भारत से बचने के लिए नेपाल क्यों भागते हैं अपराधी, वहां से उन्हें पकड़ना क्यों मुश्किल


रतन गुप्ता उप संपादक
भारत के बहुत से अपराधी वारदात करने के बाद नेपाल भाग जाते हैं.इसकी वजह क्या होती है. क्यों नेपाल से हमारी प्रत्यर्पण संधि मजबूत नहीं है. ये देश क्यों अपराधियों की पनाहगार बनता जा रहा है.

भारत के साथ नेपाल की प्रत्यर्पण संधि 7 दशक पुरानी, इसमें बदलाव की जरूरत
अगर कोई अपराधी नेपाल भाग जाता है तो उसे प्रत्यर्पित कराना बहुत मुश्किल होता है
भारत के बहुत से अपराधी नेपाल में ही रहते हैं, वहां उन्हें मदद भी मिलती है
हाल ही में दो घटनाएं हुईं. एक तो पता लगा कि लॉरेंस गिरोह के वो दो शूटर बहराइच के हैं, जिन्होंने मुंबई में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की गोलियों से हत्या कर दी. वो बहराइच के रास्ते नेपाल भाग गए. वहां पर इस गिरोह ने अपनी पैठ भी बनाई हुई है. इसके अलावा बहराइच हिंसा का आरोपी सरफराज नेपाल भागने की फिराक में था. नेपाल के रूपैडीहा बॉर्डर के पास एनकाउंटर में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया है. अक्सर ये खबरें आती हैं कि भारत से अपराध करने के बाद अपराधी नेपाल भाग जाते हैं. अपराधियों के नेपाल भागने की वजह तो है. एक तो वहां जाने के बाद उनका पकड़ा जाना आसान नहीं रहता. दूसरे उनका प्रत्यर्पण होना भी मुश्किल हो जाता है.

यही वजह है कि नेपाल अपराधियों और आतंकवादियों का स्वर्ग जैसा बन गया है. क्योंकि ये वहां रहते हैं और कोई वारदात करने भारत आ जाते हैं. या अपराध करके वापस भाग जाते हैं. ज्यादातर अपराधियों को मालूम है कि नेपाल पहुंचने के बाद उनका पकड़ा जाना मुश्किल हो जाएगा. जानते हैं वो कौन कौन सी वजहें जिसके चलते अपराधी वहां भागने की फिराक में रहते हैं.

खुली और आसान सीमा, जिससे वहां पहुंचना आसान
भारत-नेपाल सीमा अपनी खुली और कम जांच के लिए जानी जाती है, जिससे बिना किसी सख्त जांच के व्यक्तियों की आवाजाही आसान हो जाती है. इससे अपराधियों को नेपाल में जल्दी से जल्दी घुसकर पकड़े जाने से बचने की कोशिश करने में आसानी होती है.
प्रत्यर्पण समझौते में बहुत सी दिक्कतें
नेपाल से अपराधियों का प्रत्यर्पण करना मजबूत कानूनी ढांचे और समझौतों के अभाव के कारण चुनौतीपूर्ण है. कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने पाया है कि नेपाल से किसी अपराधी को वापस लाना पाकिस्तान से किसी अपराधी को प्रत्यर्पित करने जितना ही मुश्किल हो सकता है, जिससे यह भागने वालों के लिए कम जोखिम वाला आश्रय बन जाता है. भारत और नेपाल के बीच जो प्रत्यर्पण संधि है, वो बहुत पुरानी और लचर है.

अपराधियों की सुरक्षित पनाहगाह
नेपाल ने अपराधियों और आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन चुका है. अपराधियों को भी इस बात का अंदाज हो चुका है. भारत में आपराधिक रिकॉर्ड वाले कई व्यक्तियों को नेपाल में आरोपों का सामना नहीं करना पड़ता, जिससे वो वहां वैध व्यवसायी या निवासी के रूप में रह सकते हैं.

आपराधियों की मदद करने वाले नेटवर्क
नेपाल कई तरह के ऐसे आपराधिक नेटवर्क भी बन गए हैं, जो भगोड़ों को सहायता और संसाधन उपलब्ध कराते हैं. ये नेटवर्क अपराधियों को नेपाल में आश्रय, रोजगार और यहां तक ​​कि कानूनी सहायता पाने में मदद कर सकते हैं.

*क्या नेपाल और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि है*
भारत और नेपाल के बीच औपचारिक प्रत्यर्पण संधि पुरानी पड़ चुकी है. अब उसका ज्यादा मतलब नहीं रह गया है. इससे ये होता है कि नेपाल भाग गए अपराधियों को वापस पाना भारतीय अधिकारियों के लिए आसान नहीं. नेपाल के लिए वांटेड अपराधियों को प्रत्यर्पित करने में इतनी कानूनी जटिलताएं हैं कि वहां भागे अपराधियों को वापस भारत लाना मुश्किल बना देती हैं.

लंबी होती जाती है पूरी प्रक्रिया
भारतीय अधिकारियों को भगोड़ों के प्रत्यर्पण की मांग करने के लिए जटिल कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. इसमें नेपाली सरकार से सहायता के लिए संपर्क करने से पहले इंटरपोल वारंट और अन्य कानूनी दस्तावेज़ प्राप्त करना पड़ता है, इससे पूरी प्रक्रिया लंबी और बोझिल हो जाती है.

*नेपाली कानूनी प्रणाली इस मामले में क्या करती है*
नेपाली कानूनी प्रणाली हमेशा प्रत्यर्पण अनुरोधों पर भारतीय अधिकारियों के साथ बहुत सहयोग करती नहीं दिखती. पहले तो दोनों देशों के संबंध तब भी काफी बेहतर थे लेकिन अब जबसे दोनों देशों के संबंधों में कुछ तनाव या खींचतान जैसी स्थितियां शुरू हुई हैं, तब से वहां अधिकारियों का सहयोग मिलना और मुश्किल होता जा रहा है.

