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भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल: मोदी बोले- विश्व के लिए पथदर्शी बना देश का यह जन-आंदोलन

नई दिल्ली मोदी सरकार आज संसद में भारत छोड़ो आंदोलन की 75th एनिवर्सरी को खास तरीके से मनाने जा रही है। इसके लिए संसद का स्पेशल सेशन बुलाया। लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज का दिन गौरव का दिन है. मोदी ने कहा कि इस आंदोलन को 75 साल हो गए हैं, देश के स्वतंत्रता में इसका काफी महत्व था. अंग्रेजों ने इसकी कल्पना नहीं की थी. पीएम ने कहा कि उस समय महापुरुषों के बलिदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है. जब इस आंदोलन के 25 साल और 50 साल हुए थे तब भी इसका महत्व था लेकिन 75 साल पूरे होना बड़ी बात है. देश के इतिहास में 9 अगस्त की बड़ी भूमिका थी, अंग्रेजों ने इसकी कल्पना नहीं की थी. उस दौरान महात्मा गांधी और बड़े नेता जेल गए थे, तब नए नेताओं ने जन्म लिया था. जिनमें लाल बहादुर शास्त्री, राममनोहर लोहिया जैसे नेता शामिल थे.

मोदी ने कहा कि गांधीजी ने 1942 में कहा था कि पूर्ण स्वराज से कम कुछ भी मंजूर नहीं। आज हमारे पास गांधीजी जैसा नेतृत्व नहीं है। लेकिन कुछ अहम समस्याओं से देश को आजाद कराने का संकल्प ले सकते हैं। उस समय का मंत्र था करेंगे या मरेंगे तो आज करेंगे और करके रहेंगे के संकल्प को लेकर आगे बढ़ेंगे। इस आंदोलन से लोगों को लगने लगा था कि अब नहीं तो कभी नहीं होगा. पहले कभी लगता था कि आंदोलन सिर्फ कुछ लोगों के द्वारा ही चल रहा है लेकिन 1942 के आंदोलन में सभी का साथ मिला. इस आंदोलन में नारा था कि भारत छोड़ो, इस दौरान महात्मा गांधी का ‘करेंगे या मरेंगे’ कहना बड़ी बात है. उस दौरान गांधी ने कहा कि मैं स्वतंत्रता से कम पर संतुष्ट होने वाला नहीं हूं. हम या तो करेंगे या मरेंगे. पीएम ने कहा कि उस समय समाज के सभी वर्ग जब इस आंदोलन में जुड़ गया जिससे इसमें तेजी आई. महात्मा गांधी ने कहा था कि इस दौरान कोई भी मरेगा तो उसके शरीर पर करेंगे या मरेंगे की पट्टी लगानी चाहिए. मोदी बोले कि जब सभी लोगों ने एक साथ इसकी लड़ाई लड़ी तो हमें 1942 से 1947 तक के आंदोलन में हमें आजादी मिल जाती है.

मोदी ने कहा, “इतिहास की घटनाएं हमारे लिए आज किस प्रकार सार्थक बने, इसका प्रयास रहना चाहिए।” “आजादी के आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव आए। भारत छोड़ो आंदोलन अंतिम व्यापक जनसंग्रह था। 1942 में ऐसी पीठिका तैयार हुई थी कि देश के हर कोने में लोगों में आजादी की अलख जग गई थी।” “तिलक ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया था। 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन चलाया। भगत सिंह, राजगुरु, चापेकर बंधुओं ने अलग-अलग समय पर बलिदान दिया।” “गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन में शब्द गूंजे- करेंगे या मरेंगे। देश के लिए ये अजूबा था। गांधीजी ने कहा था कि मैं पूर्ण स्वतंत्रता से कम में संतुष्ट होने वाला नहीं हूं।” “जंजीरें और किताबें बुक में लिखा है- हर व्यक्ति उस वक्त नेता बन गया। हर घर भारत छोड़ो आंदोलन का ऑफिस बन गया था। हर व्यक्ति में भारत छोड़ो की बात घर कर चुकी थी। 1942 के बाद जहां-जहां उपनिवेशवाद के खिलाफ क्रांति भड़की, उसका श्रेय भारत को जाता है।”

मोदी ने कहा, “उस समय पूरे आंदोलन को सोहनलाल द्विवेदी की कविता बापू का सामर्थ्य क्या है, बयां करती है। जिधर गांधीजी की दृष्टि टिक जाती थी, वहां करोड़ों आंखें देखने लग जाती थीं। आज हमारे पास गांधी नहीं है, ऊंचाई वाला नेतृत्व नहीं है, 125 करोड़ लोगों के भरोसे के साथ बैठे हम लोगों के लिए गांधीजी के सपनों को पूरा करना बड़ी बात नहीं है।” “आज 2017 में विश्व में वो अनुकूलता है जिसका हम फायदा उठा सकते हैं। अगर आज मौके ले लें तो विश्व के लिए प्रेरणा का कारण बन सकते हैं।” “हमारे लिए दल से बड़ा देश होता है। राजनीति से बड़ी राष्ट्रनीति होती है। अगर इस भाव को ले लें तो समस्याओं के खिलाफ आगे निकल सकते हैं। भ्रष्टाचार रूपी दीमक ने देश को खराब कर रखा है। कल क्या हुआ, इसको छोड़ सकते हैं। आज ईमानदारी का संकल्प लेकर उत्सव मना सकते हैं।” “1942 में अलग-अलग विचारधारा के लोग थे। समय की मांग है कि हम कुछ मुद्दों अशिक्षा, भ्रष्टाचार, गरीबी से देश को मुक्त करने के लिए संकल्प ले सकते हैं।”

