अगर आप प्यार से कहते हो कि आप सुपर पावर हो तो कोई भी आपको सीरियसली नहीं लेगा। पर अगर आप सभी को पैसे की ताकत, डराते हो और एग्रैसिव मूव अपनाते हो तो सभी आपको सीरियसली लेना शुरू कर देंगे। अमेरिका की तरह चीन भी दुनिया को द ग्रेट चाइना स्टोरी दिखाना चाहता है।
साल 2015 में चीन में एक फिक्शन फिल्म आई थी वुल्फ वॉरियर। इस फिल्म में चाइनीज मार्शल आर्ट खूब देखने को मिला था। फिल्म में लोकप्रिय अभिनेता वू जिंग मुख्य भूमिका में नजर आए थे। फिल्म में एक चीनी कमांडो अफ्रीका और अफगानिस्तान में अमेरिकियों की जान लेता है। फिल्म की सबसे खास बात ये रही कि कर्मिशल होने के बाद भी ये पीपुलिस लिबरेशन ऑफ आऱ्मी के लोगों की जांबाजी दिखाती है। इसके लिए सेना की भी मदद ली गई। फिल्म में चीनी सेना भयानक आक्रमक और चालाक रही। यही तरीका अब चीन की सरकार असल में भी अपनाती नजर आ रही है। इसलिए इसे वुल्फ वारियर डिप्लोमेसी कहा जा रहा है। वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी जैसे शब्दों का इस्तेमाल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में चीन के लिए बढ़ते अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच किया था। जिनपिंग के मुताबिक चीन तेजी से तरक्की कर रहा है। चीन की तरक्की पश्चिमी देशों को पसंद नहीं आ रही है। इसलिए अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देश चीन के प्रति ज्यादा हमलावर हो रहे हैं। क्या है चीन की वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी, अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए कैसी है तैयारी, भारत इसका जवाब कैसे देगा।
वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी का क्या अर्थ है?
जब कोई देश दूसरे देश के साथ वार्ता करता है या फिर किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर चलता है उसे ही डिप्लोमेसी कहते है। इस दुनिया में किसी भी देश का न तो कोई परमानेंट दोस्त होता है और न ही परमानेंट दुश्मन होता है। वक्त के साथ दोस्त दुश्मन हो जाते हैं और दुश्मन दोस्त। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण भारत और अमेरिका के रिश्ते हैं। जब कोई देश अपनी राष्ट्र के हितों के लिए बहुत ज्यादा एग्रेसिव मूव अपनाता है। जब किसी देश के डिप्लोमैट, लीडर या एम्बेसडर दूसरे देशों के साथ एग्रेसिव अप्रोच रखते हैं और उन्हें धमकी, बैलकमेल या डरा कर अपना एजेंडा पूरा करने वाले देश वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी को फॉलो करते हैं। “वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी ” एक शब्द जिसने लोकप्रियता हासिल की खासकर शी के राष्ट्रपति बनने के बाद। चीन की छिपकर वार करने की नीति यानी विस्तारवाद नीति की वजह से पिछले कुछ वर्षों में उसपर चौतरफा दवाब पड़ा है। लेकिन दबावों के बावजूद ड्रैगन अपनी हरकतों से जरा सा भी बाज नहीं आया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस देश की छिपकर वार करने की नीति को वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो ये चीन की कूटनीति का नया अंदाज है, जिसमें वो उन सारे देशों से कड़ाई से निपट रहा है, जो चीन के खिलाफ बोलते हैं।
वैश्विक स्तर पर इसका क्या असर
चीन ने लाखों उईगर मुस्लिमों को कंस्ट्रेशन कैंप में डाला हुआ है। जैसा कभी हिटलर ने ड्यूस लोगों के साथ किया था। इन उइगर मुस्लिमों की पहचान आज बिल्कुल खत्म सी कर दी गई है। फिर भी किसी भी मुस्लिम देश ने आजतक उफ तक नहीं की। चीन ने पूरे हॉगकॉग को अपने कब्जे में ले लिया। पर किसी भी देश ने कुछ नहीं कहा। चीन की लापरवाही की वजह से कोरोना की महामारी से वैश्विक महामारी ने इतना विकराल रूप लिया। पर डब्ल्यूएचओ उल्टा चीन की तारीफ के गुण गाते हुए नजर आया। अफगानिस्तान में चीन खुलकर तालिबान का समर्थन भी करता नजर आया। लेकिन यूएस शांत आया। ये सब चीन की इसी एग्रेसिव मूव का नतीजा है। कोई भी देश चीन के खिलाफ कुछ भी बोलता है तो चीन उसके खिलाफ कोई न कोई एक्शन जरूर लेता है।
वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी की क्या जरूरत है?
