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राज्यसभा चुनाव: शाह के लाव-लश्कर पर भारी पड़ा अकेले डटे अहमद पटेल का लक

गांधीनगर  सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल, जिन्हें कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है. बीजेपी ने अहमद पटेल के सियासी चक्रव्यूह में घेरने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी,  जिसे भेदकर वो  पांचवी बार राज्यसभा पहुंचने में भले ही वो कामयाब हो गए हैं. इस जंग को फतह करने में उन्हें लोहे के चने चबाने पड़ गए. बीजेपी जहां पूरी टीम के साथ उन्हें घेरने में लगी थी, तो वहीं अहमद पटेल सियासी रण में अकेले जीत के लिए जद्दोजहद कर रहे थे.

गुजरात राज्यसभा चुनाव का फैसला आ चुका है और बाजी अहमद पटेल की हाथ लगी है. लेकिन इस जंग को अहमद पटेल ने किस तरह जीता है. ये उनका दिल ही जानता है. राज्यसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सियासी दंगल शुरू हो गया था और नतीजा आने तक यथावत जारी रहा. जबकि इसके साथ ही देश के दूसरे राज्यों में राज्यसभा चुनाव थे, पर चर्चा सिर्फ गुजरात की रही.  दरअसल गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों पर चुनाव हो रहे थे. जिसमें कांग्रेस की तरफ से अहमद पटेल सियासी मैदान में थे. जबकि बीजेपी ने अमित शाह, स्मृति ईरानी और कांग्रेस के बागी नेता बलवंत सिंह राजपूत को मैदान में उतारा था. इनमें से अमित शाह और स्मृति ईरानी का राज्यसभा पहुंचना तय था,  लेकिन बलवंत का पहुंचने के लिए पर्याप्त संख्या में विधायक की जरूरत थी. इसी तीसरी सीट के लिए शुरू का सियासी रण. बीजेपी ने जहां इस तीसरी सीट जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी, तो वहीं कांग्रेस का चाणक्य अपनी जीत के लिए अकेला पड़ गया था. पार्टी के नेता भी उसके साथ मुस्तैदी से खड़े नहीं थे.

चाणक्य बनाम चाणक्य

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस मुखिया सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल दोनों नेता गुजरात से आते हैं. दोनों नेता अपनी अपनी पार्टी में चाणक्य की भूमिका में है. इन दोनों नेताओं के बीच अपनी सियासी अदावत है. यही वजह है कि दोनों के बीच वक्त-बे-वक्त शह-मात  का खेल चलता रहता है.  अमित शाह और अहमद पटेल के बीच 2010 से छत्तीस का आंकड़ा है.  अमित शाह को 2010 में सोहराबुद्दीन के फर्जी एनकाउंटर के केस में जेल जाना पड़ा था. इसके लिए वह कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार को दोषी ठहराते हैं. कहा जाता है कि अहमद पटेल के इशारे पर ही अमित शाह के खिलाफ कार्रवाई हुई थी.

अब जब केंद्र में बीजेपी की सरकार है और अमित शाह की तूती बोलती है. ऐसे में अमित शाह ने कांग्रेसी चाणक्य से अपना हिसाब किताब बराबर करना चाहते थे, जिसके लिए वो अहमद पटेल के राज्यसभा की राह में कांटे बिछा दिए.  इन मुश्किलों भरे सफर में अहमद पटेल के साथ पार्टी भी खड़ी नजर नहीं आ रही थी. अहमद पटेल अपनी जंग अकेले लड़ रहे थे. इतना ही नहीं कई  कांग्रेसी विधायकों ने बगावत कर दी और पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी के प्रकोप से बचाने के लिए गुजरात के विधायकों को कर्नाटक ले जाना पड़ा, जहां आयकर विभाग ने छापा मारा. इस पर अहमद पटेल ने कड़ा एतराज जाहिर किया. कांग्रेस पार्टी के नेता अहमद पटेल के साथ उस तरह नहीं खड़े थे, जिस तरह बीजेपी के नेताओं की पूरी टीम लगी हुई थी.

कांग्रेस की सीडब्लूसी की बैठक में नहीं हुए चर्चा

अहमद पटेल के लिए मंगलवार का दिन किसी अग्निपरिक्षा से कम नहीं था. दरअसल आठ अगस्त  को गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के लिए मतदान थे, पार्टी के दो विधायकों ने क्रास वोटिंग की थी. अहमद पटेल मुसीबत में फंसे थे. उनकी जीत पर सस्पेंस बरकारर था .  उसी समय दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों की बैठक चल रही थी. सूत्रों की माने तो इस बैठक में राहुल गांधी पर हुए हमले और अंग्रेज भारत छोड़ो पर तो बात हुए लेकिन अहमद पटेल को लेकर किसी तरह की कोई चर्चा नहीं हुए. इससे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि कांग्रेसी नेता अहमद पटेल को लेकर कितना संजीदा थे.

कांग्रेस के दो के मुकाबले बीजेपी के 6 नेता

कांग्रेस के दो बागी विधायकों  ने बीजेपी को वोट देकर अहमद पटेल की मुसीबत बढ़ा दी थी. लेकिन अनजानें वो ऐसी गलती कर बैठे जिससे बीजेपी का दांव उलटा पड़ गया.  इन दोनों  विधायकों ने बीजेपी को वोट देने के बाद अपने मतपत्र को अमित शाह को दिखाया. इसी बात को लेकर कांग्रेस की तरफ से दिल्ली में कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला और आरपीएन सिंह ने चुनाव आयोग जाकर मामले की शिकायत की. साथ ही उन्होंने अपनी दलील पेश करते हुए दो विधायकों के वोट रद्द करने की अपील की. कांग्रेस की इस प्रयास को कमजोर करने के लिए बीजेपी ने 6 केंद्रीय मंत्रियों का डेलीगेशन चुनाव आयोग पहुंचा. वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल, मुख्तार अब्बास नकवी, निर्मला सीतारमण और धर्मेंद्र प्रधान ने चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचकर कांग्रेस की अपील को दरकिनार करने की मांग की. बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के प्रतिनिधी मंडल को देखने के बाद कांग्रेस की तरफ से फिर वरिष्ठ नेताओं की ठीम उतरी. जब कहीं जाकर बाजी कांग्रेस के हाथ लगी.

12 तुगलक लेन बनाम 10 जनपद

अहमद पटेल के अकेले पड़ जाने की वजह ये भी है कि वो दस जनपद के करीबी हैं. अहमद पटेल सोनिया के राजनीतिक सचिव हैं. जबकि 12 तुगलक लेन यानी राहुल गांधी का घर जहां राहुल की टीम बैठती है. राहुल टीम पूरे चुनाव के दौरान नजर नहीं आई. 12 तुगलक लेन बनाम 10 जनपद  के बीच शह-मात का खेल चलता रहता है. इसी कड़ी में 12 तुगलक लेन के नेता यही चाहते थे कि अहमद पटेल हार जाएं तो सियासी तौर पर निपट जाएंगे और कांग्रेस में उनका राजनीतिक कद बढ़ेगा. इसी मद्दे नजर वो पूरे चुनाव के दौरान कहीं नजर नहीं आएं.

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