नई दिल्ली
चीन के शियामेन शहर में पांच सितंबर को ब्रिक्स सम्मेलन का औपचारिक समापन हुआ। लेकिन चार सितंबर को ब्रिक्स घोषणापत्र के 48 वें पैरे ने शायद पहली बार पाकिस्तान को परेशानी में डाल दिया। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि उसका आका चीन 2016 में गोवा ब्रिक्स घोषणापत्र की तरह अपनी जमीन से भी पाकिस्तान की राह आसान करेगा। लेकिन भारतीय कूटनीति के आगे चीन की भी नहीं चल सकी। ब्रिक्स घोषणापत्र के 48वें पैरे में लश्कर, जैश, हक्कानी नेटवर्क का साफ तौर पर जिक्र किया गया। ब्रिक्स में एक तरफ जब सम्मेलन का औपचारिक समापन हुआ, ठीक उसके बाद पाकिस्तान ने कहा कि वो ब्रिक्स घोषणापत्र से इत्तेफाक नहीं रखता है। लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अपनी सरकार को चेतावनी के साथ-साथ सलाह भी दी कि अब समय बदल रहा है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान सरकार की घोषित नीति के खिलाफ जाकर पाक विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ के बयान के मायने क्या हैं, लेकिन उससे पहले ख्वाजा आसिफ के बयान को जानने की जरूरत है।
पाकिस्तान ने आखिरकार माना कि उसकी जमीन से ही लश्कर व जैश जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं। जब तक ऐसे संगठनों पर काबू नहीं पाया जाएगा, तब तक विश्व मंच पर उसकी फजीहत होती रहेगी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने चेतावनी दी है कि लश्कर-जैश जैसे आतंकी समूहों पर काबू पाए जाने तक देश अपमानित होता रहेगा। आसिफ की स्वीकारोक्ति से दो दिनों पहले ब्रिक्स समूह की शिखर बैठक में पहली बार लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का नाम लिया गया था। ट्रंप भी हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी समूहों को सुरक्षित ठिकाना मुहैया कराने के लिए पाकिस्तान की आलोचना कर चुके हैं।
आसिफ ने माना कि लश्कर और जैश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित हैं। ये पाकिस्तान से संचालित हो रहे हैं। चीन रवाना होने से एक दिन पहले मंगलवार को उन्होंने कहा, ‘हमें अपने मित्रों से यह कहना जरूरी है कि हमें अपने घर को सुधारना होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपमानित होने से बचने के लिए अपने घर की व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी।’ आसिफ के मुताबिक, ब्रिक्स घोषणा को चीन के कदम के रूप में नहीं देखना चाहिए। इस समूह में रूस, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हैं। ब्रिक्स घोषणा पत्र में लश्कर और जैश का नाम शामिल होना पाकिस्तान के लिए झटका माना जा रहा है। पिछले वर्ष गोवा में हुए ब्रिक्स शिखर बैठक में चीन ने इन दोनों संगठनों का नाम शामिल नहीं होने दिया था।