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नेपाल में हिन्दू राष्ट की मांग तेज ,नेपाल को क्यों वापस चाहिए हिंदू राष्ट्र का ‘स्टेटस’?

रतन गुप्ता उप संपादक
अगर ईसाई और मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले देशों को ईसाई या इस्लामिक देश घोषित किया जा सकता है तो हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाले नेपाल को क्यों नहीं

अगर ईसाई और मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले देशों को ईसाई या इस्लामिक देश घोषित किया जा सकता है तो हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाले भारत को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया जा सकता. इसी तर्क के साथ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग उठती रही है . हालांकि भारत के हिंदू राष्ट्र बनने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आती. लेकिन क्या 17 वर्षों बाद नेपाल एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनने वाला है?

ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि वर्ष 2007 में हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बने नेपाल में एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र की मांग तेज हो गई है. नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर सैकड़ों लोग, नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने और देश में फिर से राजशाही को लागू करने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. वो नेपाल के प्रधानमंत्री दफ्तर और दूसरे सरकारी दफ्तरों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे .जिन्हें रोकने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग भी किया. कई जगह प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प भी हुईं.

नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग करते हुए प्रदर्शन नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेतृत्व में हुआ है. और इनकी दो प्रमुख मांगें हैं… पहली – नेपाल में गणतंत्र को खत्म करके दोबारा राजशाही की वापसी और दूसरी – नेपाल को सेकुलर राष्ट्र से दोबारा हिंदू राष्ट्र घोषित करना. लेकिन नेपाल में ये मांग क्यों उठ रही हैं? ये समझने के लिए आपको नेपाल के राजनीतिक इतिहास के पन्ने पलटने होंगे.

वर्ष 1768 में राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल को दुनिया का पहला हिंदू राष्ट्र घोषित किया था. इसके बाद 239 वर्षों तक नेपाल, दुनिया का इकलौता हिंदू राष्ट्र था. वर्ष 2006 में नेपाल में राजशाही का अंत हुआ और संवैधानिक सभा का गठन हुआ. वर्ष 2007 में संवैधानिक सभा द्वारा तैयार अंतरिम संविधान में नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया गया था. और इसके करीब आठ वर्षों बाद 2015 में नेपाल को आधिकारिक तौर पर धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया.

तब से लेकर अबतक नेपाल में वक्त-वक्त पर दोबारा राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की मांग उठती रही है. लेकिन नेपाल के संविधान में कोई बदलाव नहीं किया गया. अब एक बार फिर ये मांग तेज हो गई है. तो अब सवाल ये है कि नेपाल को दोबारा राजशाही वाला हिंदू राष्ट्र क्यों बनना है? यहां राजशाही और हिंदू राष्ट्र..दो अलग-अलग मांगें हैं. दोनों के समर्थन में अलग-अलग तर्क हैं. पहले आपको बताते हैं कि राजशाही के समर्थन में क्या तर्क दिए जा रहे हैं.

पहला तर्क तो ये है कि – राजशाही खत्म होने और बहुदलीय लोकतंत्र लागू होने से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है. राजशाही खत्म होने के बाद 18 वर्षों में नेपाल में 13 सरकारें बन चुकी हैं. दूसरा तर्क ये है कि – नेपाल की राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं. राजशाही समर्थक, नेपाल की प्रमुख पार्टियों पर भ्रष्टाचार और खराब Governance का आरोप लगा रहे हैं. तीसरा तर्क ये है कि – गणतांत्रिक नेपाल में अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है. राजशाही के दौरान वर्ष 2006 में नेपाल में युवा बेरोजगारी दर 19.45 फीसदी थी, जो वर्ष 2021 में बढ़कर करीब 23 ((22.75)) फीसदी पहुंच गई.

इन तर्कों के जरिये नेपाल में दोबारा से राजशाही सिस्टम को लागू करने की मांग की जा रही है. नेपाल की विपक्षी पार्टियों ने नेपाल को दोबारा से राजशाही और हिंदू राष्ट्र बनाने की जो मुहिम छेड़ी है. उसे नेपाल की जनता का समर्थन मिलता हुआ भी दिख रहा है. नेपाल में सिर्फ राजशाही नहीं बल्कि हिंदू राष्ट्र की भी डिमांड तेज हुई है. लेकिन नेपाल को दोबारा से हिंदू राष्ट्र क्यों बनना है..इसकी वजह जानने से पहले आपको ये पता होना चाहिए कि. सेकुलर बनने से पहले नेपाल के संविधान में हिंदू राष्ट्र को लेकर क्या लिखा था.

नेपाल में 1990 से 2007 तक लागू संविधान के Article 4 में लिखा था कि –
नेपाल एक बहु-नस्लीय, बहुभाषी, लोकतांत्रिक, स्वतंत्र, अविभाजित, संप्रभु, हिंदु और संवैधानिक राजशाही राज्य होगा. नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने वाले संविधान के Article 27 में राजा की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि His Majesty, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में नेपाल नरेश कहा जाता था, वो महान राजा पृथ्वी नारायण शाह का वंशज होगा, आर्य संस्कृति और हिंदू धर्म को मानने वाला होगा.

यानी नेपाल को हिंदू राष्ट्र इसलिए कहा जाता था क्योंकि वहां हमेशा हिंदू राजाओं का शासन रहा. या यूं कहें कि नेपाल में सिर्फ हिंदू ही राजा बन सकता था. हिंदू राजशाही की वजह से ही नेपाल को हिंदू राष्ट्र का दर्जा मिला हुआ था. हिंदू राष्ट्र नेपाल में वर्ष 1990 में लागू हुए संविधान में भी हिंदू धर्म से जुड़ा कोई Article नहीं था जिसमें हिंदू धर्म को अन्य धर्मों के मुकाबले कोई विशेषाधिकार हासिल हों.

