रतन गुप्ता उप संपादक
महराजगंज। स्वास्थ्य विभाग पंजीकरण में फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। बावजूद इसके जिले में अवैध पैथालोजी का संचालन धड़ल्ले से हो रहा है। भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कार्रवाई से पहले धंधेबाजों को जानकारी हो जाती है। बीते दिन बगैर पंजीकरण वाले दो पैथालोजी सील की गई है। वहीं एक माह में करीब सात से आठ पैथालोजी सील हो चुकी है। जिले में 84 पैथालोजी पंजीकृत हैं।
स्वास्थ्य विभाग की ओर से दावा किया जाता है कि पंजीकरण में नियमों का सख्ती से पालन होता है। विभाग के अधिकारी एक-एक कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं, लेकिन धंधेबाज उनसे चार कदम आगे चल रहे हैं। कार्रवाई के बाद भी यह अवैध धंधा बंद नहीं हो रहा है। पंजीकरण के दौरान शपथ पत्र, मौके पर हस्ताक्षर समेत फोटो भी लिया जाता है। बुधवार को जिला अस्पताल के सामने दलाल मरीजों को बरगलाने में जुटे थे, लेकिन गनीमत रहा कि मरीज के साथ आए उसका बेटा होशियार था, इस वजह से बगैर उसके झांसे में आए आगे बढ़ गया।
सूत्र बताते हैं कि मरीज की तरह से ही दलाल भी पर्ची लेकर अस्पताल में रहते हैं। डॉक्टर के कक्ष के पास इधर-उधर पर्चा लेकर घूमते हैं। इतने में मरीजों की जांच का पर्चा उनको मिल जाता है। इसके बाद वे चले गए। यह क्रम करीब दो बजे तक चलता रहता है। जिले में 84 पैथालोजी का पंजीकरण है, लेकिन 250 से अधिक पैथालोजी संचालित हो रहे हैं। कुछ चिकित्सक तो आने वाले मरीजों को निजी पैथालोजी सेंटरों पर ही जांच की सलाह देते हैं। वहीं, कुछ संचालक चिकित्सकों के आसपास ही घूमते रहते हैं जो जांच का इशारा मिलते ही मरीज को अपने सेंटरों पर ले जाते हैं। जहां पर जांच के नाम पर मरीजों से मोटी रकम ऐंठ रहे हैं।
सूत्रों की माने तो अधिक रकम अर्जित करने के लिए मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। शहर से गांव तक बिना पैथोलॉजिस्ट और रजिस्ट्रेशन के अवैध पैथालोजी धड़ल्ले से संचालित की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग के छापे में बीते माह पैथालोजी व अस्पताल बगैर पंजीकरण के संचालित मिले थे। इन्हें नोटिस जारी की गई थी। अधिकांश पैथालोजी सरकारी अस्पतालों के आसपास हैं। सूत्र बताते हैं कि दलालों का पूरा नेटवर्क इसमें काम करता है। डॉक्टरों से सांठगांठ कर अपना धंधा चमका रहे हैं। हर पर्चे में जांच लिखवाते हैं। बताया जाता है कि जहां से सेटिंग होती है, वहीं की जांच को माना जाता है। ऐसे में मरीज विवश होकर वहीं पर जांच कराते हैं।
जांच तो सेंटरों का सामान्य कर्मचारी ही कर देता
सूत्रों की माने तो कुछ पैथालोजी सेंटर संचालक मरीजों से बाहर की जांच के नाम पर मोटी रकम ले रहे हैं। खून, मलेरिया, पेशाब की जांच तो सेंटर का सामान्य कर्मचारी ही कर देता है, जबकि पैथोलॉजिस्ट के नाम पर तो केवल सेंटर ही चल रहे हैं। संचालक की आड़ में अन्य कर्मी मरीजों की जांच कर रहे हैं। जिले में संचालित कुछ अस्पताल व नर्सिंग होम में आने वाले मरीजों को चिकित्सक जांच की सलाह देते हैं, लेकिन यह सभी जांचे एक ही छत के नीचे हो जाती हैं। कुछ नर्सिंग होम व अस्पतालों में मरीजों की जांच अप्रशिक्षित लोगों की ओर से ही की जा रही है। इससे मरीजों के साथ जांच के नाम पर फर्जीवाड़ा कर रुपये लिए जा रहे हैं। झोलाछाप भी पैथालोजी संचालकों से मिलकर आपस में मुनाफा बांट रहे हैं। झोलाछाप बीमारी कोई भी हो, अपने नेटवर्क वाले सेंटर पर जांच के लिए भेजते हैं। सामान्य बुखार हो या पेटदर्द हो तो भी यह जांच कराते हैं।
जांच के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित
अवैध पैथालोजी में जांचों के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित है। कुछ पैथालोजी लैब अपने कलेक्शन सेंटर भी चला रहे हैं। इनमें से अधिकतर अस्पतालों के आसपास मौजूद हैं। यहां अप्रशिक्षित लोग ब्लड सैंपल निकालने से लेकर सभी जांचें करते हैं। गांवों-कस्बों तक कहीं एक कमरे में तो कहीं संकरी गलियों में पैथोलॉजी चल रही है। एक ही सैंपल की अलग-अलग रिपोर्ट आती है और रेट भी अलग-अलग है।
बगैर पंजीकरण के कोई पैथालोजी संचालित नहीं होने दी जाएगी। बीते दिन भी कार्रवाई हुई है। कहीं से भी सूचना मिलती है तो त्वरित कार्रवाई होती है। पंजीकरण के दौरान नियमों का सख्ती से पालन कराया जाता है।
-डॉ. राजेश द्विवेदी, उप मुख्य चिकित्साधिकारी