रणनीति में बदलाव को कई कारणों से जिम्मेदार ठहराया गया है, जैसे कि पहले के नेताओं की तुलना में शी अधिक सत्तावादी प्रवृत्ति, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दौर से ही अमेरिका-चीन के बिगड़ते संबंध, चीन पर कोरोनो वायरस महामारी फैलाने संबंधी आरोप, आदि। चीनी अधिकारियों के अनुसार, यह कदम केवल पश्चिमी हस्तक्षेप के खिलाफ खड़े होने को लेकर में है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने दिसंबर 2020 में चीन के विदेश उप-मंत्री ले युचेंग के हवाले से कहा कि ये “जैसे को तैसा” जैसी थ्योरी है। ले ने बीजिंग में एक विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन में कहा कि अब जब वे हमारे दरवाजे पर आ रहे हैं, हमारे पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, लगातार हमें परेशान कर रहे हैं, हमें अपमानित और बदनाम कर रहे हैं, हम हमारे पास अपने राष्ट्रीय हितों और गरिमा की दृढ़ता से रक्षा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी के स्वामित्व वाले चीन में सबसे बड़े समाचार पत्र पीपुल्स डेली ने दिसंबर 2020 के एक लेख में लिखा है, “देश और लोगों के हितों की रक्षा करना चीन की कूटनीति के उदात्त मिशन के रूप में कार्य करता है। चीन की गरिमा का अपमान नहीं किया जाना चाहिए और उसके हितों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। यदि कोई देश चीन की न्यायिक संप्रभुता का उल्लंघन करता है, तो चीन को दृढ़ता से जवाब देना चाहिए, जो कि चीन की कूटनीति की निचली रेखा है। इसमें कहा गया है, “चीनी लोगों की नज़र में, यह न्याय की आवाज़ होगी … जैसा कि चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा, उन्हें उस ‘वुल्फ वॉरियर’ उपाधि के साथ रहने में कोई समस्या नहीं दिखती, जब तक कि हम चीन की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों, राष्ट्रीय गरिमा और सम्मान और अंतरराष्ट्रीय निष्पक्षता और न्याय के लिए लड़ रहे हैं।
इसे अमल में कैसे लाया जाता है?
अगर आप प्यार से कहते हो कि आप सुपर पावर हो तो कोई भी आपको सीरियसली नहीं लेगा। पर अगर आप सभी को पैसे की ताकत, डराते हो और एग्रैसिव मूव अपनाते हो तो सभी आपको सीरियसली लेना शुरू कर देंगे। अमेरिका की तरह चीन भी दुनिया को द ग्रेट चाइना स्टोरी दिखाना चाहता है। कुछ उदाहरण सोशल मीडिया पर मैसेजिंग के रूप में भी देखे जा सकते हैं। जहां चीनी अधिकारी पश्चिम के किसी भी आरोप का तुरंत जवाब देते हैं और सक्रिय रूप से काउंटर अटैक शुरू कर देते हैं। 2021 में चीनी सरकार के प्रवक्ता लिजियान झाओ द्वारा ऑस्ट्रेलिया द्वारा युद्ध अपराध की कंप्यूटर से बनाई तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी गई। इस पर आगबबूला हुए ऑस्ट्रेलिया ने चीनी सरकार को बेशर्म बताया और उसे माफी मांगने को कहा है। लेकिन चीन टस से मस नहीं हुआ। लेकिन यह पश्चिमी देशों तक ही सीमित नहीं है। इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के निदेशक सी राजा मोहन ने द इंडियन एक्सप्रेस में लिखा, “नई वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ सार्वजनिक क्षेत्र में चीन की किसी भी आलोचना का सामना करती है। वे मेजबान सरकारों को व्याख्यान देते हैं और विदेशी कार्यालयों द्वारा ‘सम्मन’ किए जाने पर हमेशा दिखाई नहीं देते हैं।
क्या ये आगे भी जारी रहेगा?
जिनपिंग के पहले के हू जिंताओ, जियांग ज़ेमिन जैसे राष्ट्राध्यक्ष लो प्रोफाइल डिप्लोमेसी और सॉफ्ट पावर प्रोजेक्शन डिप्लोमेसी को फॉलो करते थे। लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के आने के बाद से ही चीन के वैश्विक रुख में ज्यादा बदलाव आया है। शी जिनपिंग को एक शक्तिशाली और एग्रेसिव नेता के रूप में पहचाना जाता है। यह कहना मुश्किल है क्योंकि चीनी राजनयिकों की टिप्पणियों को देशों ने चुनौती नहीं दी है। वे सहयोगियों के बीच चीन की धारणा को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए संतुलन बनाने के प्रयास किए गए हैं। जून 2021 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन के आधिकारिक मीडिया और राजनयिकों से दुनिया के सामने “विश्वसनीय, प्यारा और सम्मानित चीन” की छवि पेश करने को कहा। शी के हवाले से कहा गया है, “दोस्त बनाना, एकजुट होना और बहुमत से जीतना आवश्यक है, और लगातार दोस्तों के सर्कल का विस्तार [जब यह] अंतरराष्ट्रीय जनमत की बात आती है।
भारत के लिए क्या चुनौती
एशिया में चीन को केवल भारत से ही चुनौती मिलती आई है। डोकलाम विवाद, अफगानिस्तान संकट, इंडियन ओसियन में उपस्थिति सभी जगह चीन भारत के लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है। लेकिन भारत भी चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा है। जैसे भारत ताइवान के साथ 7.5 बिलियन डॉलर का सेमी कंडक्टर चिप डील। हिंद महासागर में चीन की नौसेना की उपस्थिति को देखते हुए भारत ने भी अपने बेड़े को साउत चाइना सी और पैसेफिक ओसियन में डिप्लॉय कर रखा है। क्वाड देशों को साउथ चाइना सी में मिलिट्री को आपरेशन और बढ़ाना होगा।- अभिनय आकाश