासता स्वीकार न करने वाले नरहरपुर स्टेट के राजा हरि प्रसाद मल्ल का सिर अंग्रेजों ने काट लिया था। काकोरी ट्रेन लूट व बनारस षड्यंत्र की योजना बनाने वाले सरदार भगत सिंह के गुरु सचींद्रनाथ सान्याल भी इसी शहर के थे। वहीं, हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे लोगों ने जनचेतना के जरिए लोगों में आजादी की लड़ाई के प्रति जागृत किया। ऐसे ढेर सारे क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया। पेश है रिपोर्ट-


18 महीनों तक बेड़ियों में जकड़े रहे अक्षयबर सिंह का नहीं टूटा हौसला
सनहा आंदोलन का किया संचालन, बाबा राघवदास के नेतृत्व में अंग्रेजों से लिया लोहा

गोरखपुर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित होकर आजादी की लड़ाई में कूदे अक्षयबर सिंह ने सनहा आंदोलन का संचालन किया और बाबा राघवदास के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ इस इलाके में आंदोलन की कमान संभाली। उन्हें कई बार अंग्रेजों की यातनाएं झेलनी पड़ी। सात बार जेल गए। 18 महीने तक बेड़ियों में जकड़े अक्षयबर सिंह तन्हाई में रखे गए। बौखला कर अंग्रेजों ने उनकी संपत्ति जब्त कर ली, बावजूद उनका हौसला कम नहीं हुआ और भूमिगत होकर स्वतंत्रता आंदोलन की धार को मजबूती प्रदान करते रहे।

अक्षयबर सिंह का जन्म 7 जुलाई 1904 में गोरखपुर, उरुवा के ग्राम अरांव जगदीश निवासी शिवव्रत सिंह व गेंदा देवी के घर हुआ। 1921 में महात्मा गांधी के यहां आने पर 8 फरवरी को स्कूल से नेशनल इस्लामियां स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने आए। उनके देशप्रेम के जज्बे को देख कांग्रेस पार्टी ने देहात क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंप दी।
1921 में उन्होंने फरार रहकर असहयोग आंदोलन का संचालन किया। 1922 में चौरीचौरा कांड को लेकर महात्मा गांधी द्वारा आंदोलन स्थगित करने के बाद भी वह सक्रिय रहे। चौरीचौरा की घटना के बाद उन्होंने 1922 में सनहा सत्याग्रह का संचालन किया था। इसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें छह माह कारावास और 40 रुपये का आर्थिक दंड दिया।
इंग्लैंड में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में गांधी इरविन समझौता विफल होने के बाद वापस भारत आने पर महात्मा गांधी को 4 जनवरी 1932 को गिरफ्तार कर सभी कांग्रेस कार्यालय बंद कर दिए गए। ऐसे में पार्टी ने गुप्त आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। इसकी भनक लगने पर गोरखपुर की किलाबंदी कर शहर में पुलिस का सख्त पहरा लगाया गया।
पूर्व निर्धारित 8 फरवरी को अक्षयबर सिंह ने 200 स्वयंसेवकों के साथ जुलूस निकाला। बौखलाए अंग्रेज अफसरों ने अक्षयबर सिंह व उनके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस मामले में दो वर्ष का कारावास और 400 रुपये का अर्थदंड लगा। जिसे चुका न पाने पर उनके घर काे जब्त कर लिया गया। 1934 में पिपराइच व सहजनवां में आपत्तिजनक भाषण देने के आरोप में उन्हें एक वर्ष की सजा दी गई।
1941 में व्यक्तिगत आंदोलन का संचालन करने पर 18 माह तक जेल में गुजारना पड़ा। डोहरिया कांड में भी उन्हें 18 महीने तक तन्हाई में रहना पड़ा। सबूत न मिलने पर वह केस से मुक्त हो गए, लेकिन उसी समय तीन वर्ष के लिए नजरबंद कर दिया गया।

पार्क रोड, सिविल लाइंस में अक्षयबर सिंह का पुराना आवास है, अब वहां उनके परिवार के लोग रहते हैं। उनके पौत्र शिव कुमार सिंह ने बताया कि दादा को मिला ताम्र पत्र, उनके वस्त्र आज भी संरक्षित करके रखा गया है।

सचींद्रनाथ सान्याल ने बनाई थी दाउदपुर अपने आवास पर काकोरी ट्रेन लूट की योजना

आजादी के आंदोलन में काकोरी ट्रेन लूट व बनारस षड्यंत्र की योजना बनाने वाले सरदार भगत सिंह के गुरु सचींद्र नाथ सान्याल सेंट एंड्रयूज काॅलेज में शिक्षक थे। उनका ज्यादातर जीवन जेल में ही बीता। बताया जाता है कि सचिंद्र नाथ सान्याल के गोरखपुर स्थित आवास पर ही काकोरी कांड की प्लानिंग हुई थी और लूट के बाद क्रांतिकारी यहीं आकर रुके थे, जिनमें चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारी शामिल हैं।
एक शिक्षक रहते हुए उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी। तीन जून 1893 को वाराणसी में जन्मे सान्याल को 50 वर्ष की उम्र में टीबी हो गई थी। डाक्टरों की सलाह पर वह अपने भाई के पास गोरखपुर आ गए। यहां से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से छूटने के बाद भी वे गोरखपुर में ही रहे। सात फरवरी 1942 में उन्होंने दाउदपुर स्थित अपने आवास में आखिरी सांसें लीं।
उनके बेटे रंजीत और बेटी अंजलि की पढ़ाई की जिम्मेदारी उनके भाई रवींद्र नाथ सान्याल ने उठा रखी थी। रवींद्र व सचींद्र के परिवार का फिलहाल कोई भी गोरखपुर में नहीं रहता। उनकी कुछ संपत्ति 1998 को भारत सेवाश्रम को दान में दे दी गई। जहां आज की तारीख मेंं स्वामी प्रणवानंद आश्रम है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पर्यटन विभाग ने न केवल इसकी योजना बना ली है बल्कि इसे लेकर कार्यवाही भी शुरू कर दी है। प्रस्ताव के मुताबिक कैंट थाने के बगल में उनके आवास का भव्य प्रवेश द्वार बनाया जाएगा। घर के सामने उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
घर को लाइब्रेरी व वाचनालय और म्यूजियम के रूप में विकसित किया जाएगा। लाइब्रेरी में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी किताबें रखी जाएंगी तो वाचनालय में उन्हें पढ़ने की व्यवस्था भी की जाएगी। भारत सेवाश्रम के ट्रस्टी स्वामी नि:श्रेयासानंद ने बताया कि उनकी प्रतिमा आ गई है। वे भगवत गीता पढ़ते थे, बड़े लैंप का उपयोग करते थे, जिसे संरक्षित किया जाएगा।

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