नेपाल में कितने भारतीय गिरोहों की मौजूदगी है
बिहार के कई गैंगस्टर, जिनमें मोस्ट-वांटेड सूची के शामिल लोग भी शामिल हैं, वो कानून से बचने के लिए नेपाल भाग गए हैं. इन बदमाशों में मुकेश पाठक, विकास झा और अभिषेक मिश्रा शामिल हैं. जिनके बारे में बताया जाता है कि वे नेपाल के मधेस क्षेत्र में सीमा के निकट होकर आपरेट करते हैं. वैसे नेपाल में भारतीय गिरोहों का आपरेट करना लंबे समय से देखा जा रहा है. भारतीय अंडरवर्ल्ड के लोगों के स्थानीय आपराधिक नेटवर्क से रिश्ते हैं. भारतीय अपराधी नेपाल को शरणस्थली के रूप में उपयोग करते हैं.

किस तरह नेपाल के आपराधिक सिंडिकेट भारतीय भगोड़ों को मदद करते हैं
जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है कि कई भारतीय गैंगस्टर नेपाल में स्थानीय आपराधिक समूहों के साथ संबंध स्थापित कर चुके हैं. ये सिंडिकेट अक्सर भारतीय भगोड़ों को आश्रय, संसाधन और रसद की सहायता देते हैं.भारत और नेपाल के बीच तस्करी के स्थापित नेटवर्क संचालित होते हैं, जो न केवल माल की आवाजाही को सुविधाजनक बनाते हैं बल्कि अपराधियों को कवर भी देते हैं. ये नेटवर्क अक्सर हथियारों और नशीली दवाओं की तस्करी में जुड़े होते हैं.कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि नेपाल में भारतीय अपराधियों के बड़े अंतर्राष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट के साथ संबंध हो सकते हैं, जिनमें दाऊद इब्राहिम के संगठन जैसे पाकिस्तान स्थित समूहों से जुड़े लोग भी शामिल हैं. ये संबंध नेपाल में सक्रिय अपराधियों को अतिरिक्त संसाधन और सुरक्षा दे सकते हैं.कई भारतीय अपराधी नेपाल में वैध व्यवसायी के रूप में पेश आते हैं, जिससे उन्हें वैध उद्यमों की आड़ में अवैध गतिविधियों करते हुए वहां लोगों के साथ घुलते मिलते हैं.

भारत-नेपाल सीमा कितनी लंबी है और इसमें कितने चेक पोस्ट हैं
भारत-नेपाल सीमा की लंबाई 1,751 किलोमीटर है. यह सीमा, भारत के पांच राज्यों – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, और सिक्किम के साथ साझा होती है. उत्तर प्रदेश, नेपाल के साथ सबसे लंबी सीमा साझा करता है, जिसकी लंबाई 651 किलोमीटर है. पश्चिम बंगाल, नेपाल के साथ सबसे छोटी सीमा साझा करता है, जिसकी लंबाई 96 किलोमीटर है.भारत और नेपाल सीमा पर 12 चेक पोस्ट हैं. इसके अलावा, अंतर जिला सीमा पर 14 चेक पोस्ट भी हैं. उत्तर प्रदेश के सुनौली और रुपैदिहा में एकीकृत चेक पोस्ट (आईसीपी) भी है.

भारत और नेपाल के बीच कैसी प्रत्यर्पण संधि, जो करीब बेअसर
भारत और नेपाल ने 1953 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जो अभी भी लागू है लेकिन इस संधि को नई चुनौतियों और समय के हिसाब से अपडेट नहीं किया गया, जिससे आधुनिक आपराधिक मामलों से निपटने में चुनौतियां आ रही हैं.हालांकि जनवरी 2005 में दोनों देशों ने एक अपडेटेड प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर करने की बात थी लेकिन नेपाल सरकार द्वारा अभी तक इस पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर नहीं किए गए. ये देरी दोनों देशों के बीच कानूनी समझौतों में शामिल जटिलताओं को जाहिर करती है.

क्या है प्रत्यर्पण संधि
प्रत्यर्पण संधि, दो या दो से ज़्यादा देशों के बीच एक समझौता होता है, जिसके तहत किसी आरोपी व्यक्ति को एक देश से दूसरे देश में स्थानांतरित किया जाता है. इस समझौते में दोनों देश इस बात पर सहमत होते हैं कि अगर किसी व्यक्ति ने इन दोनों देशों में से किसी एक में अपराध किया है, तो उसे उस देश को सौंप दिया जाएगा. प्रत्यर्पण संधि के तहत आरोपी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने और उसे मांगने वाले देश में ले जाने के लिए प्रत्यर्पण वारंट जारी किया जाता है.– प्रत्यर्पण संधि के ज़रिए किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना एक देश से दूसरे देश में ले जाया जाता है. यह एक न्यायिक प्रक्रिया है, न कि निर्वासन– प्रत्यर्पण संधि के तहत, आरोपी व्यक्ति को उन देशों में नहीं भेजा जाता, जहां मृत्युदंड की सज़ा हो सकती है– ज़्यादातर मामलों में, सैन्य या राजनीतिक अपराधों के लिए लोगों को प्रत्यर्पित नहीं किया जाता– प्रत्यर्पण संधि के तहत, आरोपी व्यक्ति को अनुरोधकर्ता देश में निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार होता है– भारत की 47 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है, जिनमें अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ़्रांस, और पुर्तगाल जैसे देश शामिल हैं.

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