मोदी ने कहा, ”1942 से 1947 के बीच इन्क्रीमेंटल चेंज नहीं था। डिसरप्शन का एन्वायरमेंट था। इसने अंग्रेजों को जाने को मजबूर कर दिया। 1942 से 1947 तक स्थिति अलग थी। हम पिछले सौ-दो सौ साल का इतिहास देखें तो विकास की यात्रा इन्क्रीमेंटल थी। लेकिन पिछले 30-40 साल में दुनिया में जबर्दस्त बदलाव आया। पहले यह नजर नहीं आता था। डिसरप्शन का अनुभव हम करते हैं। यह हाई जंप ग्रोथ थी। 2022 में आजादी के 75 साल हो जाएंगे। 2017 से 2022 का सफर भी हम 1942 से 1947 की तरह तय करें। जैसे आजादी की ललक तब बनी थी, आज भी विकास की वैसी ही ललक पैदा हो।” ”हम कुछ मुद्दों पर सहमति बनाकर बहुत बड़ा काम कर सकते हैं। हमने अभी देखा। ये मेरा राजनीतिक बयान नहीं है। जीएसटी की सफलता किसी दल की सफलता नहीं है। वह इस सदन में बैठे लोगों की इच्छाशक्ति का परिणाम है। श्रेय सभी को जाता है। राज्यों को, व्यापारियों को। जीएसटी दुनिया के लिए बहुत बड़ा अजूबा है। अगर भारत ऐसा कर सकता है तो और भी कई निर्णय कर सकता है।” ”2022 का संकल्प लेकर चलेंगे तो हमें ऐसे ही परिणाम मिलेंगे। महात्मा गांधी ने नारा दिया था- करो या मरो। अगर आज हमें 2022 के लिए संकल्प लेना है तो हमें देश में भ्रष्टाचार दूर करेंगे और करके रहेंगे, गरीबों को उनका अधिकार दिलाएंगे, दिलाकर रहेंगे। नौजवानों को स्वरोजगार दिलाएंगे, देकर रहेंगे। कुपोषण हटाएंगे, हटाकर रहेंगे। बेड़ियों को खत्म करेंगे, करके रहेंगे। अशिक्षा खत्म करेंगे, करके रहेंगे।” ”उस समय का मंत्र था करेंगे या मरेंगे तो आज करेंगे और करके रहेंगे के संकल्प को लेकर आगे बढ़ेंगे। ये संकल्प किसी दल या किसी का सरकार का नहीं, यह सवा सौ करोड़ के देशवासियों का संकल्प होना चाहिए।”

मोदी ने कहा, ”दुर्भाग्य से हमारे चरित्र में कुछ चीजें घुस गई हैं। अगर हम चौराहे पर रेड लाइट क्रॉस करके निकल जाते हैं तो लगता ही नहीं कि हम गलत कर रहे हैं। कानून को तोड़ना हमारा स्वभाव बन जाता है। छोटी-छोटी घटना हिंसा बनती जा रही है। किसी मरीज की मौत हो जाती है तो डॉक्टर को पीटते हैं। एक्सीडेंट हो गया तो ड्राइवर को मारते हैं, गाड़ियों को जला देते हैं। हमें लगता ही नहीं कि हम कानून तोड़ रहे हैं। इसलिए लीडरशिप की जिम्मेदारी होती है कि हम समाज के अंदर इन दोषों से मुक्ति दिलाकर कर्तव्य भाव को जगाएं।” ”स्वच्छता, शौचालय मजाक के विषय नहीं हैं। उन महिलाओं से पूछना चाहिए जो शौचालय के अभाव में रात का अंधेरा खत्म होने का इंतजार करती रहती हैं। देश की माताओं-बहनों का देश पर बोझ सबसे कम है। उनका सामर्थ्य हमें कितना बल-कितनी ताकत दे सकता है। देश को आजादी दिलाने में ही उनका योगदान है।”

पीएम ने कहा कि रामवृक्ष बेनीपुरी ने एक किताब लिखी है जंजीरें और दीवारें जिसमें उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति नेता बन गया, देश का हर चौराहा करो या मरो का दफ्तर बन गया. मुंबई ने रास्ता दिखा दिया, आने-जाने के सभी रास्ते बंद हो गए थे. जनता ने करो या मरो के गांधी वादी मंत्र को दिल में बैठा लिया था. मोदी बोले कि भारत के आजाद होने से पूरी दुनिया में बड़ा संदेश गया और उन जगहों पर भी आजादी का आंदोलन शुरू हुआ था. पीएम ने कहा कि हमारे लिए सबक है कि जब हम एक होकर आगे बढ़ते हैं तो हम देश को आगे बढ़ा सकते हैं. मोदी ने सोहनलाल द्विवेदी की कविता भी पढ़ी, उन्होंने ‘उसी ओर’ कविता की पंक्तिया सुनाई. पीएम ने कहा कि आज जब हम 2017 में है तो हमारे पास गांधी नहीं है, उस समय जैसा नेतृत्व नहीं है. लेकिन 125 करोड़ देशवासियों के पास ये क्षमता है कि हम गांधी के सपनों को पूरा कर सकते हैं. उस समय भी भारत के लिए अनुकूल माहौल था और आज भी देश के लिए अनुकूल माहौल है.

9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है। सही मायने में आंदोलन 8 अगस्‍त, 1942 से शुरू हुआ था। 8 अगस्‍त, 1942 को बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया था। ग्वालिया टैंक मैदान पर गांधीजी ने भाषण दिया। उन्‍होंने लोगों से कहा, “मैं आपको एक मंत्र देना चाहता हूं, जिसे आप अपने दिल में उतार लें। यह मंत्र है, करो या मरो। बाद में इसी ग्वालिया टैंक मैदान को अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाने लगा।

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