जस्टिस दीपक मिश्रा भारत के सुप्रीम कोर्ट के 45वें मुख्य न्यायाधीश बने

नई दिल्‍ली

जस्टिस दीपक मिश्रा को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई। जस्टिस दीपक मिश्रा भारत के सुप्रीम कोर्ट के 45वें मुख्य न्यायाधीश बने हैं। उन्हें जस्टिस जेएस खेहर के रविवार को सेवानिवृत्त होने के बाद यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। जस्टिस दीपक मिश्रा वैसे तो किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं क्योंकि उन्होंने पूर्व में ऐसे कई फैसले दिए हैं जो भारतीय इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए हैं। आइए जानते हैं उनके द्वारा दिए गए ऐसे ही पांच फैसले जो मील का पत्थर साबित हुए हैं।

साल 1993 के मुंबई धमाकों में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन ने फांसी से ठीक पहले अपनी सजा पर रोक लगाने की याचिका लगाई थी। इस मामले में 29-30 जुलाई 2015 की मध्यरात्रि को अदालत खुली और सुनवाई हुई, जिसमें याकूब को फांसी की सजा बरकरार रखी गई। भारत के इतिहास में पहली बार देर रात सुनवाई करने वाले तीन जजों में जस्टिस मिश्रा भी शामिल थे। दलीलें सुनने के बाद सुबह 5 बजे जस्टिस मिश्रा ने फैसला सुनाया था कि फांसी के आदेश पर रोक लगाना न्याय की खिल्ली उड़ाना होगा इसलिए याचिका रद्द की जाती है। इसके कुछ घंटों बाद याकूब को फांसी दे दी गई थी।

उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार की प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। 27 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन देने से पहले सावधानी से जानकारियां जुटाई जाएं। यह फैसला देने वाली दो जजों की बेंच में दीपक मिश्रा भी थे। जस्टिस दीपक मिश्र की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 30 नवंबर, 2016 को यह आदेश दिया था कि पूरे देश में सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद तमाम लोग खड़े होंगे। 7 सितंबर, 2016 को जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस सी नगाप्पन की पीठ ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि एफआईआर की कॉपी 24 घंटों के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। इससे पहले जब जस्टिस मिश्र ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे, तब 6 दिसंबर, 2010 को उन्होंने दिल्ली पुलिस को भी ऐसे ही आदेश दिए थे, ताकि लोगों को बेवजह थानों व अदालतों के चक्कर नहीं काटना पड़े।

13 मई, 2016 को आपराधिक मानहानि के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखने का आदेश सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच में भी जस्टिस दीपक मिश्र भी शामिल थे। यह फैसला सुब्रमणियम स्वामी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल व अन्य बनाम यूनियन के केस में सुनाया गया था। बेंच ने स्पष्ट किया था कि अभिव्यक्ति का अधिकार असीमित नहीं है।

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