हिंदू राष्ट्र नेपाल के संविधान के Article 11 में बताए गए मूलभूत अधिकारों में धार्मिक समानता का अधिकार भी शामिल था. जिसमें कहा गया था कि हिंदू राष्ट्र नेपाल में धर्म, नस्ल, जाति के आधार पर किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं होगा. हिंदू राष्ट्र नेपाल के संविधान का Article 19..नेपाल के हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने की आजादी देता था. यानी नेपाल का हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष बनना सीधे-सीधे राजशाही के अंत से जुड़ा था. क्योंकि राजशाही खत्म होने और गणतंत्र बनने के बाद नेपाल में किसी भी धर्म का नागरिक, देश का मुखिया बन सकता था. जबकि पहले सिर्फ हिंदू राजा ही नेपाल की सत्ता का प्रमुख हो सकता था. कम शब्दों में कहें तो यही बात नेपाल को हिंदू राष्ट्र से धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाती है.

लेकिन फिर भी नेपाल को दोबारा हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग उठती आई है. और इसके समर्थन में सबसे बड़ा तर्क ये दिया जाता है कि सेकुलर घोषित होने के बाद नेपाल में धार्मिक तनाव बढ़ गया और सांप्रदायिक दंगे होने लगे हैं. जो हिंदू राष्ट्र नेपाल में बहुत दुर्लभ बात थी. पिछले एक वर्ष के दौरान ही नेपाल के पांच बड़े शहरों बीरभूम, नेपालगंज, जनकपुर, धरन, मलंगवा जैसे शहरों में सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं.

पिछले वर्ष मार्च में रामनवमी के दिन नेपाल में पहली बार सांप्रदायिक दंगा हुआ. जब जनकपुर में रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच झड़प हो गई थी. आरोप है कि सेकुलर देश होने की वजह से नेपाल की अलग-अलग सरकारों में बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है. हिंदू राष्ट्र के समर्थन की आवाज आबादी के ग्राफ को देखकर भी उठ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक सेकुलर घोषित होने के बाद नेपाल में धर्मांतरण के मामले बढ़े हैं. जबकि धर्माँतरण गैरकानूनी है.

रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में कई अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन धर्मांतरण में लगे हैं. जिसकी वजह से नेपाल में ईसाई आबादी तेजी से बढ़ी है. नेपाल में 2021 की जनगणना रिपोर्ट से भी पता चलता है कि वहां हिंदू आबादी घट रही है और मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ रही है. और ये सिर्फ आरोप नहीं हैं..बल्कि आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं कि बहुसंख्यक हिंदू आबादी वाले सेकुलर देश, नेपाल में हिंदू आबादी में कमी आई है. नेपाल के National Statistics Office के मुताबिक नेपाल में वर्ष 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या 81.3 प्रतिशत थी. जो 2021 में 81.19 प्रतिशत हो गई. यानी दस वर्षों में हिंदुओं की जनसंख्या Point One One Percent (.11 %) कम हुई.

वहीं वर्ष 2011 में मुस्लिमों की आबादी 4.4 प्रतिशत थी..जो 2021 में 5.09 प्रतिशत हो गई . यानी मुस्लिमों की आबादी 0.69 प्रतिशत बढ़ी है. इसी तरह नेपाल में 2011 तक ईसाइयों की आबादी 0.5 प्रतिशत ही थी जो अब 1.26 प्रतिशत हो गई है..यानी 0.76 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. हिंदुओं की घटती हुई आबादी को आधार बनाकर आरोप लगाया जाता है कि नेपाल की सरकारें. सेकुलर राष्ट्र का बहाना बनाकर मुस्लिम तुष्टिकरण कर रही हैं. नेपाल में सरकारों पर ये आरोप भी लग रहे हैं कि सेकुलर राष्ट्र की आड़ लेकर राजनीतिक फायदे के लिए नेपाल में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने की साजिश रची जा रही हैं. सरकारी रिकार्ड के मुताबिक नेपाल में आधिकारिक रूप से रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 508 है.

लेकिन खुफिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नेपाल की मुस्लिम संस्थाएं भारत-नेपाल बॉर्डर पर रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने की साजिश में शामिल हैं. भारत के बिहार और बंगाल से नेपाल में घुसे रोहिंग्या मुसलमान, खुद को हिंदू बताकर नेपाल में डेरा डाल रहे हैं. नेपाल में इस्लामी संगठन..योजनाबद्ध तरीके से नेपाल-भारत की नदियों के दोनों तरफ मुस्लिम रोहिंग्या आबादी को बसाने में लगे हैं. नेपाल में मुस्लिम संस्थाएं.. नेपाल-भारत बॉर्डर पर No Men’s Land पर मुस्लिमों को बसाकर मस्जिद और मदरसे स्थापित करने का काम भी कर रही हैं.

नेपाल की खुफिया एंजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में रोहिंग्या मुसलमानों के बसाने की साजिश में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI मदद कर रही है. ये एक बड़ी वजह है जिसके आधार पर नेपाल को दोबारा से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग उठ रही है . और कभी हिंदू राष्ट्र का विरोध करने वाले राजनीतिक दल भी बहुसंख्यक हिंदू मतदाताओं को लुभाने के लिए हिंदू राष्ट्र की वकालत कर रहे हैं . ऐसे में नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग..पहले के मुकाबले अबकी बार ज्यादा मजबूत है..और अब करीब 18 वर्षों बाद नेपाल..एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बन सकता

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