जयशंकर ने ऑस्ट्रिया के अपने समकक्ष अलेक्जेंडर शालेनबर्ग के साथ कई क्षेत्रीय और वैश्विक स्थितियों पर ‘‘खुली और सार्थक’’ चर्चा की तथा दोनों पक्षों ने भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए प्रवासन एवं यात्रा सुगमता सहित कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन और पाकिस्तान को घेरते हुए बड़े बयान तो दिये ही हैं साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की नीति को भी एक बार फिर स्पष्ट किया है। हम आपको बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर दो देशों की अपनी यात्रा के दूसरे चरण में साइप्रस से ऑस्ट्रिया पहुंचे हैं जहां उन्होंने ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री अलेक्जेंडर शैलेनबर्ग के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कई मुद्दों पर अपने विचार रखे।
पाकिस्तान का संदर्भ देते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि सीमा पार से होने वाले आतंकवाद को किसी एक क्षेत्र के अंदर सीमित नहीं किया सकता, खासतौर पर जब वह मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी तथा अंतरराष्ट्रीय अपराधों के अन्य स्वरूपों से गहराई से जुड़ा हुआ है। उन्होंने किसी देश का नाम लिये बगैर कहा, ‘‘चूंकि आतंकवाद का केंद्र भारत के करीब में स्थित है इसलिए स्वाभाविक रूप से हमारे अनुभव और अंतर्दृष्टि अन्य के लिए उपयोगी हैं।
यूक्रेन में जारी संघर्ष पर ‘गहरी’ चिंता जताते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत शांति के पक्ष में है और युद्ध की शुरुआत से ही नयी दिल्ली की कोशिश यही रही है कि मॉस्को तथा कीव कूटनीति एवं संवाद के माध्यमों की ओर लौटें क्योंकि मतभेदों को हिंसा से नहीं सुलझाया जा सकता। जयशंकर ने कहा, “यह संघर्ष वास्तव में अत्यंत गहरी चिंता का विषय है … प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर में घोषणा की कि हम वास्तव में मानते हैं कि यह युद्ध का युग नहीं है। आप हिंसा के माध्यम से मतभेदों और मुद्दों को नहीं सुलझा सकते।” उन्होंने कहा, “इस तरह शुरू से ही, हमारा प्रयास (रूस और यूक्रेन से) संवाद और कूटनीति पर लौटने का आग्रह करना रहा है … प्रधानमंत्री ने खुद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की के साथ कई मौकों पर बात की है। मैंने रूस और यूक्रेन के अपने सहयोगियों से खुद भी बात की है।” उल्लेखनीय है कि भारत ने रूस और यूक्रेन से कूटनीति एवं बातचीत के रास्ते पर लौटने तथा जारी संघर्ष को समाप्त करने का बार-बार आह्वान किया है।
इसके अलावा जयशंकर ने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्हें बताया कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। उन्होंने कहा, “इसमें से अधिकांश चीन के साथ हमारी उत्तरी सीमा पर हमारे सामने उत्पन्न तीव्र चुनौतियों के आसपास केंद्रित है।” उन्होंने कहा, ”हमें पाकिस्तान की ओर से लगातार सीमा पार आतंकवाद की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है।” जयशंकर ने यह भी रेखांकित किया कि भारत ने बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों में काफी सुधार किया है। उन्होंने कहा, “हमने बांग्लादेश के साथ अपना भूमि सीमा समझौता किया है। यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे सफल कूटनीति ने (दो पड़ोसियों के बीच) मजबूत रिश्ते में सीधे योगदान दिया है।”
इसके अलावा, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि 77 साल पुराने संगठन संयुक्त राष्ट्र को “नया रूप” देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में बड़े बदलाव के लिए जोर देना नयी दिल्ली की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में सुधारों और इनमें भारत की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 1945 में हुई थी। मैं लोगों से कहता हूं कि कोई ऐसी चीज बताएं जो 77 साल पुरानी हो और उसमें आपको सुधार की जरूरत न लगती हो। लोग बदलते हैं, संस्थानों में भी बदलाव होने चाहिए। हमें बदलाव की जरूरत है। दुनिया का एक बड़ा हिस्सा यह नहीं मानता कि संयुक्त राष्ट्र निष्पक्षता से उसकी आवाज उठाता है।”
हम आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में काफी समय से लंबित सुधारों के लिए हुए प्रयासों में भारत सबसे आगे रहा है। भारत कहता रहा है कि वह सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने का हकदार है। जयशंकर ने कहा, “समस्या यह है कि जो प्रभावशाली हैसियत रखते हैं वे स्पष्ट रूप से अपने प्रभाव को कम होते नहीं देखना चाहते। ऐसे में हम लोगों को उस परिवर्तन के लिए कैसे राजी कर सकते हैं, जो अपने अल्पकालिक फायदों के कारण पुरानी प्रणाली से चिपके रहने के लिए मजबूर हैं, यह एक वास्तविक समस्या है।” विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सुधारों पर जोर देना भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन रातों-रात नहीं होगा। विदेश मंत्री ने कहा, “हम कोशिशें जारी रखेंगे। यह हमारे लिए और हमारी विदेश नीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य है। यह रातों-रात नहीं होगा, लेकिन एक दिन ऐसा होगा, मुझ पर विश्वास करें।”
उल्लेखनीय है कि सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका हैं। ये देश किसी भी मूल प्रस्ताव को वीटो कर सकते हैं। समकालीन वैश्विक वास्तविकता को दर्शाने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की मांग बढ़ रही है।
जयशंकर ने भारतीय समुदाय से संबंध मजबूत होने के लिए पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयास की सराहना भी की। विदेश मंत्री से जब पूछा गया कि सुषमा स्वराज के भारतीय विदेश मंत्री रहते विदेश नीतियों में क्या बदलाव आया, तो उन्होंने कहा: “मुझे बहुत खुशी है कि आपने मेरी पूर्ववर्ती दिवंगत सुषमा स्वराज जी का उल्लेख किया। तथ्य यह है कि विदेश में भारतीय समुदायों के साथ हमारे संबंध मजबूत हुए हैं और मजबूत रहेंगे, उन्होंने आगे बढ़कर नेतृत्व किया।” उल्लेखनीय है कि सुषमा स्वराज का 6 अगस्त, 2019 को 67 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया था।
जहां तक जयशंकर के ऑस्ट्रिया दौरे की बात है तो आपको बता दें कि उन्होंने ऑस्ट्रिया के अपने समकक्ष अलेक्जेंडर शालेनबर्ग के साथ कई क्षेत्रीय और वैश्विक स्थितियों पर ‘‘खुली और सार्थक’’ चर्चा की तथा दोनों पक्षों ने भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए प्रवासन एवं यात्रा सुगमता सहित कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चेक गणराज्य, स्लोवाक गणराज्य और ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्रियों के साथ पारस्परिक हितों से जुड़े क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की। हम आपको यह भी बता दें कि पिछले 27 वर्षों में भारत से ऑस्ट्रिया की पहली विदेश मंत्री स्तर की यात्रा हुई है, और यह 2023 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 75 वर्ष होने की पृष्ठभूमि में हो रही है।