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UP के अफसरों का भाजपा की ओर बढ़ रहा झुकाव, एक ने थामा भगवा झंडा, दूसरे को लेकर चर्चा जारी

उत्तर प्रदेश में चाहे किसी की भी सरकार रही हो, नवनीत सहगल हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। नवनीत सहगल मुख्यत: पंजाब के रहने वाले हैं। माना जा रहा है कि रिटायरमेंट के बाद वह भाजपा का दामन थाम सकते हैं।

2014 के बाद देखें तो भारतीय जनता पार्टी का देश की राजनीति में दबदबा बढ़ा है। भाजपा का दावा है कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। भाजपा लगातार अपने संगठन को विस्तार करती रहती है। इसके अलावा कई अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले लोग पार्टी से जुड़ते रहते हैं। इसके साथ ही आईएएस और आईपीएस में अपनी सेवा दे चुके कुछ बड़े अफसरों ने भी भाजपा का दामन थामा है। उदाहरण के तौर पर हम पूर्व गृह सचिव आरके सिंह का नाम ले सकते हैं जो कि केंद्र सरकार ने फिलहाल मंत्री हैं। उत्तर प्रदेश में भी अफसरों का भाजपा में शामिल होने का सिलसिला जारी है। अरविंद कुमार शर्मा जो कि प्रधानमंत्री कार्यालय में वरिष्ठ पद पर थे, उन्होंने भाजपा का दामन थामा और फिलहाल योगी आदित्यनाथ की सरकार में कई मंत्रालयों का प्रभार संभाल रहे हैं। भाजपा के लिए यह सिलसिला जारी रहने वाला है क्योंकि कई ऐसे वरिष्ठ अधिकारियों के नाम सामने आ रहे हैं जो आने वाले दिनों में भाजपा का दामन थाम सकते हैं। 

कुछ दिन पहले ही आई थी के पद से रिटायर होने वाले कविंद्र प्रताप सिंह ने भी भगवा झंडा उठा लिया है। वह विश्व हिंदू परिषद में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उन्हें विश्व हिंदू परिषद ने काशी प्रांत का अध्यक्ष बनाया है। कविंद्र प्रताप सिंह एसपी रेलवे, एसपी ट्रैफिक, कुंभ मेला 2013, डीआईजी कुंभ मेला 2019, आईजी प्रयागराज अधिक बड़े पदों पर काम कर चुके हैं। इन दिनों एक और नाम खूब सुर्खियों में है। वह नाम उत्तर प्रदेश में फिलहाल कई विभागों में सचिव की भूमिका निभा रहे नवनीत सहगल का है। उत्तर प्रदेश में चाहे किसी की भी सरकार रही हो, नवनीत सहगल हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। नवनीत सहगल मुख्यत: पंजाब के रहने वाले हैं। माना जा रहा है कि रिटायरमेंट के बाद वह भाजपा का दामन थाम सकते हैं। नवनीत सहगल 1988 बैच के यूपी कैडर के अधिकारी हैं। नवनीत सहगल के भाजपा में शामिल होने की चर्चा पिछले कई दिनों से है। 

हालांकि, नौकरशाहों का राजनीति से प्रेम नया नहीं है। फैजाबाद के जिलाधिकारी रहे केके नायर जन संघ में शामिल हो गए थे। उत्तर प्रदेश की बात करें तो हाल में ही विधानसभा चुनाव से पहले कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने वीआरएस लेकर राजनीति के मैदान में कूदे। भाजपा ने उन्हें कन्नौज से उम्मीदवार बनाया और वह जीत हासिल करने में कामयाब रहे। दूसरी ओर प्रवर्तन निदेशालय में जॉइंट डायरेक्टर रहे राजेश्वर सिंह ने भी वीआरएस लेकर राजनीति में आना बेहतर समझा। उन्होंने ने भी सरोजिनी नगर से जीत हासिल की है। नौकरशाहों के बीजेपी में आने की सबसे बड़ी वजह अगर देखी जाएं तो इनके शीर्ष नेतृत्व का नौकरशाही पर भरोसा है। जब भी बीजेपी या इसके गठबंधन की सरकार आती है तो एक आरोप इनकी सरकार पर जरूर लगता है कि सरकार को नौकरशाह चला रहे हैं। अभी भी केंद्र की सरकार हो या उत्तर प्रदेश सरकार दोनों पर यह आरोप लगातार रहा है कि कुछ नौकरशाह पार्टी के नेताओं को भी अनदेखा करते हैं और सरकार में हस्तक्षेप ज्यादा है।

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