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बांग्लादेश में एक संत को मिल नहीं रहे वकील, भारत में आतंकियों के लिए भी


*रतन गुप्ता उप संपादक

बांग्लादेश में इस्कॉन के संत चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी थी, लेकिन कोई वकील उनकी पैरवी करने के लिए अदालत में नहीं पहुँचा। इसका कारण है इस्लामी कट्टरपंथी समूहों का डर, जो वकीलों को धमकाकर इस मामले से दूर रहने को मजबूर कर रहे हैं। एक हिन्दू वकील को तो पीट-पीटकर अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है, क्योंकि वो चिन्मय दास की पैरवी कर रहे थे। अब अदालत ने सुनवाई अब 2 जनवरी, 2025 को तय की है, उस समय भी कोई वकील आएगा या नहीं पता नहीं। इस बीच, चिन्मय कृष्ण दास जेल में ही रहेंगे।

चिन्मय कृष्ण दास को पिछले महीने राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जब वे चटगाँव में एक रैली में भाग लेने जा रहे थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद अल्पसंख्यक हिंदुओं के बीच नाराजगी बढ़ी, जिसके चलते प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों के दौरान सरकारी वकील पर हमला हुआ, जिससे मामला और पेचीदा हो गया। उनके पहले वकील पर भी जानलेवा हमला हो चुका है, और नए वकील, इस्लामी कट्टरपंथी दबाव के चलते केस लेने से इनकार कर रहे हैं।

यह घटना दिखाती है कि बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ किस तरह अल्पसंख्यकों को दबाने और न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने में सफल हो रहा है। कट्टरपंथी जिहादियों का डर न्याय व्यवस्था पर हावी है, जिससे अल्पसंख्यकों को न्याय पाना असंभव सा हो गया है। वहीं, भारत में स्थिति बिल्कुल उलट है। यहाँ इस्लामी आतंकवादियों के लिए रातों-रात कोर्ट खुल जाती है, और नामचीन वकीलों की फौज उनके बचाव में खड़ी हो जाती है। राष्ट्रपति के पास आतंकियों की फाँसी रुकवाने के लिए दया याचिका तक भेजी जाती है, जिसमें बड़े-बड़े हस्ताक्षरकर्ता होते हैं। इसके बावजूद, वैश्विक स्तर पर भारत के खिलाफ झूठा प्रचार किया जाता है कि यहाँ मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है।

अत्याचार की सच्चाई बांग्लादेश जैसी जगहों पर देखने को मिलती है, जहाँ हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक इस्लामी कट्टरता का शिकार हो रहे हैं। चिन्मय कृष्ण दास की स्थिति इसका एक उदाहरण है, जहाँ न केवल उनका केस लड़ने को वकील तैयार नहीं हैं, बल्कि पूरी न्याय व्यवस्था इस्लामी कट्टरपंथ के दबाव में बंधक बनी हुई है

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