तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को 3ः2 का फैसला माना जा रहा है याने तीन जजों ने तीन तलाक के विरुद्ध और दो ने उसके समर्थन में फैसला दिया है। मुझे ऐसा नहीं लगता। मैं जजों के तर्कों पर नहीं जा रहा हूं। तर्क तो उन्होंने एक-दूसरे के विरुद्ध जरुर दिए हैं। क्यों नहीं देंगे ? वे सब विद्वान हैं। सबका अपना-अपना नजरिया है लेकिन मेरा सवाल है कि सबके तर्कों का कुल नतीजा क्या है ? कुल नतीजा यह है कि तीन तलाक की कुप्रथा खत्म करो। तीन जजों ने उसे संविधान के विरुद्ध बताकर अदालत में ही मार गिराया और बाकी दो ने कहा कि वे उसे नहीं छुएंगे लेकिन उन्होंने संसद से कहा है कि वह तीन तलाक की चटनी बनाना चाहे तो बना दे। इतना ही नहीं, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर ने अगले छह माह तक तीन तलाक पर रोक लगा दी। क्यों लगा दी ? क्योंकि वह गलत है। वे अपने मुंह से जो बात नहीं बोलना चाहते हैं, उसका इशारा करते हैं और उसे संसद से बोलवाना चाहते हैं। पता नहीं, अब संसद को तकलीफ करने की जरुरत है या नहीं ? अब तो जरुरी यह है कि 1986 में शाह बानो के मामले में राजीव गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ संसद से जो गुनाह करवाया था, उसे धुलवाने का कार्य संसद से ही करवाएं, नरेंद्र मोदी ! मोदी अगर थोड़ी हिम्मत दिखाएं तो राजीव के मंत्री भाई आरिफ मोहम्मद खान के महान त्याग (इस्तीफे) की भरपाई तो होगी ही, तलाकशुदा मुस्लिम औरतों को पर्याप्त गुजारा भत्ता भी मिल सकेगा। इस फैसले का सभी इस्लामी जमातों द्वारा स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि इसने इस्लाम की इज्जत बढ़ाई है। जरुरी यह है कि अब या तो हमारी अदालत या संसद बहुपत्नी प्रथा और हलाला जैसी गई-गुजरी कुप्रथाओं को भी खत्म करें। तीन-तलाक जैसे कई अरबी रिवाजों को ज्यादातर मुस्लिम देशों ने त्याग दिया है। इस मामले में पाकिस्तान हमसे भी आगे है। अरबों की अंधी नकल करना इस्लाम नहीं है। यदि भारतीय इस्लाम को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इस्लाम बनाना है तो हमें डेढ़ हजार साल पुराने अरबी देश-काल से ऊपर उठना होगा और कुरान-शरीफ की क्रांतिकारी और बुनियादी आध्यात्मिक मान्यताओं पर जोर देना होगा।