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देश की बड़ी आबादी की रहने की जगह प्रिजन सेल से भी कम है

नई दिल्ली

अधिकतर भारतीय (ग्रामीण और शहरी) जिन घरों में रहते हैं, उनकी हालत बेहद दयनीय है। इन घरों की लिविंग एरिया (रहने की जगह) प्रिजन सेल से भी कम है। यह चौंकाने वाले नतीजे नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के ताजा सर्वे में सामने आए हैं। एनएसएसओ ने 69वां राउंड सर्वे मॉडल प्रिजन मैन्युअल-2016 के आधार पर किया है।

ग्रामीण इलाकों में 80 फीसदी गरीबों के घरों का फ्लोर एरिया 449 स्क्वेयर फीट से कम या उसके बराबर है। यदि इन घरों में औसतन 4.8 सदस्य हैं, तो हर किसी के हिस्से 94 स्क्वेयर फीट या उससे कम जगह मिलती है। यह जेल के कैदियों से भी कम है, जिन्हें प्रिजन सेल में 96 स्क्वेयर फीट जगह मिलती है। वैसे इसका दूसरा पहलू यह है कि देश की जेलों में तय क्षमता से अधिक कैदी हैं। ऐसे में इन कैदियों को रहने के लिए औसतन इतनी जगह नहीं मिलती है।

इसी तरह शहरों में 60 फीसदी गरीब के हर परिवार को औसतन फ्लोर एरिया साइज 380 स्क्वेयर फीट या इससे कम नसीब है। यदि इन घरों में औसतन 4.1 सदस्य हैं तो हर किसी के हिस्से 93 स्क्वेयर फीट रहने के लिए जगह मिलेगी। यह भी आदर्श प्रिजन सेल से कम है।

इससे साफ पता चलता है कि शहरों में लोगों के बीच घरों को लेकर कितनी असमानता है। इसके बावजूद लोगों का शहरों को लेकर आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है। हर साल गांवों से बड़ी तादाद में लोग शहरों में रोजगार की तलाश में आते हैं।

चौंकाने वाली बात यह भी है कि दलितों और आदिवासियों की हालत बेहद खराब है। औसतन अनुसूचित जाति के हर सदस्य 70.3 स्क्वेयर फीट और अनुसूचित जनजाति के हर मेंबर 85.7 स्क्वेयर फीट लिविंग एरिया में रहते हैं। देश की सबसे गरीब 20 फीसदी आबादी को ग्रामीण इलाकों में 78 स्क्वेयर फीट और शहरों में 75 स्क्वेयर फीट में गुजारा करना पड़ता है। सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों को औसतन गांवों में 102 स्क्वेयर फीट और शहरों में 135 स्क्वेयर फीट रहने की जगह मिली हुई है।

ग्रामीण इलाकों की बात करें तो बिहार की हालत बेहद खराब है, जहां औसतन हर परिवार को 66 स्क्वेयर फीट में जिंदगी गुजारनी पड़ती है। करीब 15 राज्यों की आबादी को प्रिजन सेल की जगह से भी कम एरिया में रहना पड़ता है।

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