सपा-बसपा की लड़ाई ने यूपी में बिगाड़ी I.N.D.I.A की बिसात, मायावती के अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के फैसले से दि‍लचस्‍प हुई राजनीत‍ि

रतन गुप्ता उप संपादक
सूत्रों के अनुसार सपा इस पर सहमत नहीं थी लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं ने हर बार सपा को यही समझाने का प्रयास किया कि उत्तर प्रदेश में लगभग 20 प्रतिशत दलित वोट हैं। भले ही भाजपा ने उस वोट में सेंध लगा दी हो फिर भी मायावती की मुट्ठी में काफी दलित वोट हैं। साथ ही उनकी कुछ पकड़ मुस्लिम मतों पर भी है।
बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता की कोशिश को पलीता लगा दिया। यह तय हो गया है कि 80 सीटों वाले इस प्रदेश में भाजपा के विरुद्ध एक संयुक्त उम्मीदवार नहीं होगा। आइएनडीआइए में शामिल दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर बंगाल, पंजाब, दिल्ली, बिहार आदि राज्यों में पेंच फंस रहा है। यहां मामले को सुलझाने के साथ ही कांग्रेस हाईकमान की कसरत उत्तर प्रदेश को लेकर भी चल रही थी, जहां वह बसपा को भी गठबंधन में लाने के लिए प्रयासरत थी।

सूत्रों के अनुसार, सपा इस पर सहमत नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं ने हर बार सपा को यही समझाने का प्रयास किया कि उत्तर प्रदेश में लगभग 20 प्रतिशत दलित वोट हैं। भले ही भाजपा ने उस वोट में सेंध लगा दी हो, फिर भी मायावती की मुट्ठी में काफी दलित वोट हैं। साथ ही उनकी कुछ पकड़ मुस्लिम मतों पर भी है। 2014 में अकेले चुनाव लड़ने पर बेशक बसपा को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली थी, लेकिन वोट प्रतिशत 19.77 प्रतिशत था। इसी तरह 2019 में सपा के साथ मिलकर लड़ी बसपा ने 19.43 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे और उसके 10 सांसद जीते।

कांग्रेस नेताओं ने यह आंकड़ा भी दिखाया कि 2014 में सबसे खराब प्रदर्शन के बावजूद 80 में से 30 से अधिक सीटों पर बसपा ही दूसरे स्थान पर थी। अंदरखाने तेजी से चल रहे कांग्रेस के इन प्रयासों का असर सपा और बसपा दोनों पर दिखाई दे रहा था या कहें कि अभी भी दिखाई दे रहा है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने विधायकों को हिदायत दी कि मायावती के विरुद्ध अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न करें। वहीं, बसपा अध्यक्ष का रुख कांग्रेस के प्रति नरम हो गया। हां, सपा के प्रति बसपा की नाराजगी बनी रही। सोमवार को अपने जन्मदिन पर मायावती ने जब गठबंधन से इनकार की घोषणा की तो उनके निशाने पर खास तौर पर सपा रही।

बसपा प्रमुख ने ईवीएम पर फिर सवाल उठाए
बसपा प्रमुख मायावती ने ईवीएम पर फिर सवाल उठाए। भरोसा  जताया कि यह सिस्टम कभी भी खत्म  हो सकता है या इसमें सुधार किया जा  सकता है। कहा, यदि 2007 की तरह फ्री एंड फेयर चुनाव ईवीएम से होते हैं तो इस  बार हमारी पार्टी बेहतर परिणाम देगी।  बसपा प्रमुख ने केंद्र व राज्य सरकार की  जातिवादी, पूंजीवादी, संकीर्ण व सांप्रदायिक सोच पर निशाना साधते हुए कहा कि धर्म व संस्कृति की आड़ में राजनीति की जा रही है, जिससे संविधान व लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। अंतिम सांस तक राजनीति से नहीं लूंगी संन्यास : बसपा प्रमुख ने स्पष्ट कहा कि जिंदगी की आखिरी सांस तक वह पार्टी को मजबूत बनाने में लगी रहेंगी। उधर, सपा मुखिया अखिलेश यादव के आइएनडीआइए को लेकर मायावती पर बयान और अपने लोगों को उनका सम्मान करने की नसीहत पर बसपा प्रमुख ने कहा कि सोची-समझी रणनीति के तहत बसपा के लोगों को गुमराह करने के लिए सपा मुखिया ने गिरगिट की तरह रंग बदला। इससे सावधान रहें।

अभी आस लगाए बैठी कांग्रेस
मायावती के स्पष्ट इनकार के बाद भी कांग्रेस नेता बसपा से गठबंधन की आस लगाए हैं। तर्क दे रहे हैं कि वह कांग्रेस से नाराज नहीं हैं, क्योंकि सोमवार को वह सपा के साथ भाजपा पर बरसीं, ईवीएम का मुद्दा भी उठाया, लेकिन कांग्रेस का नाम सामान्य रूप से सिर्फ एक बार लिया। उप्र कांग्रेस के प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने बसपा से निर्णय पर पुनर्विचार का आग्रह किया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान अभी मायावती से और बात कर सकता है।

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