वाशिंगटन
लाखों भारतीय पेशेवरों के लिए राहत की खबर सामने आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा पर प्रतिबंध के लिए इस साल जून में जारी आदेश पर एक संघीय न्यायाधीश ने रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति ने संवैधानिक अधिकार से परे जाकर रोक लगाई है। नदर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ कैलिफोर्निया के डिस्ट्रिक्ट जज जेफरी व्हाइट ने यह आदेश जारी किया। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय उत्पादक संघ, यूएस चेंबर ऑफ कॉमर्स, राष्ट्रीय खुदरा व्यापार संघ और टेकनेट के प्रतिनिधियों ने वाणिज्य मंत्रालय और आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय के खिलाफ वाद दाखिल किया था। उत्पादकों के राष्ट्रीय संघ (एनएएम) ने कहा कि इस फैसले के तुरंत बाद वीजा संबंधी प्रतिबंध स्थगित हो गए हैं जो उत्पादकों को अहम पदों पर भर्ती से रोकते थे और ऐसे में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, विकास और नवोन्मेष में वे संकट का सामना कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने जून में शासकीय अदेश जारी किया था जिससे इस साल के अंत तक एच-1बी वीजा और एच-2बी, जे एवं एल वीजा सहित विदेशियों को जारी किये जाने वाले अन्य वीजा पर अस्थायी रोक लग गई थी। राष्ट्रपति का तर्क था कि अमेरिका को अपने घरेलू कामगारों की नौकरी बचाने और सुरक्षित रखने की जरूरत है खासतौर पर तब जबकि कोविड-19 महामारी की वजह से लाखों नौकरियां चली गई हैं। सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों और अन्य अमेरिकी कंपनियों के प्रतिनिधियों ने वीजा जारी करने पर लगी अस्थायी रोक का विरोध किया था। एनएएम की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं महाधिवक्ता लिंडा केली ने कहा कि प्रशासन द्वारा कुछ श्रेणियों के वीजा पर रोक लगाए जाने के फैसले के खिलाफ उत्पादक अदालत गए थे क्योंकि यह संकट के समय उद्योगों के हितों को कमतर करता है और कानून के विपरीत है। आदेश में संघीय न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रपति ने इस मामले में अपने अधिकारों से परे जाकर काम किया है। उन्होंने 25 पन्नों के आदेश में कहा कि आव्रजन के मामले में कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल प्राधिकार नहीं देता कि राष्ट्रपति गैर आव्रजक विदेशियों के रोजगार के लिए घरेलू नीति तय करें।’ न्यायाधीश ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-1 और दो सदियों से चली आ रही विधायी परंपरा एवं न्यायिक नजीर स्पष्ट करती है कि संविधान कांग्रेस में निहित है न कि आव्रजन नीतियों को बनाने की शक्ति के साथ राष्ट्रपति में। उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश व्हाइट का फैसला कोलंबिया के डिस्ट्रिक्ट जज अमित मेहता द्वारा अगस्त में दिए गए आदेश से अलग है जिसमें उन्होंने कहा था कि मामला विचाराधीन होने के कारण प्रतिबंध को रद्द करने का अधिकार उनके पास नहीं है।