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नेपाल सीमा से 110 किमी दूर रहकर बेचता रहा संवेदनशील सूचनाएं, कमा लिए 8 से 10 लाख, ऐसे हुआ खुलासा


रतन गुप्ता उप संपादक

नूर आलम के मोबाइल की जांच की गई तो कई राज खुलकर बाहर आ गए। उसके टेलीग्राम ग्रुप में रूस, यूनाईटेंड किंगडम, यूएसए, यूक्रेन से संबंधित कई डाटा मिले हैं। यही नहीं, कई संदिग्ध दस्तावेज मोबाइल के फाइल मैनेजर से मिला है।

नेपाल सीमा से 110 किलोमीटर की दूरी पर रहकर नूर आलम संवेदनशील सूचनाएं विदेशियों को बेचता रहा। इसके एवज में उसने आठ से दस लाख रुपये भी कमा लिए। इसके बाद भी किसी को इसकी खबर नहीं लग सकी। यह कोई पहला मौका नहीं है, इससे पहले वर्ष 2023 में गोंडा में आईएसआई से संपर्क में चार लोगों को एटीएस ने पकड़ा था। इसमें भी सब अनजान थे। हाल के दिनों में रायबरेली में फर्जी जन्म प्रमाणपत्र मामले के बाद अब बांग्लादेशियों की भूमिका की जांच हो रही है। ऐसे में इनकी सक्रियता ने स्थानीय खुफिया एजेंसियों के माथे पर शिकन बढ़ा दी है।

नूर आलम की गिरफ्तारी का यह कोई पहला मौका नहीं है, इससे पहले भी नेपाल से सटा बलरामपुर जिला वर्ष 2020 में उस वक्त सुर्खियों में आया था, जब जुलाई 2020 में दिल्ली के धौला कुआं में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार आतंकी अबू युसुफ उर्फ मुस्तकीम उतरौला के बढ़या भैसाही गांव का निकला। मुस्तकीम उर्फ अबू यूसुफ ने मनिहार का वेश धर दो साल में घर को ही बम की प्रयोगशाला बना दिया था।

नेटवर्किंग के जरिए वह अपने पैर मजबूत करता रहा, लेकिन किसी को भनक न लगी। हैरानी की बात यह थी कि लॉकडाउन में ही उसने गांव में कबिस्तान में विस्फोटक का परीक्षण भी किया था। दिल्ली को दहलाने की फिराक में वह दबोचा गया था। इसके बाद सक्रियता के दावे तो बहुत किए गए लेकिन, नूर आलम की गिरफ्तारी ने सुरक्षा एजेंसियों के दावों की हवा निकाल दी है।

इस तरह से सूचनाएं लीक करता था नूर आलम
पकड़े गए सादुल्लाहनगर थाने के भेलया मदनपुर गांव के नूर आलम ने एटीएस को दिए गए बयान में कई खुलासे किए हैं। टेलीग्राम के माध्यम से वह विभिन्न ग्रुप में जुड़ा हुआ था। इसमें विभिन्न देशों के लोग है। डार्क वेब से वह विभिन्न तरह के लीक्ड डाटा को टूर ब्राउजर, आरबोट, वीपीएन का प्रयोग करके डाउनलोड करके रखता था। बाद में उसे अपने टेलीग्राम ग्रुप पर देश व विदेश के लोगों से पैसे लेकर उन्हें जोड़ता था। लीक्ड डाटा को वह ग्रुप के लोगों को बेचता था। पैसे का लेनदेन वह क्रिप्टो करेंसी के माध्यम से करता था। अब तक वह आठ से दस लाख रुपये कमा चुका है। उसने कई ग्रुप बना रखे थे।

मोबाइल की जांच में खुले कई राज
एटीएस ने जब नूर आलम के मोबाइल की जांच की तो कई राज खुलकर बाहर आ गए। उसके टेलीग्राम ग्रुप में रूस, यूनाईटेंड किंगडम, यूएसए, यूक्रेन से संबंधित कई डाटा मिले हैं। यही नहीं, कई संदिग्ध दस्तावेज मोबाइल के फाइल मैनेजर से मिला है। वह अपनी पहचान छिपाने के लिए लोगों से एक एप के माध्यम से चैट करता था। इस खुलासे के बाद एक बार फिर कई सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय पुलिस को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। एएसपी नम्रिता श्रीवास्तव कहती हैं कि हमने भी समाचार पत्र में पढ़ा है, और इससे अधिक जानकारी हमारे पास नहीं है।

