चुनावी दंगल में कब धाकड़ होगी आधी आबादी

लखनऊ: आधी आबादी यानी महिलाओं के हक को लेकर तमाम बातें होती हैं। सड़क से लेकर संसद तक तमाम आंदोलन, लेकिन चुनाव आते ही सारी आवाजें दब जाती हैं। ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां चुनावी दंगलों में इन्हें पाले के बाहर ही रखती हैं। यह वजह है कि आजादी के बाद से आज तक यूपी विधानसभा के भीतर महिलाओं की संख्या 35 से ज्यादा नहीं हो सकीं।

पांच साल तक महिलाओं के अधिकार की बात करने वाली पार्टियां चुनाव के समय क्यों उनको वाजिब अधिकार नहीं देती? इस सवाल पर महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली विश्व नारी अभ्युदय संगठन की अध्यक्ष रीता जायसवाल कहती हैं- इसके पीछे कारण महिलाओं को राजनीति में वे सब दांव-पेच नहीं आना है,जो आज की तारीख में किसी भी पार्टी के टिकट के जुगाड़ के लिए जरूरी हो गया है। यही कारण आधी दुनिया को चुनाव में 10 फीसदी भी टिकट देने में कंजूसी बरतते हैं। टिकट पाने वाली अधिकांश महिलाएं किसी न किसी राजनीतिक परिवार से जुड़ी होती हैं। सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली आम महिला के लिए राजनीति की डगर बहुत कठिन है।

विधानसभा चुनाव 2012 पर नजर डालें तो आधी आबादी की दिलचस्पी चुनाव में कम नहीं थी। पिछले चुनाव में 583 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं। इसमें से जीत सिर्फ 35 को ही मिली, लेकिन सोनभद्र के दुद्धी से निर्दलीय अनुसूचित जनजाति की रूबी प्रसाद की जीत मायने रखती है। विधानसभा चुनाव 2017 के लिए नामांकन चल रहे हैं, इस चुनाव में विधानसभा की चौखट पर कितनी महिलाएं पहुंचेंगी, यह तो 11 मार्च को ही पता चलेगा। प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा दिए गए टिकट की संख्या देखकर यह आज ही कहा जा सकता है कि16 वीं विधानसभा में आधी दुनिया की जो तस्वीर थी, उसमें कोई बड़ा बदलाव होने वाला हैं।

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