नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी म्यांमार की अपनी पहली द्विपक्षीय यात्रा पर पांच सितंबर को जाएंगे, जिस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर होने और अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के लोगों के बड़े पैमाने पर पलायन करने सहित अहम मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री की तीन दिन की यात्रा के दौरान वहां के नेतृत्व के साथ सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग मजबूत करने के तरीकों, भारतीय सहायता वाली विकास परियोजनाओं को लागू किए जाने और भारत-म्यांमार सीमा पर चुनिंदा उग्रवादी समूहों द्वारा सीमा पार से होने वाली गतिविधियों पर वार्ता होने की संभावना है।
विदेश मंत्रालय में बांग्लादेश एवं म्यांमार मामलों की प्रभारी संयुक्त सचिव श्रीप्रिया रंगनाथन ने बताया कि मोदी ‘स्टेट काउंसलर ‘ आंग सान सू ची के साथ 6 सितंबर को द्विपक्षीय संबंधों पर विस्तृत चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि म्यामां के राखिन प्रांत में सिलसिलेवार हिंसा और अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के बड़े पैमाने पर पलायन का वार्ता में जिक्र होगा।
रंगनाथ ने संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री चीन से म्यामां की राजधानी नाय पी ताउ जाएंगे। वह ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शरीक होने चीन जा रहे हैं. पांच अगस्त को मोदी म्यामां के राष्ट्रपति हतिन क्याव से मिलेंगे। वह प्रधानमंत्री के लिए एक भोज की मेजबानी करेंगे। नाय पी ताउ से मोदी प्राचीन शहर बागान जाएंगे जहां भारत विकास सहयोग परियोजना में भागीदारी कर रहा। इसके बाद वह यांगून की यात्रा करेंगे जहां वह श्वेडैगन पैगोडा जाएंगे और देश के राष्ट्रवादी नेता जनरल आंग सान को श्रद्धांजलि अपर्ति करने शहीद स्मारक जाएंगे। सू च्यी के पिता जनरल आंग की हत्या कर दी गयी थी । मोदी एक प्रसिद्ध मंदिरऔर बहादुर शाह जफर के मकबरे पर भी जाएंगे।
रंगनाथन ने कहा कि यह यात्रा भारत के लिए न सिर्फ विकास सहयोग साझेदारी की समीक्षा के लिए बल्कि संबंधों के नये क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का भी मौका होगा। उन्होंने कहा कि हम इस यात्रा को एक अहम यात्रा और जारी बातचीत की श्रृंखला में एक मानते हैं जिसके भविष्य में भी जारी रहने की आशा है। पिछले साल भारत-म्यांमार सीमा पर थल सेना की कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर रंगनाथन ने कहा कि इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कोई गलतफहमी नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि यह सभी लोग बखूबी जानते हैं कि सीमा के पास कार्रवाई की गई। यह एक मुश्किल सीमा है। यह ऐसी सीमा है जिस पर सीमा का सटीक स्थान कभी कभी पता करना मुश्किल हो सकता है।
‘हमें क्या करना चाहिए इस पर मुझे नहीं लगता कि हमारे और म्यांमार सरकार के बीच कोई गलतफहमी है।’ म्यांमार से भारत की 1,640 किमी सीमा लगी हुई है. रंगनाथन ने कहा कि सरकारों के मंसूबों को लेकर दोनों पक्षों को पूरा भरोसा है। म्यामांर की सरजमीं से भारत के खिलाफ बैरी गतिविधियों को रोकने के लिए दोनों ओर चिंता और आकांक्षा है। उन्होंने कहा कि भारत-म्यांमार सीमा पर उग्रवादियों की गतिविधियों की समस्या भारत और म्यांमार के नेतृत्व के बीच चर्चा का एक विषय है। कलादान परियोजना और हाईवे परियोजना पर प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान चर्चा होगी।
उन्होंने कहा कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति और पड़ोसी देश पहले नीति में म्यामांर एक बहुत अहम साझेदार है। रोहिंग्या समुदाय के बड़े पैमाने पर पलायन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि राखिन प्रांत का मुद्दा गंभीर चिंता का विषय है। हाल ही में एक बड़ा हमला हुआ है, काफी संख्या में लोगों की जान गई है।