90 के दशक से हो रही है घुसपैठ
रायबरेली में आतंकियों के साथ बांग्लादेश और म्यांमार के रोहिंग्या की घुसपैठ 90 के दशक से बनी हुई है। मुंबई बम धमाके के बाद दाउद के डी-2 गैंग और टाइगर मेनन के गुर्गों के लिए रायबरेली स्लीपर सेल सरीखा रहा। बछरावां और शहर के कहारों का अड्डा सहित मुस्लिम बहुल इलाकों में इनको पनाह मिलती रही। बाद में आतंकी करीम टुंडा को एटीएस ने गिरफ्तार भी किया था।

सन 2006 के बाद रायबरेली बांग्लादेशियों की शरणास्थली बनने लगा। कारण उन्नाव के स्लाटर हाउसों में बांग्लादेशी मीट कटर काम करने लगे। वहां की लोकल इंटेलीजेंस फेल रही और बांग्लादेशियों ने उन्नाव के साथ रायबरेली के खीरों, सरेनी, लालगंज में अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी। इस पर कभी भी रायबरेली पुलिस और लोकल इंटेलीजेंस ने खोजबीन की जरूरत नहीं समझी। छह माह रायबरेली के खीरों में एक बंग्लादेशी परिवार को बाकायदा पक्के मकान में निवास करते पकड़ा गया था। आरोपियों को जेल भेज दिया गया और फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

इसी तरह 2012 से जब म्यांमार में रोहिंग्या का पलायन शुरू हुआ तो वह पश्चिम बंगाल के रास्ते रायबरेली में अपनी जमीन तलाशने लगे। बगल के जिले कानपुर में रोहिंग्या को सफेदपोशों ने मदद दी और वह उन्नाव में स्लाटर हाउस के जरिए जिले में शरण लेने लगे। यही कारण रहा कि 2021 में एटीएस ने रोहिंग्या की शरण की तफ्तीश को लेकर नगर पालिका उन्नाव के निवास प्रमाण पत्रों को खंगाला था। उन्नाव के रास्ते से ही रोहिंग्या के लिए रायबरेली सेफ लैंड बन रहा है। रायबरेली में खीरों और सलोन दो ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर रोहिंग्या अपनी रिहाइश का बंदोबस्त कर रहे हैं।

19 हजार फर्जी प्रमाणपत्रों को इसी तार से जोड़ कर देखा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि कोई मास्टरमाइंड सलोन में फर्जी प्रमाणपत्रों की पूरी लिस्ट बनाकर लाया था। जिसे जन सुविधा केंद्र के संचालक जीशान को सौंपा गया था। एटीएस की पूछताछ में जीशान ने यह स्वीकार किया था कि उसे लिस्ट मिली थी। किसने लिस्ट दी, उस पर वह जानकारी नहीं दे सका था। इस पूरे फर्जीवाड़ा के लिए व्हाट्सएप नेटवर्क के साथ कमीशन में युवाओं को लगाया गया है। एटीएस ने जब एक साथ सात लोगों को पकड़ा था तो एक आरोपी ने बताया था कि फर्जी प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, वीजा का कस्टमर लाने पर 30 प्रतिशत कमीशन दिया जाता था। साथ ही जितना बड़ा काम लाया जाता था तो उतना बड़ा कमीशन सेट था।

बरती जा रही सतर्कता: – देवीपाटन रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक एपी सिंह का कहना है कि सीमा से सटे जिलों में सतर्कता बरती जा रही है। गोंडा के बाद बलरामपुर में भी एटीएस ने कार्रवाई इस बात का सबूत है कि हमारी एजेंसियां सतर्क है। हर मूवमेंट पर हमारी नजर है। सीमा पर सीमा सुरक्षा बल के साथ हमारा समन्वय है। सभी मिलकर काम कर रहे हैं।

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